आज राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ ( आरएसएस) मना रहा है अपना 99 वा स्थापना दिवस 100 वर्ष में करेगा प्रवेश
दैनिक 'शाखा' 28 मई 1926 से शुरू हुई,जहां शारीरिक, बौद्धिक व आध्यात्मिक का होता है विकास
अशोक झा, सिलीगुड़ी: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) आज 99 साल का हो गया. आज से करीब 99 साल पहले आज ही के दिन पांच स्वयंसेवकों के साथ डॉ. बलराम कृष्ण हेडगेवार ने इसकी शुरुआत की थी। आज संघ के लाखों स्वयंसेवक हैं। संघ के मुताबिक ब्रिटेन, अमेरिका, फिनलैंड, मॉरीशस समेत 39 देशों में भी है। विदेशो में संघ की शाखाओं में ड्रेस कोड भी अलग होता है। RSS का मुख्य उद्देश्य हिंदू समाज का संगठन, चरित्र निर्माण, और राष्ट्रवादी भावना को मजबूत करना है।
आरएसएस की स्थापना केशव बलराम हेडगेवार ने की थी। संघ की स्थापना 27 सितंबर 1925 को विजयदशमी के दिन की गई थी। यही वजह है कि हर साल आरएसएस विजयादशमी पर अपना स्थापना दिवस मनाता है। संघ की स्थापना डॉ केशव बलिराम हेडगेवार ने एक छोटे समूह के साथ की थी। आरएसएस की कार्यशैली का मूल आधार दैनिक शाखा को माना जाता है। जहां अनुशासन का बड़ा महत्व है। शाखा में तय समय व स्थान पर लोग एकत्र होते हैं जहां शारीरिक, बौद्धिक व आध्यात्मिक विकास से संबंधित गतिविधियों व कार्यक्रमों का आयोजन होता है। रिपोर्ट के मुताबिक पहली ऐसी दैनिक ‘शाखा’ 28 मई 1926 से शुरू हुई, जिसका एक नियमित कार्यक्रम था। जिस स्थान पर आरएसएस पहली शाखा आरंभ हुई थी, वह नागपुर का मोहिते बाड़ा मैदान था, जो कि मौजूदा में आरएसएस मुख्यालय परिसर का हिस्सा है। वर्तमान में संघ की 60,000 से अधिक दैनिक शाखाएं हैं। संघ की स्थापना 27 सितंबर 1925 को विजयदशमी के दिन की गई थी। यही वजह है कि हर साल आरएसएस विजयादशमी पर अपना स्थापना दिवस मना रहा है। क्या है RSS का संविधान: RSS के संगठन में कई नियम और सिद्धांतों का पालन होता है, लेकिन संघ के पास एक विस्तृत लिखित संविधान नहीं है जैसा कि अन्य राजनीतिक या सामाजिक संगठनों के पास होता है। इसके बजाय, संघ के कार्य और संरचना उसके पुराने नेताओं के विचारों और उनके अनुभवों पर आधारित हैं। संघ के कार्यों का संचालन और नेतृत्व स्वयंसेवकों की अनुभवजन्य पद्धति पर चलता है, जिसमें अनुशासन, संगठन और नैतिक मूल्यों का पालन अनिवार्य होता है। कौन-कौन बने RSS के सरसंघचालक डॉक्टर केशवराव बलिराम हेडगेवार उपाख्य डॉक्टर जी (1925 – 1940)माधव सदाशिवराव गोलवलकर उपाख्य गुरूजी (1940 – 1973) मधुकर दत्तात्रय देवरस उपाख्य बालासाहेब (1973 – 1993) प्रोफेसर राजेंद्र सिंह उपाख्य रज्जू भैया (1993 – 2000) कृपाहल्ली सीतारमैया सुदर्शन उपाख्य सुदर्शनजी(2000 – 2009) डॉ॰ मोहनराव मधुकरराव भागवत
बंगाल में आरएसएस का विस्तार: बंगाल पर विशेष दीर्घकालीन योजना के साथ काम कर रही है। यही कारण है की आरएसएस ने सिलीगुड़ी में पथ संचलन के माध्यम से अपनी शक्ति का एक झलक दिखाया है। योजना के तहत संघ ने बंगाल को तीन प्रांत में बांट क्षेत्र प्रचारक नियुक्त किए है। दरअसल, पिछले दिनों भाजपा अपनी तमाम कोशिशों के बावजूद भी विधानसभा चुनाव हार गई थी। बंगाल में भाजपा की जमीन तैयार करने के लिए अब संघ ने मिशन बंगाल प्लान बनाया है। बंगाल को तीन प्रांतों में बांटा है। पहला दक्षिण बंगाल जिसका मुख्यालय कोलकाता होगा। दूसरा मध्य बंगाल जिसका मुख्यालय बर्धमान होगा। तीसरा उत्तर बंगाल जिसका मुख्यालय सिलीगुड़ी होगा। इसके लिए भैय्याजी जोशी विहिप तो डॉ. कृष्ण गोपाल विद्या भारती के संपर्क अधिकारी बनाया है। आरएसएस के पूर्व सरकार्यवाह भय्याजी जोशी अब संघ की ओर से विश्व हिंदू परिषद के संपर्क अधिकारी होंगे। वहीं, डॉ. कृष्ण गोपाल विद्या भारती के संपर्क अधिकारी है यानी उनके कार्यों पर नजर रखेंगे। भैय्याजी जोशी पहले भी सरकार्यवाह रहते हुए विहिप का काम देखते थे। सह सरकार्यवाह अरुण कुमार भाजपा और संघ के बीच समन्वय का काम देखेंगे। पिछले एक दशक के दौरान बंगाल में आरएसएस ने अपनी शाखाओं की संख्या बढ़ाने में उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की है। संघ प्रमुख मोहन भागवत ने बंगाल दौरे में पदाधिकारियों के साथ चर्चा में राज्य में संघ की शाखाओं की संख्या में वृद्धि पर संतोष जताया है। संघ सूत्रों के अनुसार, देशभर में इस समय 34 हजार 900 स्थानों पर संघ की करीब 56 हजार 700 सक्रिय शाखाएं हैं। जिनमें से चार प्रतिशत से अधिक बंगाल में है।
करीब ढाई हजार हुई शाखाओं की संख्या: ताजा रिपोर्ट के मुताबिक बंगाल में इस समय संघ की सक्रिय शाखाओं की संख्या करीब ढाई हजार है। सूत्रों के मुताबिक संघ प्रमुख ने खुद कहा कि बंगाल में अच्छा काम हो रहा है। उन्होंने राज्य में संघ के पदाधिकारियों को और ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचने का संदेश दिया। यहां संघ से जुड़े लोगों से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार, 2011 में बंगाल में संघ की शाखाओं की संख्या 750 थी।वहीं, 2021-22 में यह ढ़ाई हजार पर पहुंच गया है। वहीं, संघ नेताओं को मार्च में वार्षिक शिविर में नई रिपोर्ट आने पर यह संख्या और बढ़ने की उम्मीद है। लोगों तक RSS की पहुंच बढ़ी है। फिलहाल राज्य में सांगठनिक रूप से तीन हिस्सों में बांटकर यानी दक्षिण बंगाल, मध्य बंगाल और उत्तर बंगाल इकाई के जरिए शाखाओं का प्रबंधन हो रहा है। संघ पदाधिकारियों के अनुसार, इस समय पश्चिम मेदिनीपुर, हावड़ा, बारासात और बारुईपुर फिलहाल राज्य में संघ के संगठनात्मक जिलों में सबसे आगे है, जहां सबसे ज्यादा शाखाएं चल रही है। उनके अनुसार, सेवा कार्य और ग्राम विकास योजना के माध्यम से संघ के लोग यहां काम को आगे बढ़ा रहे हैं। इससे अधिक लोगों तक पहुंचने में सफलता मिली है।
लोगों की समग्र जीवन शैली में सुधार पर जोर: प्रत्येक सांगठनिक जिले में एक ब्लाक का चयन कर ग्राम विकास योजना का कार्य चल रहा है। जहां बाल शिक्षा से लेकर स्वास्थ्य, सामाजिक कार्यक्रम, शारीरिक शिक्षा और अन्य परोपकारी कार्यक्रमों से उस क्षेत्र के लोगों की समग्र जीवन शैली में सुधार पर जोर दिया जा रहा है। संघ पदाधिकारियों के अनुसार झाडग्राम, हुगली, उत्तर 24 परगना, बद्धमान व आसनसोल में यह काम सबसे आगे है।इनको सौंपा गया है दायित्व: संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर ने कहा था कि, दक्षिण बंगाल के प्रांत प्रचारक जलधर महतो को सह क्षेत्र प्रचारक का दायित्व सौंपा गया है। संघ ने बंगाल और ओडिशा में बड़ा बदलाव किया है। पूर्व क्षेत्र जिसमें बंगाल, ओडिशा सिक्किम और अंडमान प्रांत शामिल हैं। इनके क्षेत्र प्रचारक प्रदीप जोशी को अखिल भारतीय सह संपर्क प्रमुख का दायित्व दिया गया। पूर्व क्षेत्र के सह क्षेत्र प्रचारक रमा पदो पाल को क्षेत्र प्रचारक बनाया गया। प्रदीप जोशी का केंद्र चंडीगढ़ होगा। दक्षिण बंगाल के प्रांत प्रचारक जलधर महतो को सह क्षेत्र प्रचारक का दायित्व दिया गया है। जबकि, सह प्रांत प्रचारक प्रशांत भट्ट को दक्षिण बंगाल का प्रांत प्रचारक का काम देख रहे है। वर्तमान केंद्र की भारत सरकार के गृह मंत्रालय ने एक आदेश जारी करते हुए सरकारी कर्मचारियों के आरएसएस के कार्यक्रमों में शामिल होने पर लगा प्रतिबंध हटा दिया है। इसके लिए केंद्र सरकार ने 1966, 1970 और 1980 में तत्कालीन सरकारों द्वारा जारी उन आदेशों में संशोधन किया है, जिनमें सरकारी कर्मचारियों के आरएसएस की शाखाओं और उसकी अन्य गतिविधियों में शामिल होने पर रोक लगाई गई थी। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने मोदी सरकार के इस फैसले का स्वागत किया है। जबकि इस फैसले को लेकर विपक्ष हमलावर है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) का सफर 99 साल का हो चुका है। इस सफर के दौरान आरएसएस ने कई उतार-चढ़ाव देखे। एक दौर वो भी था जब सरकार को आरएसएस पर प्रतिबंध लगाना पड़ा था।संघ पर एक बार नहीं बल्कि तीन बार प्रतिबंध लगाया जा चुका है। लेकिन इसके बावजूद आरएसएस का कारवां आगे बढ़ता रहा। आरएसएस संवाद के जरिए लोगों से जुड़ता रहा। आज यही वजह है कि देश की राजनीति में आरएसएस का बड़ा दखल माना जाता है। सवाल उठता है की क्या है आरएसएस: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) दुनिया का सबसे बड़ा स्वैच्छिक संगठन माना जाता है और इसके स्वयंसेवक देश भर में सक्रिय हैं। आरएसएस को कई लोग भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का वैचारिक संरक्षक भी मानते हैं, जो कि इस वक्त दुनिया की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टियों में से एक है, और वर्तमान में लगातार एनडीए के सहयोगी दलों के साथ तीसरी बार सरकार बना चुकी है। मौजूदा दौर में भी देश के कई राज्यों में बीजेपी की सरकारें हैं और वह देश की सबसे ताकतवर राजनीतिक पार्टी बन चुकी है। बीजेपी पार्टी के ज्यादातर बड़े नेता मूलत: संघ से जुड़े हुए हैं जिनमें स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी शामिल हैं, जिन्होंने संघ में लंबे समय तक कार्य किया है।आरएसएस को कई लोग भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का वैचारिक संरक्षक भी मानते हैं, जो कि इस वक्त दुनिया की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टियों में से एक है।
संघ पर तीन बार लगा बैन: संघ पर तीन बार प्रतिबंध लगाया जा चुका है. आजादी मिले एक साल भी नहीं हुआ था कि आरएसएस को प्रतिंबध का सामना करना पड़ा. सबसे पहले 30 जनवरी, 1948 को महात्मा गांधी की हत्या के बाद आरएसएस पर प्रतिबंध लगा दिया गया था. इसके पीछे की वजह ये है कि महात्मा गांधी की हत्या को संघ से जोड़कर देखा गया। 18 महीने तक संघ पर प्रतिबंध लगा रहा। ये प्रतिबंध 11 जुलाई, 1949 को तब हटा जब देश के उस वक्त के गृहमंत्री सरदार बल्लभ भाई पटेल की शर्तें तत्कालीन संघ प्रमुख माधवराव सदाशिव गोलवलकर ने मान लीं. लेकिन ये प्रतिबंध इन शर्तों के साथ हटा कि संघ अपना संविधान बनाए और उसे प्रकाशित करे, जिसमें चुनाव की खास अहमियत होगी और लोकतांत्रिक व्यवस्था के तहत चुनाव होगा. इसके साथ ही आरएसएस की देश की राजनीतिक गतिविधियों से पूरी तरह से दूरी बनाकर रखेगा।महात्मा गांधी की हत्या के बाद आरएसएस पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। इसके पीछे की वजह ये है कि महात्मा गांधी की हत्या को संघ से जोड़कर देखा गया। आरएसएस पर दूसरी बार क्यों लगा बैन: आरएसएस को दूसरी बार प्रतिबंध का समाना इमरजेंसी के दौर में करना पड़ा। इंदिरा गांधी ने साल 1975 जब देश में इमरजेंसी लगाई तो आरएसएस ने इसका जमकर विरोध किया था। इतने जोरदार विरोध के चलते बड़ी संख्या में आरएसएस के लोगों को बड़ी संख्या में जेल जाना पड़ा। इस दौरान आरएसएस पर 2 साल तक पाबंदी लगी रही। इमरजेंसी के बाद जब चुनाव की घोषणा हुई तो जनसंघ का जनता पार्टी में विलय हो गया। इसके बाद साल 1977 में जनता पार्टी सत्ता में आई तब जाकर संघ पर लगा प्रतिबंध हटाया गया।
आरएसएस पर तीसरी बार बैन लगने की वजह : आरएसएस पर तीसरी बार प्रतिबंध साल 1992 में लगा। दरअसल पहली बार बीजेपी ने 1984 का लोकसभा चुनाव लड़ा इस चुनाव में पार्टी महज 2 सीटों पर सिमट गई। लेकिन बाबरी मस्जिद ने राजनीतिक परिदृश्य बिल्कुल पूरी तरह बदल दिया। 1986 में अयोध्या के विवादित परिसर का ताला खोल दिया गया और वहां से मंदिर-मस्जिद की राजनीति गर्मा गई। इसी मौके को भाजपा और RSS ने भुना लिया. नतीजतन इसको लेकर 1986 से 1992 के बीच खूब टकराव हुआ।जगह-जगह हिंसा हुई, लोगों की जानें गई. साल 1992 में अयोध्या में भीड़ ने विवादित ढांचे का गुंबद गिरा दिया। इससे देश के कई हिंसों में तनाव पसर गया. हिंसा होने लगी और माहौल खराब होने लगा। देश की स्थिति देख तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव ने आरएसएस पर भी प्रतिबंध लगा दिया। इसके बाद एक बार फिर जांच चली. लेकिन जांच में RSS के खिलाफ कुछ नहीं मिला। नतीजतन आखिर में तीसरी बार भी 4 जून 1993 को सरकार को RSS पर से प्रतिबंध हटाना पड़ा।
क्या है वो आदेश जिसमें सरकारी कर्मचारियों पर लगा बैन:
केंद्र सरकार ने 1966, 1970 और 1980 में तत्कालीन सरकारों द्वारा जारी उन आदेशों में संशोधन किया गया है, जिनमें सरकारी कर्मचारियों के आरएसएस की शाखाओं और उसकी अन्य गतिविधियों से दूर रखने के लिए रोक लगाई थी। आरोप है कि पूर्व सरकारों ने सरकारी कर्मचारियों के संघ के कार्यक्रमों में शामिल होने पर रोक लगा दी थी। आरएसएस की गतिविधियों में शामिल होने पर कर्मचारियों को सजा देने तक का प्रावधान भी लागू किया गया. सरकारी सेवाओं से जुड़े लाभ लेने के लिए कर्मचारी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की गतिविधियों से दूर रहते थे।आरएसएस ने किया फैसले का स्वागत: आरएसएस ने सरकारी कर्मचारियों के संघ की गतिविधियों में शामिल होने पर लगी रोक हटाने के केंद्र सरकार के फैसले का स्वागत किया। आरएसएस ने कहा कि फैसले से देश की लोकतांत्रिक प्रणाली मजबूत होगी. उसने पूर्ववर्ती सरकारों पर अपने राजनीतिक हितों के कारण सरकारी कर्मचारियों को संघ की गतिविधियों में हिस्सा लेने से प्रतिबंधित करने का आरोप भी लगाया। प्रतिबंध हटाने संबंधी सरकारी आदेश के सार्वजनिक होने के एक दिन बाद आरएसएस प्रवक्ता सुनील आंबेकर ने एक बयान में कहा, “सरकार का ताजा फैसला उचित है और यह भारत की लोकतांत्रिक प्रणाली को मजबूत करेगा।विपक्ष ने सरकार के फैसले की आलोचना की: विपक्ष के कई नेताओं ने सरकारी कर्मचारियों पर संघ की गतिविधियों में हिस्सा लेने पर लगा प्रतिबंध हटाने के केंद्र के फैसले की आलोचना की है। कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने एक ऑफिस मेमोरेंडम का हवाला देते हुए एक्स पर कहा, ‘फरवरी 1948 में गांधीजी की हत्या के बाद सरदार पटेल ने RSS पर प्रतिबंध लगा दिया था। जिसे अच्छे आचरण के आश्वासन पर हटाया गया. फिर भी RSS ने नागपुर में कभी तिरंगा नहीं फहराया. साल 1966 में, आरएसएस की गतिविधियों में भाग लेने वाले सरकारी कर्मचारियों पर प्रतिबंध लगाया गया था. यह 1966 में बैन लगाने के लिए जारी किया गया आधिकारिक आदेश है. 9 जुलाई 2024 को, 58 साल का प्रतिबंध हटा दिया गया जो अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्री के कार्यकाल के दौरान भी लागू था।