निर्भया दिवस के अवसर पर अस्सी घाट पर सांस्कृतिक प्रतिरोध संध्या
वाराणसी। दख़ल संगठन ने अंतर्राष्ट्रीय महिला हिंसा विरोधी पखवाड़े के समापन और निर्भया दिवस के अवसर पर अस्सी घाट पर सांस्कृतिक प्रतिरोध संध्या का आयोजन किया। गीत संगीत और कविता के माध्यम से नारीवादी चेतना का संचार किया गया। सांस्कृतिक संध्या के आयोजन के पूर्व महिला हिंसा के मामले में पराड़कर भवन में पत्रकारवार्ता भी आयोजित की गई। कार्यक्रम में मैत्री ने अंतर्राष्ट्रीय महिला हिंसा विरोधी पखवाड़ा क्या है के विषय में बताया की 1960 के दशक में डोमिनिकन रिपब्लिक के तानाशाह शासक के खिलाफ तीन बहनों- पेट्रिया,मिनरवा और मारिया (मीराबेल बहनें) ने आवाज़ उठाई। 25 नवम्बर को तीनों बहनों को जिन्दा जलाकर हत्या कर दी गयी। 1981 में नारीवादी समूहों ने इस दिन को महिलाओं पर होने वाली हिंसा के विरोध में अंतरराष्ट्रीय दिवस के रूप में मनाना शुरू किया। 1991 में 25 नवम्बर से 10 दिसम्बर तक 16 दिवसीय अभियान मनाना शुरू किया गया। तभी से यह पखवाड़ा हर वर्ष ”महिलाओं पर हिंसा के विरोध में 16 दिवसीय अभियान” के नाम से मनाया जाने लगा है। जिसमें सरकार, संस्थाएं, संगठन एवं शिक्षण संस्थाएं इन 16 दिनों में लड़कियों-महिलाओं से जुड़े विभिन्न मुद्दों पर सघन अभियान करते हैं। डॉ इन्दु पांडेय ने बताया कि निर्भया दिवस क्या है ? 2012 में आज ही के दिन 23 साल की निर्भया के साथ जघन्य सामूहिक बलात्कार करके निर्मम तरिके से उनकी हत्या की गयी थी। आरोपी पकडे गए और फांसी की सजा हुई। तभी से 16 दिसंबर को निर्भया की स्मृति में महिला हिंसा के प्रतिरोध दिवस के रूप में मनाया जाने लगा है। नीति ने कहा कि आज हम महिला हिंसा विरोधी पखवाड़ा के समापन पर दखल संगठन की ओर से यह कहना चाहते हैं कि जब भी हम महिला हिंसा की बात करते हैं तो विधवा महिला, विकलांग महिला, सेक्स वर्कर, ट्रांस महिलाओं को भूल ही जाते हैं। सिर्फ समाज द्वारा निर्धारित महिला जेंडर में रहने वाली उन्हीं महिलाओं को ही ध्यान में रखते हैं जिनको समाज द्वारा संस्कारी शादीशुदा जीवन अपनाने वाली महिला को ध्यान में रखते हैं। लेकिन आज हम कहना चाहते हैं कि विधवा महिला, सेक्स वर्कर, विकलांग, ट्रांस महिला ऐसी तमाम कैटेगरी में रहने वाली महिलाओं के साथ जो हिंसा हो रही है गैर बराबरी हो रही है उन महिलाओं का क्या ? उनके लिए बने कानून , उनके साथ हो रही हिंसा पर आवाज उठाने की जरूरत है। पितृसत्तात्मक सोच को खत्म करने की जरूरत है गैर बराबरी को हटाने की जरूरत है लिंग समानता लाने की जरूरत है।