तांत्रिक क्रियाओं और मंत्रोचारण से गूंज रहा कामाख्या

जब देवी होती है रजस्वला,भक्तों को है ब्रह्मपुत्र नदी के लाल होने का इंतजार


अशोक झा, सिलीगुड़ी: अंबुबाची मेला का आज दूसरा दिन है। यह 26 जून तक चलेगा। कामख्या में तांत्रिक क्रियाओं और मंत्रोचारण से पूरा वातावरण गूंज रहा है। इस दौरान 3 दिन तक कामाख्या मंदिर के कपाट बंद रहते हैं। कोई भी मंदिर में प्रवेश नहीं करता। मान्यता है कि इन 3 दिनों में माता रजस्वला स्थिति में होती है। 3 दिन बाद मंदिर के कपाट फिर से खोल दिए जाते हैं। अंबुबाली मेले के समय मंदिर परिसर में ही तरह-तरह के धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। जिसमें भजन-कीर्तन, तांत्रिक अनुष्ठान और विभिन्न प्रकार के सांस्कृतिक कार्यक्रम शामिल हैं। मेले के दौरान भक्तों के लिए भंडारे का भी आयोजन किया जाता है। भक्तों को प्रसाद में दिया जाता है अंबुबाची वस्त्र: अंबुबाची मेले के समय जब कामाख्या मंदिर के कपाट बंद कर दिए जाते हैं तब उनकी योनी भाग के ऊपर एक सफेद कपड़ा रख दिया जाता है। फिर जब 3 दिन बाद मंदिर के कपाट खुलते हैं तो ऐसा कहा जाता है कि ये वस्त्र लाल हो जाता है। फिर भक्तों को यही कपड़ा प्रसाद के रूप में बांट दिया जाता है इस कपड़े को अंबुबाची वस्त्र कहते हैं। इस कपड़े को बहुत ही पवित्र माना जाता है।
मंदिर प्रशासन की ओर से
वीआईपी पास नहीं : इस साल मंदिर में देवी कामाख्या के दर्शन के लिए कोई वीआईपी पास जारी नहीं किया जाएगा। अगर अंबुबाची के दौरान कोई वीआईपी देवी के दर्शन करने मंदिर पहुंचते हैं तो उन्हें भी आम श्रद्धालुओं की तरह कतारबद्ध होकर ही देवी के दर्शन के लिए इंतजार करना पड़ेगा।
सड़क को किया गया है बंद – कामाख्या मंदिर की ओर जाने वाली सड़क रात को 8 बजे से बंद कर दी गई है। इसके अलावा पांडुघाट से आने वाली सड़क भी रात को बंद रहेगी।
नौका व वाहन सेवा बंद – अंबुबाची मेले के दौरान कामाख्या गेट से नौका सेवा और वाहनों की आवाजाही बंद है। मेले के दौरान पांडु से कामाख्या मंदिर मार्ग पर ही सिर्फ नौका सेवा उपलब्ध होगी। भोजन व पानी वितरण – कामाख्या मंदिर व आसपास के क्षेत्रों में विभिन्न संस्थाएं जो अक्सर खाद्य पदार्थ और पेयजल का वितरण कार्यक्रम चलाती हैं, उन्हें मेले के दिनों में अपनी पसंद के स्थानों पर भोजन व पेयजल वितरित करने की अनुमति नहीं दी जाएगी।अंबुबाची मेला में शामिल होने आने वाले श्रद्धालुओं के लिए निर्देश: मंदिर खुलने व बंद होने का समय – आम दिनों में कामाख्या मंदिर सुबह 7.30 बजे खुलता और शाम को 5 बजे बंद हो जाता है। दोपहर 1 से 2.30 बजे के बीच मंदिर को बंद रखा जाता है। लेकिन मेले के दौरान मंदिर के कपाट सुबह 8 से रात 9 बजे तक खुले रहेंगे।

यहां रोज दी जाती हैvहजारों पशु-पक्षियों की बलि: यहां रोज हजारों पशु-पक्षियों की बलि दी जाती है। कहते हैं कि किसी समय यहां नर बलि देने की प्रथा भी थी, जो बाद में बंद कर दी गई। इस मंदिर का तांत्रिक महत्व भी है। आगे जानें इस मंदिर से जुड़ी खास बातें…
किस-किस पशु-पक्षी की दी जाती है बलि?
कामाख्या मंदिर में अनेक पशु-पक्षियों की बलि देने की परंपरा है। इनमें से कुछ परंपरा तो काफी वीभत्स है। इस मंदिर में भेड़, बकरा, मछली के साथ-साथ कबूतरों की बलि देने की भी प्रथा है। कामाख्या पीठ में देवधानी नाम का उत्सव हर साल मनाया जाता है। इस उत्सव के दौरान पुजारी कबूतरों की बलि देते हैं। विचलित करने वाली बात ये है कि पुजारी अपने मुंह से काटकर जिंदा कबूतरों की बली देते हैं। ये परंपरा इस प्राचीन मंदिर में सैकड़ों सालों से चल रही है।
कभी दी जाती थी भैंसे की बलि
कुछ सालों पहले तक कामाख्या मंदिर में भैसें की बलि देने की परंपरा भी थी, लेकिन कुछ कारणों के चलते इस प्रथा पर रोक लगा दी गई। इस मंदिर के बारे में ये भी कहा जाता है कि प्राचीन काल में यहां नर बलि भी दी जाती थी यानी मनुष्यों का सिर काटकर देवी को अर्पित की जाता था। कालांतार में ये प्रथा भी बंद हो गई।
तांत्रिक का लगता है जमावड़ा
कामाख्या मंदिर में तांत्रिकों का जमावड़ा लगा रहता है। यहां दूर-दूर से तांत्रिक तंत्र सिद्धियां प्राप्त करने आते हैं। इस दौरान वे पशु-पक्षियों की बलि भी देते हैं। साल 2019 में मंदिर प्रांगण में एक महिला की सिर कटी लाश मिली थी। जांच करने पर पुलिस को पता चला कि तांत्रिकों ने इस महिला की बलि देवी को चढ़ाई थी।
यहां बलि देने की परंपरा क्यों?
हिंदू धर्म में पूजा की कईं पद्धतियां हैं। इनमें से एक है तामसिक पद्धति। इसके अंतर्गत पशु-पक्षियों की बलि देकर देवी को प्रसन्न किया जाता है। कामाख्या मंदिर में भी इसी पद्धति के अंर्तगत पूजा की जाती है। धर्म ग्रंथों के अनुसार, यहां देवी सती का योनी भाग गिरा था। उसकी पूजा यहां की जाती है।

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