नॉर्थ सिटी मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा के साथ खुला भक्तों के लिए मंदिर का द्वार

आज काफी दिनों का सपना हुआ पूरा, ईश्वरीय शक्ति के निर्देश के बिना नहीं था संभव : सीताराम डालमिया


अशोक झा, सिलीगुड़ी : भगवान के बिना सद्गति नहीं और भक्ति बिना शक्ति नहीं होती है। इसी कहावत को चरितार्थ करते हुए आज सेवक रोड स्थित नॉर्थ सिटी सोसाइटी में नॉर्थ सिटी मंदिर का विधिवत उद्घाटन किया गया। पिछले चार दिनों से वैदिक मंत्रोचारण के साथ हो रहे किए जा रहे मूर्तियों की प्राण प्रतिष्ठा के बाद सुबह 11 बजे मंदिर का द्वार भक्तों के लिए खोल दिया गया।
मंदिर का द्वार खुलते ही मंदिर की घंटी और भक्तिमय संगीत के साथ पूरा परिसर गुंजायमान हो गया। इस मौके पर मुख्य यजमान सीताराम डालमिया ने बताया कि मंदिर का उद्घाटन मूर्ति प्राण प्रतिष्ठा ऐसा लगता है यह कई जन्मों के सपनों को साकार करने वाला है। यह सब ईश्वरीय शक्ति के निर्देश के बिना सम्भव नहीं हो सकता था। काफी दिनों से मंदिर निर्माण का सपना साकार होता देख खुशी की अनुभूति हो रही है। आज मंदिर में आने वाले भक्तों के चेहरे की खुशी देखकर मन प्रसन्न हो रहा है। भगवती प्रसाद डालमिया ने मौके पर कहा कि जब पुत्र के किसी कृत का लोगों में बखान सुनने को मिलता है तो एक पिता का मन गदगद होता है। आज हम भी गदगद है। व्यापार के साथ धर्म का मार्ग भी जीवन में सही रास्ता दिखाने, बच्चों में संस्कार लाने के लिए जरूरी है। इस बात को सभी को ध्यान रखना चाहिए। मूर्ति प्राण प्रतिष्ठा कराने वाले पंडितों ने बताया कि हिंदू धर्म में मूर्ति के निर्माण के बाद प्रतिमा में ईश्वर के दैवीय शक्तियां को समाहित करने के लिए प्राण-प्रतिष्ठा किया जाता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, जब किसी प्रतिमा का प्राण-प्रतिष्ठा किया जाता है, तो उस प्रतिमा में प्राणों का संचार होता है।भारतीय धर्मों में, जब किसी मूर्ति की प्राणप्रतिष्ठा की जाती है तब मंत्र द्वारा उस देवी या देवता का आवाहन किया जाता है कि वे उस मूर्ति में प्रतिष्ठित (विराजमान) हों। इसी समय पहली बार मूर्ति की आँखें खोली जाती हैं। मूर्तियों की प्राण प्रतिष्ठा में महत्व मूर्ति की शिल्पगत सुंदरता का नहीं होता । अगर कोई साधारण- सा पत्थर भी रख दिया जाए और उसकी प्राण प्रतिष्ठा हो जाए तब वह भी उतना ही फलदायक रहता है, जितनी कि कोई सुंदर कलाकार द्वारा निर्मित की गई मूर्ति होती है। बहुत से पवित्र देवस्थानों में हम यही देखते हैं। बारह ज्योतिर्लिंग हजारों वर्ष पहले किसी महान सत्ता के द्वारा प्राणप्रतिष्ठा से जागृत किए गए थे । उनमें स्थापित मूर्तियाँ शिल्प की दृष्टि से बहुत सुंदर नहीं कही जा सकती हैं । केदारनाथ में तो हम जिस मूर्ति की उपासना करते हैं, वह एक अनगढ़ चट्टान का टुकड़ा अथवा पाषाण मात्र है । लेकिन उसकी दिव्यता अद्भुत है। मूर्ति का मूल्य उसके पत्थर की कीमत से अथवा उसकी सुंदरता से नहीं आंका जाता । यह इस बात पर निर्भर करता है कि उस स्थान विशेष की परिधि में पहुँचते ही साधक को दिव्यता का अनुभव होने लगता है तथा ईश्वर के साथ उसका संपर्क तत्काल जुड़ने लगता है। प्राण प्रतिष्ठा एक असाधारण और अद्भुत कार्य है । कोई-कोई ही हजारों वर्षों में जन्म लेता है , जो मूर्तियों में प्राण प्रतिष्ठा कर सकने में समर्थ होता है। हजारों साल पहले बारह ज्योतिर्लिंग किसी महापुरुष ने प्राणप्रतिष्ठित कर दिए और वह अभी तक चले आ रहे हैं। रिपोर्ट अशोक झा

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