आरक्षण की आग में बांग्लादेश के संस्थापक शेख मुजीबुर रहमान की मूर्ति को तोड़ना कुछ और दे रहा संकेत
अशोक झा, सिलीगुड़ी: सेना ने बांग्लादेश की कमान अपने हाथ में ले ली है। लेकिन, सवाल यह है कि केवल आरक्षण के मसले पर ही प्रदर्शनकारी इतने उग्र हो गए कि वहां की सरकार इसको संभालने में नाकाम हो गई? दरअसल, इस प्रदर्शन के दौरान एक तस्वीर सामने आई, जो काफी कुछ इशारा कर रही है। प्रदर्शनकारियों ने बांग्लादेश के संस्थापक शेख मुजीबुर रहमान की मूर्ति को तोड़ दी है. बांग्लादेश की राजनीति में शेख मुजीबुर रहमान का कद कुछ ऐसा ही है जैसा भारत में महात्मा गांधी हैं. जिस तरह हम महात्मा गांधी को बापू के नाम से जानते हैं ठीक उसी तरह बांग्लादेश की आवाम में मुजीबुर रहमान, बंगबंधु के नाम से जाने जाते हैं। बांग्लादेश की आजादी और बंगबंधु: मुजीबुर रहमान ने भारत के सहयोग से 1971 में पाकिस्तानी जुर्म का मुकाबला किया और फिर बांग्लादेश के रूप में एक आजाद मुल्क की स्थापना करवाई. हालांकि, इतना बड़ा काम करने के बावजूद मुजीबुर रहमान को लेकर बांग्लादेश की आवाम का एक तबका हमेशा से उनके खिलाफ रहा। यही कारण है कि देश को पाकिस्तानी सेना और सरकार के जुर्म से मुक्ति दिलाने वाले शेख मुजीबुर रहमान की 15 अगस्त 1975 को उनके पूरे परिवार के साथ हत्या कर दी गई. उस वक्त वह बांग्लादेश के राष्ट्रपति थे. उनकी हत्या के बाद देश में सैन्य शासन स्थापित कर दी गई. इस हत्याकांड को कोई और नहीं बल्कि बांग्लादेश की सेना के एक धड़े ने ही अंजाम दिया था। अभी कुछ घंटे पहले तक बांग्लादेश की पीएम रहीं शेख हसीना और उनकी बहन इस हत्याकांड में बच गई थीं। क्योंकि उस वक्त ये दोनों बहनें भारत में पढ़ाई कर रही थीं। बांग्लादेश में कट्टरपंथी: दरअसल, बांग्लादेश की आवाम शुरू से दो धड़ों में बंटी रही है. एक धड़ा कट्टरपंथियों का है, जो पाकिस्तानी सेना का जुर्म सहने के बाद भी आज भी पाकिस्तान के करीब है. हालांकि, ऐसे कट्टरपंथियों की संख्या बहुत कम है. ये कट्टरपंथी समुदाय मुख्य रूप से बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) के समर्थक रहे हैं. इसकी नेता बेगम खालिदा जिया रही हैं. वह बांग्लादेश के एक पूर्व सैन्य शासक की बेगम हैं. बांग्लादेश का इतिहास रहा है कि जब भी आवामी लीग कमजोर पड़ती या जनता पर उसकी पकड़ ढीली पड़ती है तब-तब बीएनपी और कट्टरपंथी ताकतें मजबूत हो जाती हैं। ये कट्टरपंथी ताकतें इस्लाम के नाम पर पाकिस्तान का समर्थन करती हैं। इसमें अधिकतर लोग वे हैं जो मूल रूप से ऊर्दू बोलते हैं. दरअसल, 1947 में भारत के बंटवारे के वक्त बिहार और पूर्वी यूपी से बड़ी संख्या में मुस्लिम आबादी पूर्वी पाकिस्तान (मौजूदा बांग्लादेश) में जाकर बस गई. लेकिन, 1971 में पाकिस्तान के बंटवारे के कारण ये अपने ही मुल्क में बाहरी हो गए। इनके जेहन में अभी भी पाकिस्तान के प्रति प्रेम बना हुआ है। शेख हसीना के खिलाफ नाराजगी: ऐसे में बांग्लादेश के मौजूदा हालात को देखते हुए पाकिस्तानी हाथ से इनकार नहीं किया जा सकता। क्योंकि बीते कुछ समय से आवाम पर शेख हसीना की पकड़ कमजोर पड़ी है। उनकी नीतियों की आलोचना हो रही है. साथ ही लंबे समय (6 जनवरी 2009) से वह पीएम हैं। इस कारण उनके खिलाफ जबर्दस्त एंटी इनकम्बेंसी भी है। उन पर चुनावों में हेराफेरी के आरोप भी लगते रहे हैं।इन सभी कारणों के आधार पर आवाम में उनके खिलाफ नाराजगी से इनकार नहीं किया जा सकता. ऐसे में संभव है कि पाकिस्तानी खुफिया तंत्र ने इस नाराजगी और सुलगाने की कोशिश की।
जमात-ए-इस्लामी पर बैन से बिगड़े हालात: दरअसल शेख हसीना सरकार ने हाल ही में जमात-ए-इस्लामी, इसकी छात्र शाखा और इससे जुड़े अन्य संगठनों पर प्रतिबंध लगा दिया था. यह कदम बांग्लादेश में कई सप्ताह तक चले हिंसक विरोध प्रदर्शनों के बाद उठाया गया था. कहा जा रहा है कि सरकार की इस कार्रवाई के बाद ये संगठन शेख हसीना सरकार के खिलाफ सड़कों पर उतर आए हैं। बांग्लादेश में क्यों भड़की हिंसा?: बांग्लादेश में आरक्षण के मुद्दे को लेकर कई बार हिंसा भड़क चुकी है. प्रदर्शनकारियों की मांग थी कि 1971 के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के परिजनों के लिए 30 प्रतिशत सरकारी नौकरियों को आरक्षित करने वाली कोटा प्रणाली को समाप्त किया जाए. पहले जब हिंसा भड़की थी तब कोर्ट ने कोटे की सीमा को घटा दिया था. लेकिन हिंसा नहीं थमी और अब प्रदर्शनकारी सड़कों पर उतर आए हैं और हिंसा कर रहे हैं। अब तक 11,000 से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है।अधिकारियों ने दावा किया कि प्रदर्शनकारियों ने पुलिस स्टेशनों, सत्तारूढ़ पार्टी के कार्यालयों और उनके नेताओं के आवासों पर हमला किया और कई वाहनों को जला दिया. सरकार ने मेटा प्लेटफॉर्म फेसबुक, मैसेंजर, व्हाट्सएप और इंस्टाग्राम को बंद करने का आदेश दिया है।