तिस्ता जल समझौता को लेकर सीएम ममता ने लिखा पीएम को पत्र, केंद्र का आरोप फैलाया जा रहा है सिर्फ झूठ
सिलीगुड़ी: सिक्किम से बांग्लादेश तक बहने वाली तिस्ता नदी के संबंध में कहा जाता है की वह ऊपर से शांत दिखती है पर अंदर करंट काफी तेज होता है। कुछ ऐसा ही तीस्ता जल समझौता मामले में पश्चिम बंगाल को शामिल न करने पर सीएम ममता ने नाराजगी जताई थी। अब यह मामला तूल पकड़ता जा रहा है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा था कि, बातचीत के दौरान पश्चिम बंगाल को क्यों छोड़ दिया गया। जबकि केंद्र की ओर से कहा जा रहा है की बंगाल सरकार इस मामले को लेकर सिर्फ झूठ फैलाने का काम कर रही है। सीएम ममता बनर्जी ने अपने पत्र में अपनी नाखुशी का इजहार करते हुए बनर्जी ने प्रधानमंत्री से पश्चिम बंगाल सरकार को शामिल किए बिना पड़ोसी देश के साथ ऐसी कोई चर्चा नहीं करने का भी आग्रह किया। ममता ने मोदी को लिखे तीन पृष्ठ के पत्र में कहा, ”मैं यह पत्र बांग्लादेश की प्रधानमंत्री की हालिया यात्रा के संदर्भ में लिख रही हूं। ऐसा लगता है कि बैठक के दौरान गंगा और तीस्ता नदियों से संबंधित जल बंटवारे के मुद्दों पर चर्चा हुई होगी। परामर्श और राज्य सरकार की राय के बिना इस तरह का एकतरफा विचार-विमर्श और वार्ता ना तो स्वीकार्य है और ना ही वांछनीय है।उन्होंने कहा कि बंगाल का बांग्लादेश के साथ भौगोलिक, सांस्कृतिक और आर्थिक रूप से बहुत करीबी रिश्ता है। ममता बनर्जी ने कहा, ‘मैं बांग्लादेश के लोगों से प्यार करती हूं और उनका सम्मान करती हूं और हमेशा उनकी भलाई की कामना करता हूं… मैं अपनी कड़ी आपत्ति व्यक्त करती हूं कि राज्य सरकार की भागीदारी के बिना बांग्लादेश के साथ तीस्ता जल बंटवारे और फरक्का संधि पर कोई चर्चा नहीं की जानी चाहिए। पश्चिम बंगाल में लोगों का हित सर्वोपरि है, जिससे किसी भी कीमत पर समझौता नहीं किया जाना चाहिए।पीएम मोदी को लिखी चिट्ठी में ममता बनर्जी ने कहा कि, राज्य सरकार के परामर्श और राय के बिना इस तरह की एकतरफा विचार-विमर्श और चर्चा न तो स्वीकार्य है और न ही वांछनीय है।भारत-बांग्लादेश परिक्षेत्रों, जिन्हें चितमहलों के नाम से भी जाना जाता है, के आदान-प्रदान पर समझौता, भारत-बांग्लादेश रेलवे लाइन और बस सेवाएं इस क्षेत्र में अर्थव्यवस्था की बेहतरी के लिए बांग्लादेश के साथ मिलकर काम करने के कुछ मील के पत्थर हैं। हालाँकि, पानी बहुत कीमती है और लोगों की जीवन रेखा है। हम ऐसे संवेदनशील मुद्दे पर समझौता नहीं कर सकते जिसका लोगों पर गंभीर और प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है. ऐसे समझौतों के प्रभाव से सबसे ज्यादा नुकसान पश्चिम बंगाल के लोगों को होगा. मुझे पता चला कि भारत सरकार भारत बांग्लादेश फरक्का संधि (1996) को नवीनीकृत करने की प्रक्रिया में है, जो 2026 में समाप्त होनी है. यह एक संधि है जो बांग्लादेश और भारत के बीच जल बंटवारे के सिद्धांतों को रेखांकित करती है और जैसा कि आप जानते हैं इसका पश्चिम बंगाल के लोगों के लिए अपनी आजीविका बनाए रखने पर बहुत बड़ा प्रभाव पड़ता है और फरक्का बैराज में जो पानी मोड़ा जाता है, वह कोलकाता बंदरगाह की नौवहन क्षमता को बनाए रखने में मदद करता है।
केंद्र की सरकार ने दिया ये जवाब: सूत्रों के अनुसार सरकार की ओर से दिए गए जवाब में कहा गया है कि, पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा झूठ फैलाया गया कि फरक्का में गंगा/गंगा जल बंटवारे पर 1996 की भारत-बांग्लादेश संधि की आंतरिक समीक्षा पर उनसे परामर्श नहीं किया गया था. सरकार की ओर से कहा गया कि 24 जुलाई 2023 को, भारत सरकार ने फरक्का में गंगा/गंगा जल के बंटवारे पर 1996 की भारत-बांग्लादेश संधि की आंतरिक समीक्षा करने के लिए ‘समिति’ में पश्चिम बंगाल सरकार के नामित व्यक्ति की मांग की. 25 अगस्त 2023 को, पश्चिम बंगाल सरकार ने समिति के लिए मुख्य अभियंता (डिज़ाइन और अनुसंधान), सिंचाई और जलमार्ग निदेशालय, पश्चिम बंगाल सरकार के नामांकन की सूचना दी. 5 अप्रैल 2024 को, संयुक्त सचिव (कार्य), सिंचाई और जलमार्ग विभाग, पश्चिम बंगाल सरकार ने फरक्का बैराज के डाउनस्ट्रीम के विस्तार से अगले 30 वर्षों के लिए अपनी कुल मांग से अवगत कराया था। अब सवाल उठता है की आखिर बंगाल सरकार तिस्ता को लेकर लोगों में झूठ क्यों फैला रही है। रिपोर्ट अशोक झा