कौशकी अमावस्या मेला में तारापीठ में भक्तो का लगा तांता


– यहां राजा दशरथ के पुरोहित वशिष्ठ मुनि ने प्राप्त की थी सिद्धि
– यहां वामाखेपा को मां तारापीठ में दिए थे दर्शन, यहां से कोई नहाई जाता है खाली
तारापीठ से अशोक झा: सुविख्यात तीर्थस्थल तारापीठ में प्रति वर्ष भादो माह में होने वाले कौशिकी भादो अमावस्या मेला पर भक्तों का तांता लगा हुआ है। तारापीठ में कौशिकी अमावस्या मेला इस वर्ष 2 से 8 सितबंर तक चलेगा। कमेटी की ओर से पुलाव, पांच तरह की सब्जियां, पांच तरह की भुजिया, बलि के पाठा का पका मांस (मीट), भुनी हुई शोल मछली, मांग का माथा, पांच तरह के मिष्ठान्न, खीर आदि का भोग मां तारा को चढ़ाया गया। सीमावर्ती दुमका और पाकुड़ जिलों से भी बड़ी संख्या में श्रद्धालु इस मेला में आए हैं। पश्चिम बंगाल अपनी कला, साहित्य, संस्कृति और प्राचीन मंदिरों के लिए दुनिया भर में मशहूर है। यहां के समुद्र तट, खूबसूरत वन और ऐतिहासिक स्थल पर्यटकों के बीच काफी प्रसिद्ध है।भारत में कुल 51 शक्ति पीठ स्थित हैं जिसमें से 5 शक्ति पीठ वेस्ट बंगाल में है। जो कि बर्केश्वर, नालहाटी, बंदीकेश्वरी, फूलोरा देवी, और तारापीठ बंगाल में स्थित है। तारापीठ यहां सबसे प्रमुख शक्तिपीठ में से एक है। आज हम आपको तारापीठ के बारे में बताने जा रहें हैं। तारापीठ एक सिद्ध शक्तिपीठ है। तारापीठ मंदिर बंगाल के बीरभूमि जिले में मौजूद प्रमुख पर्यटन और धार्मिक स्थलों में से एक है। इस मंदिर से बंगाल के लोगों का आध्यात्मिक विश्वास जुड़ा हुआ है। तारापीठ मंदिर का इतिहास प्राचीन काल से संबंधित है। तारापीठ को मुनि वशिष्ठ का सिद्धासन माना जाता है, जो राजा दशरथ के पुरोहित थे। कहा जाता है, इसी स्थान पर महर्षि वशिष्ठ ने मां तारा की पूजा-अर्चना कर सिद्धियां प्राप्त की थीं। तारापीठ मंदिर हिंदू धर्म के लोगों का पवित्र धाम है। यहां पर सिद्ध पुरुष वामाखेपा का जन्म भी हुआ था। वामाखेपा का पैतृक गांव अटाला है, जो तारापीठ मंदिर से 2 किलोमीटर दूर है।
वामाखेपा को हुए थें मां तारापीठ के दर्शन: कहा जाता है की वामाखेपा को मां तारापीठ के दर्शन प्राप्त हुए थे। मंदिर के सामने महाश्मशान में उन्हें मां के दर्शन की प्राप्ति हुई थी। उसके बाद वामाखेपा सिद्ध पुरुष कहलाए। तारापीठ माता का ही एक रूप मां काली का रूप है। इस मंदिर में काली मां की प्रतिमा को पूजा की जाती है, तारापीठ मां के रूप में।
तारापीठ मंदिर का इतिहास: तारापीठ में स्थित तारा मंदिर बंगाल के ग्रामीण क्षेत्र में स्थित एक मध्यम आकार का मंदिर है। यह मंदिर एक तीर्थस्थल के रूप में प्रसिद्ध है, क्योंकि इसमें तारा देवी की प्रतिमा स्थापित है। मंदिर का आधार लाल ईंटों से बनी मोटी दीवारों से बना है। अधिरचना में कई मेहराबों वाले ढके हुए मार्ग हैं जो शिखर ( शिकार ) तक जाते हैं। गर्भगृह में छत के नीचे देवता की छवि स्थापित है। गर्भगृह में तारा की दो प्रतिमाएँ हैं। शिव को दूध पिलाती हुई माँ के रूप में दर्शाई गई तारा की पत्थर की प्रतिमा – “आदिम प्रतिमा” (तारा की प्रतिमा के भयंकर रूप के इनसेट में दिखाई देती है) को तीन फीट की धातु की प्रतिमा द्वारा छिपाया गया है, जिसे भक्त सामान्य रूप से देखते हैं। यह चार भुजाओं वाली तारा के उग्र रूप को दर्शाती है, जो खोपड़ियों की माला और उभरी हुई जीभ पहने हुए हैं। चांदी के मुकुट और लहराते बालों के साथ, बाहरी प्रतिमा को साड़ी में लपेटा गया है और उसके सिर पर चांदी की छतरी के साथ गेंदे की माला से सजाया गया है। धातु की प्रतिमा के माथे को लाल कुमकुम (सिंदूर) से सजाया गया है। पुजारी इस कुमकुम का एक छींटा लेते हैं और इसे तारा के आशीर्वाद के रूप में भक्तों के माथे पर लगाते हैं। भक्त नारियल, केले और रेशमी साड़ियाँ और असामान्य रूप से व्हिस्की की बोतलें चढ़ाते हैं । तारा की आदिम छवि को “तारा के सौम्य पहलू की नाटकीय हिंदू छवि” के रूप में वर्णित किया गया है।मां सती के आंखों के तारे गिरे थे यहां: तारापीठ में देवी की आंखों के तारे गिरे थे, इस कारण इसकी प्रसिद्धि तारापीठ के नाम से हुई। ऐसे एक मान्यता यह भी है कि यह स्थल बिहार के महेशी में है। देवी तारा की गणना दश महाविद्याओं में होती है जो शक्ति के रूप में देवी का तांत्रिक अवतार मानी जाती हैं जिनका निवास-स्थान श्मशान होता है। अपने भक्तों की आराधना एवं तंत्र साधकों की साधना से देवी शीघ्र प्रसन्न हो जाती हैं।बकरों की रक्त बलि दी जाती है यहां: मां तारापीठ मंदिर में बकरों की रक्त बलि प्रतिदिन दी जाती है। इस तरह की बलि चढ़ाने वाले भक्त देवता से आशीर्वाद मांगते हैं। बलि चढ़ाने से पहले वे मंदिर के पास स्थित पवित्र तालाब में बकरों को नहलाते हैं। देवता की पूजा करने से पहले वे पवित्र तालाब में स्नान करके खुद को शुद्ध भी करते हैं। फिर बकरे को एक खूंटे से बांध दिया जाता है, रेत के गड्ढे में एक निर्दिष्ट खंभे पर रख दिया जाता है, और एक विशेष तलवार से एक ही वार में बकरे की गर्दन काट दी जाती है। फिर बकरे के खून की थोड़ी मात्रा एक बर्तन में एकत्र की जाती है और मंदिर में देवता को अर्पित की जाती है। देवता के प्रति श्रद्धा के प्रतीक के रूप में भक्त गड्ढे से थोड़ा खून अपने माथे पर भी लगाते हैं।
मंदिर के कुंड में स्नान करने से दूर हो जातें हैं सारे रोग और कष्ट:
भक्त मंदिर परिसर में पूजा करने से पहले और पूजा के बाद भी मंदिर के समीप स्थित पवित्र तालाब (जीवित कुंड) में पवित्र स्नान करते हैं। कहा जाता है कि तालाब के पानी में उपचार करने की शक्ति होती है और यह मृतकों को भी जीवन प्रदान करता है।
मां तारा को जवा, कमल और नीले फूल पसंद:शिव शंकर सिंह पारिजात के आगे कहा कि मां तारा को जवा, कमल और नीले फूल अत्यंत प्रिय हैं, इस कारण श्रद्धालुगण इन्हें आवश्यक रूप से मां को अर्पित करते हैं। ऐसे तो यहां सालों भर भक्तों का तांता लगा रहता है, किंतु शनिवार और रविवार-सोमवार को मां तारा का दर्शन-पूजन परम आनंददायक तथा फलदायी माना जाता है।

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