बंगाल विभाजन के खिलाफ 5 अगस्त को टीएमसी का विरोध प्रस्ताव , 2026 का एजेंडा हो रहा सेट
भाजपा टीएमसी इसको लेकर आमने सामने, सियासत में इसके फायदा नुकसान

अशोक झा, सिलीगुड़ी: उत्तर बंगाल को अलग राज्य या केंद्र शासित राज्य का दर्जा दिए जाने को लेकर बंगाल में सियासी बबाल मचा है। पहाड़ में भाजपा के सहयोगी गोरखा राष्ट्रीय मुक्ति मोर्चा ने अपने केंद्रीय कार्यालय में काला झंडा लगा लिया है।उनकी मांग हिल्स के लिए अलग राज्य या भाजपा सांसद राजू बिष्ट की पीपीएस परमानेंट पॉलिटिकल सॉलियसन को पूरा करने का है। बीजेपी नेताओं की इस मांग के खिलाफ सत्तारूढ़ टीएमसी 5 अगस्त को राज्य को विभाजित करने के प्रयासों के खिलाफ प्रस्ताव पेश करने वाली है।बंगाल को विभाजित करने का मुद्दा विधानसभा में छाया हुआ है। ब्रिटिश काल में साल 1905 में लार्ड कर्जन ने बंगाल विभाजन की घोषणा की थी. लार्ड कर्जन की घोषणा के बाद पूरा बंगाल जल उठा था और इसके खिलाफ पूरे बंगाल में उग्र प्रदर्शन हुए थे और अंततः लार्ड कर्जन को विभाजन का प्रस्ताव वापस लेना पड़ा था. लेकिन साल 1947 में देश को आजादी तो मिली, लेकिन बंगाल पूर्वी बंगाल (वर्तमान में बांग्लादेश) और पश्चिम बंगाल में विभाजित हो गया. उस विभाजन का दर्द अभी भी बंगाल के लोग नहीं भूले हैं. ओपार बांग्ला और एपार बांग्ला (उस पार बांग्लादेश और इस पार पश्चिम बंगाल) में अभी भी लोगों की रिश्तेदारियां हैं और साल 1971 के बांग्लादेश युद्ध के समय भी काफी लोग पश्चिम बंगाल और देश के अन्य सीमावर्ती इलाकों में पलायन के लिए बाध्य हुए थे।विभाजन के समय डॉ श्यामाप्रसाद मुखर्जी के प्रयास से पश्चिम बंगाल के कई जिले पूर्वी बंगाल में शामिल नहीं होने बच गये और पश्चिम बंगाल का अस्तित्व बच पाया था। लेकिन समय-समय पर पश्चिम बंगाल में विभाजन की मांग उठती रही है। पिछले बुधवार को भाजपा के बंगाल ईकाई के अध्यक्ष और केंद्रीय राज्य मंत्री सुकांत मजूमदार ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की और उन्होंने उत्तर बंगाल के आठ राज्यों को पूर्वोत्तर राज्यों के साथ विलय का प्रस्ताव दिया। हालांकि बीजेपी का कहना है कि पार्टी बंगाल विभाजन के खिलाफ है। सुकांत मजूमदार ने उत्तर बंगाल को नॉर्थ ईस्टर्न काउंसिल में शामिल करने का प्रस्ताव दिया है, ताकि उत्तर बंगाल को भी सिक्किम की तरह उत्तर पूर्वी राज्यों के विकास के मद में मिलने वाले आवंटन का लाभ मिल सके। उत्तर बंगाल के जिलों को केंद्र शासित प्रदेश बनाए जाने की मांग उठी है। व्यवसाय सलाहकार (बीए) समिति की बैठक में इस प्रस्ताव को लाने का निर्णय लिया गया। विधानसभा मामलों के मंत्री शोभन देब चट्टोपाध्याय ने कहा, यह निर्णय लिया गया है कि पांच अगस्त को हम पश्चिम बंगाल को विभाजित करने के किसी भी प्रयास की निंदा करते हुए एक प्रस्ताव पेश करेंगे। अगर भाजपा विधायक विभाजन के खिलाफ हैं, तो उन्हें आगे आकर स्पष्ट रूप से कहना होगा कि वे किसी भी ऐसे प्रयास का विरोध करते हैं। पश्चिम बंगाल विधानसभा ने पिछले साल फरवरी में भी राज्य को विभाजित करने के प्रयासों के खिलाफ एक समान प्रस्ताव ध्वनिमत से पारित किया था।यह विवाद तब शुरू हुआ जब उत्तर बंगाल के बालुरघाट से सांसद और उत्तर-पूर्व विकास मंत्रालय के राज्य मंत्री सुकांत मजूमदार ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर उत्तर बंगाल की केंद्रीय परियोजनाओं को उत्तर-पूर्व भारत की परियोजनाओं में शामिल करने का प्रस्ताव दिया। विधान सभा में ममता बनर्जी ने इस प्रस्ताव के खिलाफ अपनी आवाज उठाई और सुकांत के बयान का विरोध किया। सुकांत ने ममता के आरोपों का खंडन करते हुए कहा, बंगाल विभाजन का कोई सवाल ही नहीं है। उन्होंने कहा कि ममता बनर्जी गैरजरूरी बातें कर रही हैं और यह कोई निर्णय नहीं है। इससे पहले शनिवार को दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में नीति आयोग की बैठक में ममता बनर्जी ने माइक बंद करने का आरोप लगाया था। उन्होंने कहा कि उनकी आवाज दबाई गई और उनका अपमान किया गया। इस पर तृणमूल कांग्रेस आज विधान सभा में निंदा प्रस्ताव लाई, जिसका भाजपा ने विरोध करके विधान सभा से वाकआउट किया। केन्द्रीय बजट में उत्तर बंगाल की उपेक्षा पर ममता ने कड़ी नाराजगी व्यक्त की। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार ने उत्तर बंगाल को बजट में कुछ भी नहीं दिया, जबकि उनकी सरकार ने उत्तर बंगाल के बुनियादी ढांचे के विकास पर एक लाख 64 हजार 764 करोड़ रुपये खर्च किए हैं। ममता ने आरोप लगाया कि भाजपा को उत्तर बंगाल से इतनी सीटें मिलने के बावजूद, उन्होंने विभाजन की राजनीति शुरू कर दी है। ममता बनर्जी ने विधान सभा में जोर देते हुए कहा, बंगाल विभाजन के खिलाफ विधान सभा में चर्चा होनी चाहिए। वोटिंग होनी चाहिए। विधान सभा को बाईपास करके बंगाल विभाजन की बात नहीं की जा सकती। सुकांत मजूमदार के प्रस्ताव का राज्य की सत्तारूढ़ दल टीएमसी ने पूरी तरह से खारिज कर दिया है और राज्य में अशांति पैदा करने की कोशिश करार दिया है. वहीं, इसे लेकर बीजेपी में भी अंदरूनी कलह सामने आ गई है. सुकांत मजूमदार को उनके ही पार्टी के विधायक की आलोचना का सामना करना पड़ रहा है। कर्सियांग के भाजपा विधायक विष्णु प्रसाद शर्मा ने पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष के प्रस्ताव को अवास्तविक करार दिया है। बुधवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ सुकांत मजूमदार ने बैठक की थी. इस बैठक में सुकांत मजूमदार ने उत्तर बंगाल के आठ जिलों को पूर्वोत्तर राज्यों में विलय करने का प्रस्ताव रखा, हालांकि उन्होंने कहा है कि यह विलय बंगाल के विभाजन के बिना ही किया जाए, लेकिन उनके बयान के बाद राज्य की सियासत गरमा गई है। उत्तर बंगाल में अलग राज्य की मांग ने पकड़ा जोर: सुकांत मजूमदार के बयान के बाद उत्तर बंगाल के विभाजन की मांग और जोर पकडने लगी है. राजवंशी समुदाय के नेता और भाजपा के राज्यसभा के सांसद अनंत महाराज ने अलग कूचबिहार राज्य की मांग कर दी। उन्होंने कहा कि अलग कूचबिहार राज्य की मांग पर पहले ही सहमति जताई गई थी। दार्जिलिंग में पहले से ही अलग गोरखालैंड राज्य की मांग हो रही है। अलग गोरखालैंड की मांग लेकर कई बार हिंसक आंदोलन हो चुके हैं। इसके साथ ही उत्तर बंगाल में अलग कामतापुरी की राज्य की मांग को लेकर आंदोलन चल रहा है।दक्षिण बंगाल में बंगाल को अलग राज्य देने की मांग को लेकर आंदोलन हो रहे हैं। सुकांत मजूमदार के बयान से फिर से बंगाल में अलग राज्य की मांग तेज हो गई है। उत्तर बंगाल पर सुकांत के बयान के मायने: इस तरह से साफ है कि सुकांत मजूमदार के बयान के बाद राज्य में अलग राज्यों की मांग और तेज पकड़ेगी. लेकिन यह सवाल उठ रहा है कि कि आखिर बीजेपी उत्तर बंगाल को नॉर्थ ईस्ट स्टेट में क्यों विलय करने की मांग कर रही है, हालांकि भाजपा छोटे राज्यों के पक्ष में रही है, लेकिन बंगाल के विभाजन के खिलाफ प्रदेश भाजपा का स्टैंड रहा है. भाजपा यह दावा करती रही है कि जनसंघ के संस्थापक श्यामाप्रसाद मुखर्जी ने वर्तमान पश्चिम बंगाल को विभाजित होने से रोका था. ऐसे में आइए जानते हैं कि उत्तर बंगाल को नॉर्थ ईस्ट में विलय करन मांग के पीछे बीजेपी की क्या रणनीति है?सियासी जमीन मजबूत करने की कोशिश: इसके लिए पहले उत्तर बंगाल की सियासत को समझना होगा। साल 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने उत्तर बंगाल की आठ सीटों में से सात सीटों पर जीत हासिल की थी। साल 2024 में हालांकि पश्चिम बंगाल में बीजेपी को झटका लगा है और उसकी सीटों की संख्या 18 से घटकर 12 रह गयी है, लेकिन उत्तर बंगाल में बीजेपी अपनी पकड़ बकरार रखी है और आठ में से छह सीटों पर जीत हासिल की, लेकिन एक लोकसभा सीट कूचबिहार से केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नीशिथ प्रमाणिक को पराजय का सामना करना पड़ा. ऐसी स्थिति में यह साफ है कि उत्तर बंगाल में बीजेपी ने अपनी सियासी जमीन तैयार कर ली है और यदि उत्तर बंगाल को लेकर सुकांत मजूमदार के प्रस्ताव पर केंद्र सरकार अमल करती है, तो इसका फायदा बीजेपी को सियासी रूप से मिलेगा और उसका वोटबैंक मजबूत होगा। आदिवासी-ST वोटबैंक पर नजर: उत्तर बंगाल के इलाके में अनुसूचित जाति और जनजाति समुदाय का बाहुल्य है और इसी समुदाय के समर्थन से बीजेपी उत्तर बंगाल की सीटें जीतती रही हैं. बीजेपी इस प्रस्ताव के बाद यह दावा करेगी कि उसने उत्तर बंगाल के विकास की पहल की है। इससे दक्षिण बंगाल में रहने वाले आदिवासी समुदाय को लुभाने के लिए इस प्रस्ताव का इस्तेमाल करेगी. इसी तरह से बीजेपी ने पहले ही सीएए लागू करने बांग्लादेश से आये शरणार्थियों (मतुआ समुदाय) को नागरिकता देने की बात करते रही है. इस तरह से एक ओर मतुआ समुदाय और दूसरी ओर उत्तर बंगाल के विकास के मुद्दे पर इनकी वोटबैंक पर पार्टी की नजर है और साल 2026 के बंगाल के विधानसभा चुनाव में बीजेपी इनका इस्तेमाल करेगी। वंचित उत्तर बंगाल और विकास: राजनीतिक विश्लेषक पार्थ मुखोपाध्याय कहते हैं कि यह वास्तविकता है कि उत्तर बंगाल पिछड़ा हुआ है. ममता बनर्जी जब विपक्ष में थीं और राज्य में लेफ्ट फ्रंट का शासन था, तो ममता बनर्जी भी उत्तर बंगाल के वंचित रहने का मुद्दा उठाती थी. अब जब ममता बनर्जी सरकार में हैं, तो बीजेपी उत्तर बंगाल के वंचित करने का मुद्दा उठा रही हैं. बीजेपी का आरोप है कि उत्तर बंगाल के विकास के लिए 800 करोड़ रुपए आवंटित किए गए, लेकिन उत्तर बंगाल पर मात्र 322 करोड़ रुपए की ही खर्च हुए. आवंटित राशि अन्य मद में खर्च कर दिये गये. यदि उत्तर बंगाल को नॉर्थ ईस्टर्न काउंसिल (एनईसी) के साथ जोड़ा जाता है, तो उत्तर बंगाल के विकास के लिए आवंटित राशि पूरी तरह से उत्तर बंगाल के विकास में ही खर्च होगी. इसके पहले सिक्किम को एक विशेष अधिनियम लाकर नॉर्थ ईस्टर्न काउंसिल (एनईसी) में जोड़ा गया था. यदि उत्तर बंगाल को भी जोड़ा जाता है, तो इसका लाभ उत्तर बंगाल के लोगों को मिलेगा और लंबे समय से उत्तर बंगाल को लोग वंचित होने की बात कह रहे हैं. उन्हें इसका फायदा होगा। उत्तर-पूर्वी राज्यों से उत्तर बंगाल की समानता: दूसरी ओर, उत्तर बंगार और दक्षिण बंगाल मौसम, खानपान, भौगौलिक मानचित्र, पर्यटन सभी दृष्टि से एक-दूसरे से अलग है और उत्तर बंगाल के जिले कूचबिहार, जलपाईगुड़ी, दार्जिलिंग और अलीपुरद्वार उत्तर पूर्वी राज्यों के काफी करीब हैं. इस प्रस्ताव के अमलीजामा पहनाने पर बीजेपी की उत्तर बंगाल के साथ-साथ उत्तर पूर्वी राज्यों में पकड़ मजबूत होगी.
हालांकि सुकांत मजूमदार के प्रस्ताव को लेकर सवाल भी उठने लगे हैं।बीजेपी विधायक ने उठाया सवाल: कर्सियांग के भाजपा विधायक विष्णु प्रसाद शर्मा ने सुकांत मजूमदार के प्रस्ताव को पर सवाल उठाते हुए कहा कि 2026 के विधानसभा चुनाव से पहले उत्तर बंगाल के लोगों को गुमराह कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि यह एक अवास्तविक विचार है. यह कभी नहीं होगा. उनका कहना है कि सिक्किम में नॉर्थ ईस्टर्न काउंसिल (एनईसी) की भागीदारी को लेकर एक विशेष कानून है, लेकिन पश्चिम बंगाल में ऐसा नहीं है. राज्य का आधा हिस्सा कभी भी उत्तर-पूर्वी काउंसिल का हिस्सा नहीं हो सकता है। बंगाल बीजेपी ने पल्ला झाड़ा: विष्णु प्रसाद शर्मा बीजेपी पर राज्य विभाजन को लेकर भड़काने का भी आरोप लगा रहे हैं। उनका कहना है कि अगर वह वास्तव में उत्तर बंगाल के जिलों को उत्तर पूर्वी परिषद में शामिल करना चाहते हैं, तो पहले उन्हें बंगाल से विभाजित करें। फिर इसे राज्य या केंद्र शासित प्रदेश बना दें। वहीं, बीजेपी प्रवक्ता और राज्यसभा सांसद शमिक भट्टाचार्य ने उत्तर बंगाल को ‘वंचित’ करने का जिक्र करते हुए सुकांत मजूमदार के बयान से पल्ला झाड़ लिया था। उनका कहना है कि ‘राज्य बीजेपी बंगाल विभाजन के खिलाफ है। यही पार्टी की स्थिति है। अन्यत्र किसने क्या कहा, यह पार्टी की जिम्मेदारी नहीं है।