“रक्षा बंधन” का अर्थ है “सुरक्षा का बंधन” कई नामों से इसे मनाने की है परंपरा
अशोक झा, सिलीगुड़ी: अक्सर “राखी” के नाम से जाना जाने वाला रक्षा बंधन एक पारंपरिक हिंदू उत्सव है जो भाई-बहन के बीच गहरे बंधन का जश्न मनाता है। “रक्षा बंधन” का अर्थ है “सुरक्षा का बंधन”, जो भाई-बहनों के बीच प्रेमपूर्ण और सुरक्षात्मक संबंध को दर्शाता है।भाई बहन के त्योहार रक्षाबंधन का भारत में खास महत्व है। बहनें इस दिन अपने भाइयों की कलाई पर “राखी” नामक एक पवित्र धागा बांधती हैं, जो उनके प्यार और उनके कल्याण के लिए प्रार्थना का प्रतीक है। वहीं भाई अपनी बहनों की जीवन भर रक्षा करने की शपथ लेते हैं और बदले में उपहार देते हैं। पूरे भारत में और हर जगह भारतीय समुदायों में खुशी और उत्साह के साथ मनाया जाने वाला यह त्योहार भाई-बहनों के बीच भावनात्मक बंधन को मजबूत करता है। वहीं यह परंपरा हिंदू पौराणिक कथाओं में भी निहित है, जहां देवी गंगा ने भगवान विष्णु को राखी बांधी थी और उन्होंने उनकी रक्षा की थी।
इस शुभ समय में बांध सकते हैं राखी:
राखी 19अगस्त 2024 दिन सोमवार को मनाई जाएगी। इस साल राखी पर सुबह भद्रा रहेगी और शाम को पंचक रहेगा। राखी बांधते समय भद्रा काल के मुहूर्त से दूर रहने की सलाह दी जाती है, क्योंकि इसे इस अनुष्ठान के लिए अशुभ माना जाता है। चूंकि रक्षा बंधन एक पवित्र त्योहार है जिसमें बहनें अपने भाइयों की समृद्धि और दीर्घायु की कामना करती हैं, इसलिए उन्हें इस अवधि से बचना चाहिए। भद्रा तिथि 19 अगस्त को सुबह 5:45 बजे शुरू होगी और 19 अगस्त को दोपहर 1:32 बजे समाप्त होगी। वहीं पंचक की बात करें तो पंचक 19 अगस्त को शाम 7:02 बजे से शुरू होगा और 20 अगस्त, 2024 को सुबह 5:55 बजे तक रहेगा। ऐसे में जो लोग भद्रा या पंचक से बचना चाहते हैं वो 19 अगस्त, 2024 को दोपहर 1:35 बजे से शाम 6:56 बजे के बीच राखी का त्योहार मना सकते हैं। राखी भारत के अलावा मॉरीशस, नेपाल और पाकिस्तान के कुछ हिस्सों में भी इस त्योहार को धूमधाम से मनाया जाता है।
आइये जानते हैं विभिन्न जगहों पर कैसे मनाया जाता है राखी बांधने का यह पर्व। कजरी पूर्णिमा :बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में कजरी पूर्णिमा काे विशेष रूप से मनाने की रीत चली आ रही है। इन क्षेत्रों के किसानों और महिलाओं के लिए यह एक खास दिन होता है। कजरी पूर्णिमा के दिन महिलाएं पेड़ के पत्तों के पात्रों में खेत से मिट्टी भरकर लाती हैं। इसमें जौ को बोया जाता है। इन पात्रों को अंधेरे में रखा जाता है। जहां ये पात्र रखे जाते हैं, वहां पर चावल के घोल से चित्रकारी भी की जाती है। कजरी पूर्णिमा के दिन सारी महिलाएं इन जौ को सिर पर रखकर जुलूस निकालती हैं और पास के किसी तालाब या नदी में इसे विसर्जित कर देती हैं। महिलाएं इस दिन उपवास रखकर अपने पुत्र व भाई की लंबी आयु की कामना करती हैं।
जानोपुन्यु : यह उत्तराखंड के कुमाऊं इलाके में मनाया जाने वाला पर्व है। राखी की तरह ही इस त्योहार पर यहां के लोग में जनेऊ को बदलने की परंपरा है। जनेऊ एक पवित्र धागा है, जिसे भारत के कई क्षेत्रों के लोग धारण करते हैं।
बना रहे भाई-बहन का प्यार: राम राखी लूंबा राजस्थान के कुछ हिस्सों में राखी को विशेष तरीके से मनाया जाता है। इस दिन यहां राम राखी लूंबा बांधी जाती है। यह राखी सामान्यतौर पर मिलने वाली राखियों से थोड़ी अलग होती है। इसमें डोरी लाल रंग की होती है और उस पर पीले रंग की पॉम-पॉम जैसी पीली बॉल लगी होती है, जो पीले धागे से बनी होती है।
जम्मू-कश्मीर में होता है काइट फेटिवल :
जम्मू-कश्मीर में राखी का त्योहार काइट स्टिवल के तौर पर मनाया जाता है। यहां महीने भर पहले से पतंग उड़ाना शुरू कर दिया जाता है और इस दिन खासतौर पर पतंगबाजी का लुत्फ लिया जाता है। जनेऊ पूर्णिमा: नेपाल में रक्षाबंधन का त्योहार सावन की पूर्णिमा को मनाया जाता है, लेकिन यहां इसे राखी न कह कर जनेऊ पूर्णिमा के नाम से संबोधित किया जाता है। इस दिन घर के बड़े लोग अपने से छोटे लोगों के हाथों में एक पवित्र धागा बांधते हैं। राखी के अवसर पर यहां एक खास तरह का सूप पिया जाता है, जिसे कवाती कहा जाता है। झूलन पूर्णिमा : उड़ीसा और पश्चिम बंगाल में रक्षाबंधन को झूलन पूर्णिमा के नाम से मनाया जाता है। इस दिन भगवान कृष्ण और राधा की पूजा की जाती है। साथ ही महिलाएं अपने भाइयों के अच्छे जीवन के लिए उनकी कलाइयों पर राखी बांधती हैं। गमहा पूर्णिमा :देश के पूर्वी हिस्से ओड़िशा में राखी को गमहा पूर्णिमा के नाम से मनाया जाता है। इस दिन लोग अपने घर की गाय और बैलों को सजाते हैं और एक खास तरह का पकवान, जिसे मीठा और पीठा कहा जाता है, बनाते हैं। राखी के दिन ओड़िशा में मीठा और पीठा को अपने दोस्तों और रिश्तेदारों में बांटा जाता है। यही नहीं, इस दिन राधा-कृष्ण की प्रतिमा को झूले पर बैठा कर झूलन यात्रा भी निकाली जाती है। नारियल पूर्णिमा : गुजरात, महाराष्ट्र और गोवा में रक्षाबंधन को नारियल पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है।नारियल पूर्णिमा के दिन इन जगहों पर समुद्र में नारियल प्रवाहित करने की परंपरा निभायी जाती है। इस दिन मछुआरे अपनी-अपनी नावों को सजाकर समुद्र के किनारे लाते हैं। नाचते गाते हैं और वरुण देवता को नारियल अर्पित कर प्रार्थना करते हैं कि उनका जीवन निर्वाह अच्छे से हो। नारियल इसलिए अर्पित किया जाता है, क्योंकि नारियल की तीन आंखे होने के कारण उसे शिव का प्रतीक माना जाता है। हमारे देश में किसी भी काम की शुरुआत से पहले भगवान को नारियल अर्पित करना उनसे आशीर्वाद लेने तथा उन्हें धन्यवाद देने का सबसे प्रचलित तरीका है। पवित्रोपन : गुजरात के कुछ हिस्सों में रक्षाबंधन को पवित्रोपन के नाम से मनाया जाता है। इस दिन गुजरात में भगवान शिव की पूजा की जाती है।