श्रीमद् भागवत पुराण में सभी ग्रंथों का सार,25 से भक्ति की बहेगी बयार: केशव कृष्ण महाराज

अशोक झा, सिलीगुड़ी: धर्म नगरी सिलीगुड़ी अग्रसेन भवन में डालमिया परिवार द्वारा आयोजित सात दिवसीय संगीतमय श्रीमद् भागवत कथा महापुराण का आयोजन 25 से 31 जुलाई तक किया जाएगा। इसकी जानकारी देते हुए नवीन डालमिया ने बताया कि प्रवचन रोजाना दोपहर 3 बजे से शाम 6 बजे तक होगा। कथा व्यास पर वृंदावन से आए केशव कृष्ण महाराज वाचक होंगे। बताया गया है की श्रीमद् भागवत पुराण में सभी ग्रंथों का सार है। यही एक ऐसा ग्रंथ है जिसमें भगवान की सारी लीलाओं का विस्तार से वर्णन किया गया है। जब सौभाग्य का उदय होता है तब भागवत कथा सुनने को मिलती है। यह ग्रंथ साक्षात भगवान का स्वरूप है। इसीलिए श्रद्धापूर्वक भागवत की पूजा की जाती है। भाद्रपद, आश्विन, कार्तिक, मार्गशीष, आषाढ़ और श्रावण के महीने अनुकूल या श्रेष्ठ माने जाते है। इन महीनो में कथा सुनने से मोक्ष की प्राप्ति आसान हो जाती है।।इसके अतिरिक्त श्रीमद् भागवत कथा सुनना और सुनाना दोनों ही मुक्तिदायिनी है तथा आत्मा को मुक्ति का मार्ग दिखाती है। श्रीमद् भागवत पुराण को मुक्ति ग्रंथ कहा गया है, इसलिए अपने पितरों की शांति के लिए इसे हर किसी को आयोजित कराना चाहिए। इसके अलावा रोग-शोक, पारिवारिक अशांति दूर करने, आर्थिक समृद्धि तथा खुशहाली के लिए इसका आयोजन किया जाता है। इसको पढ़ने और श्रवण करने से मोक्ष सुलभ होता है। मन की शुद्धि के लिए इससे बढ़ा कोई साधन नहीं है। भागवत पाठ से सभी दोष नष्ट हो जाते हैं। भगवान का अर्थ भक्ति, ज्ञान, वैराग्य, तारण है। इसलिए पितरों की शांति के लिए भागवत कथा का आयोजन कराना चाहिए। जिस परिवार के नाम से भागवत पुराण का पाठ होता है उस परिवार में भक्ति का प्रादुर्भाव स्वत: ही हो जाता है और माता लक्ष्मी की कृपा हमेशा बनी रहती है, शत्रु स्वत: ही नष्ट हो जाते हैं, मनुष्य को मान सम्मान की प्राप्ति होती है। कलयुग में घटने वाली घटनाओं की भविष्यवाणी इस पुराण में बहुत पहले कर दी गई थी।यत्राधिक्षुत्र गायत्रीं वर्ण्यते धर्म विस्तर: ।।वृत्रासुर वधोपेतं तदवै भागवतं विदुः ।।जीवन जीने की एक अद्धभुत शैली को बताते हुए यह महापुराण वैष्णवों का मुकुटमणि बना है । भगवान् श्रीकृष्ण का शब्दमय विग्रह, आध्यात्मिक रस की अलौकिक प्याऊ, असंतोष जीवन को शान्ति प्रदान करने वाला दिव्य अमृत रस, या यों कहिये नर को नारायण बनाने वाली दिव्य चेतना है श्रीमद्भागवत महापुराण । इसमें 12 स्कन्ध, 335 अध्याय एवं 28000 श्लोक हैं ।इसे श्रीमद्भागवतम् या केवल भागवतम् भी कहते हैं । ज्ञान, भक्ति और वैराग्य का यह महान ग्रन्थ है । श्रीमद्भागवत महापुराण में भगवान् नारायण के अवतारों का ही वर्णन है । नैमिषारण्य में शौनकादि ऋषियों की प्रार्थना पर लोमहर्षण के पुत्र उग्रश्रवा सूत जी ने इस पुराण के माध्यम से श्रीकृष्ण के चौबीस अवतारों की कथा कही है । श्रीमद्भागवत महापुराण में बार-बार श्रीकृष्ण के ईश्वरीय और अलौकिक रूप का ही वर्णन किया गया है । इसमें श्रीगणेश पूजन, श्रीमद्भागवत माहात्म्य, मङ्गलाचरण, भीष्म-पाण्डवादि चरित्र, परीक्षित जन्म एवं श्री शुकदेव प्राकट्य, ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति, भगवान् विराट का प्राकट्य, विदुर-मैत्रय संवाद, कपिलोपाख्यान, सती चरित्र, ध्रुव चरित्र, जड़भरत व प्रह्लाद चरित्र, गजेंद्र मोक्ष, समुद्र मंथन, वामन अवतार, श्रीराम चरित्र एवं श्रीकृष्ण प्राकट्योत्सव, श्रीकृष्ण बाल लीलायें, श्रीगोवर्धन पूजा एवं छप्पनभोग, महारासलीला, श्रीकृष्ण मथुरा गमन, गोपी-उद्धव संवाद एवं रुक्मिणी मङ्गल, सुदामा चरित्र, श्रीशुकदेव विदाई, व्यास पूजन, कथा विश्राम, हवन पूर्णाहुति दी जाती है। रिपोर्ट अशोक झा

Back to top button