आज से महाअम्बुबाची मेले का शुभारंभ, तीन दिन के लिए बंद हुआ मां कामख्या मंदिर जुटे लाखों तांत्रिक और अघोडी


अशोक झा, सिलीगुड़ी:
भारत में देवी के 51 शक्तिपीठ हैं, जिसमें से एक कामाख्या देवी का मंदिर भी हैं। इस मंदिर में हर साल 4 दिवसीय मेले का आयोजन किया जाता हैं। देशभर से लाखों लोग इस मेले में शामिल होने के लिए आते हैं।
यहां कामाख्या देवी को मां दुर्गा के रूप में पूजा जाता है। मान्यता है कि यहां पर माता सती की योनि का भाग गिरा था। भक्त यहां देवी सती की गिरी हुई योनि (गर्भ) की पूजा करने के लिए आते हैं जो देवी कामाख्या के रूप में पूजी जाती हैं। कहां और कब होगा मेले का आयोजन?: इस बार कामाख्या धाम में महा अम्बुबाची मेले का आयोजन शनिवार, 22 जून से किया जाएगा जो कि 26 जून तक चलेगा। अंबुबाची मेले से जुड़ी मान्यता काफी अजीब है। मंदिर के पुजारी मिहिर शर्मा का कहना है की लोगों का मत है कि साल में एक बार माता कामाख्या रजस्वला (मासिक धर्म) होती हैं। इस दौरान 3 दिन के लिए मंदिर के दरवाजे बंद कर दिए जाते हैं। इन 3 दिनों तक कोई भी व्यक्ति मंदिर में प्रवेश नहीं करता। 3 दिन बाद यानी रजस्वला समाप्ति के बाद मंदिर के कपाट खोले जाते हैं। इन 3 दिनों तक कामाख्या में मेला लगता है, इसे ही अंबुबाची मेला कहा जाता है। इस दौरान यहां दूर-दूर से तांत्रिक तंत्र क्रिया के लिए आते हैं।
देवी का यह शक्तिपीठ असम के नीलांचल पहाड़ी पर स्थित है। यह मंदिर असम की राजधानी दिसपुर के पास गुवाहाटी शहर से 7-8 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। नदी का पानी बदलता है रंग: कहते हैं कि ब्रह्मपुत्र नदी का पानी 3 दिन के लिए लाल हो जाता है। मान्यता है कि जब मां कामाख्या रजस्वला होती हैं तो उस दौरान नदी का पानी लाल हो जाता है। इस दौरान मंदिर के कपाट भी बंद रहते हैं। माना जाता है कि देवी कामाख्या पारंपरिक महिलाओं की तरह मासिक धर्म में तीन दिनों तक आराम करती हैं। भक्तों को मिलते है दो प्रकार के प्रसाद: कामाख्या मन्दिर में भक्तों को दो प्रकार के प्रसाद दिए जाते हैं। जिसमें पहला अंगोदक यानी झरने का पानी और अंगवस्त्र जिसे अंबुबाची वस्त्र कहते हैं। यह मंदिर में रखा गिला कपड़ा होता है. अंगोदक का शाब्दिक अर्थ है शरीर का तरल भाग- झरने से पानी और अंगबस्त्र का शाब्दिक अर्थ है शरीर को ढकने वाला कपड़ा -मासिक धर्म के दिनों में योनि चट्टान की दरार को ढकने के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला लाल कपड़े का टुकड़ा।
अंबुबाची का अर्थ: “अम्बुबाची” का अर्थ है “पानी से बात करना” और इसका यह भी अर्थ है कि इस महीने में होने वाली बारिश धरती को उपजाऊ और प्रजनन के लिए तैयार बनाती है। इस अवधि के दौरान दैनिक पूजा-पाठ बंद कर दिया जाता है। सभी कृषि कार्य जैसे खुदाई, जुताई, बुवाई और फसलों की रोपाई वर्जित है। विधवाएं, ब्रह्मचारी और ब्राह्मण इन दिनों पके हुए भोजन से परहेज करते हैं। चौथे दिन, अम्बुबाची खत्म होने के बाद, घर के सामान, बर्तन और कपड़े धोए जाते हैं, पवित्र जल छिड़क कर साफ और शुद्ध किए जाते हैं, सफाई और अन्य अनुष्ठान करने के बाद देवी कामाख्या की पूजा शुरू होती है. इसके बाद मंदिर में प्रवेश शुभ माना जाता है। तांत्रिक शक्ति का केंद्र: अम्बुबाची मेले में देश भर से बड़ी संख्या में तांत्रिक आते हैं क्योंकि कामाख्या मंदिर को तांत्रिक शक्तिवाद का केंद्र कहा जाता है। लाखों तीर्थयात्री, जिनमें पश्चिम बंगाल के साधु, संन्यासी, अघोरी, बाउल, तांत्रिक, साध्वी आदि शामिल हैं, आध्यात्मिक गतिविधियों का अभ्यास करने आते हैं। तांत्रिको के लिए अम्बूवाची का समय सिद्धि प्राप्ति का अनमोल समय होता है।

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