बिहार कोकिला शारदा सिन्हा का अंतिम संस्कार कल, अंतिम दर्शन के लिए पटना में रखा गया पार्थिव शव

बंगाल बिहार सीमांचल से अशोक झा: बिहार कोकिला शारदा सिन्हा का अंतिम संस्कार कल होगा। पटना के राजेंद्र नगर स्थित उनके आवास पर उनका पार्थिव शरीर अंतिम दर्शन के लिए रखा गया है। तिरंगे में लिपटे पार्थिव शरीर को देखने के लिए उनके फैंस की भीड़ उमड़ पड़ी। देश और दुनिया में मशहूर लोक गायिका शारदा सिन्हा का अंतिम संस्कार पटना में राजकीय सम्मान के साथ कल होगा। शारदा सिन्हा का निधन मंगलवार को दिल्ली में हुआ। बुधवार को उनका पार्थिव शरीर पटना पहुंच गया है। शारदा सिन्हा का अंतिम संस्कार पटना में राजकीय सम्मान के साथ होगा।उससे पहले उनका पार्थिव शरीर अंतिम दर्शन के लिए रखा जाएगा। वे पिछले 11 दिनों से कैंसर जैसी बीमारी की वजह से दिल्ली के AIIMS में भर्ती थीं और मंगलवार की रात उन्होंने अपनी अंतिम सांस ली। शारदा सिन्हा का अंतिम संस्कार 7 नवंबर को पटना में राजकीय सम्मान के साथ होगा। शारदा सिन्हा के शव को पटना लाकर अंतिम दर्शन के लिए रखा गया है। शारदा सिन्हा के निधन की खबर ने न केवल बिहार बल्कि पूरे देश को गमगीन कर दिया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बिहार के CM नीतीश कुमार ने उनके निधन पर गहरा शोक व्यक्त किया। सांसद और भोजपुरी सिनेमा के लोकप्रिय अभिनेता मनोज तिवारी ने बताया कि शारदा सिन्हा के शव को दिल्ली से पटना लाकर अंतिम दर्शन के लिए रखा गया है, उनका अंतिम संस्कार पटना में राजकीय सम्मान के साथ होगा. शारदा सिन्हा के परिजनों ने फैसला लिया कि उनका अंतिम संस्कार (07 सितंबर) कल किया जाएगा।शारदा सिन्हा ने अपने करियर की शुरुआत मैथिली गीतों से की थी।बिहार के सुपौल जिले में जन्मीं शारदा सिन्हा ने अपने करियर की शुरुआत मैथिली गीतों से की थी, लेकिन उनकी आवाज़ ने भोजपुरी और मगही सहित अन्य भाषाओं के लोकगीतों को भी अमर बना दिया. उन्होंने न केवल क्षेत्रीय संगीत को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया, बल्कि छठ जैसे पवित्र पर्वों से जुड़े गीतों के माध्यम से बिहार की संस्कृति को वैश्विक पहचान दिलाई।पद्म श्री और पद्म भूषण जैसे प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित: शारदा सिन्हा को पद्म श्री और पद्म भूषण जैसे प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित किया गया था. उन्होंने अपने गीतों में गांव, संस्कृति और त्योहारों की महक भर दी थी. आज उनकी आवाज की कमी से बिहार के लोक संगीत में एक गहरा खालीपन महसूस हो रहा है, जिसे भर पाना शायद कभी मुमकिन नहीं होगा।क्या है राजकीय सम्मान के साथ अंतिम
संस्कार : नियमों के मुताबिक वर्तमान प्रधानमंत्री, पूर्व प्रधानमंत्री, वर्तमान और पूर्व केंद्रीय मंत्री, मौजूदा और पूर्व राज्य मंत्रियों का अंतिम संस्कार राजकीय सम्मान के साथ होता है। हालांकि धीरे-धीरे अलिखित तौर पर नियम बदल गए। अब राज्य सरकार भी अपने यहां के गणमान्य व्यक्तियों के निधन पर उनका अंतिम संस्कार राजकीय सम्मान के साथ करा सकती हैं। सिनेमा से लेकर साहित्य और दूसरी विधाओं के लोगों का अंतिम संस्कार राजकीय सम्मान के साथ किया जा सकता है। किसी शख़्सियत की अंत्येष्टि राजकीय सम्मान के साथ कराने के लिए राज्य के मुख्यमंत्री अपने कैबिनेट के सहयोगियों से सलाह-मशविरा कर सकते हैं। राज्य सरकार के फैसला लेने के बाद इसकी जानकारी कमिश्नर, पुलिस आयुक्त, पुलिस अधीक्षक और तमाम वरिष्ठ अधिकारियों को दी जाती है और फिर राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार की तैयारी होती। इसमें क्या-क्या होता है?:राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार के दौरान पार्थिव शरीर को तिरंगे में लपेटा जाता है। भारतीय ध्वज संहिता के मुताबिक राजकीय सम्मान में राष्ट्रीय ध्वज को आधा झुका दिया जाता है। दिवंगत शख्सियत के सम्मान में मिलिट्री बैंड या पुलिस बैंड का संगीत बजता है और फिर बंदूकों से सलामी दी जाती है।हाल के सालों में गैर राजनीतिक शख्सियतों में मदर टेरेसा, सत्य साईं बाबा, श्रीदेवी जैसे लोगों का अंतिम संस्कार राजकीय सम्मान के साथ हो चुका है। यह भी जानना जरूरी: यहां एक चीज और समझनी जरूरी है कि किसी बड़े शख्सियत के निधन पर सरकार राष्ट्रीय शोक, सार्वजनिक अवकाश भी घोषित करती है और राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार करवा सकती है. हालांकि जरूरी नहीं है कि किसी शख्सियत के निधन के बाद यह तीनों चीजें हों. साल 1997 में केंद्र सरकार ने एक नोटिफिकेशन जारी किया. जिसमें कहा गया कि वर्तमान प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति के निधन की स्थिति में ही सार्वजनिक अवकाश घोषित किया जा सकता है। कैसे शारदा सिन्हा ने बनाया मुकाम: शारदा सिन्हा ने अपनी गायकी की शुरुआत 1970 के दशक में की थी. उन्होंने भोजपुरी, मैथिली, हिंदी के तमाम गीत गाए. उनके विवाह गीत से लेकर छठ गीत खूब चर्चित हुए। उनकी गायकी में बिहार के पलायन से लेकर महिलाओं के संघर्ष की कहानी दिखती थी. शारदा सिन्हा ने तमाम बॉलीवुड फिल्मों के लिए भी गीत गाया. जैसे फिल्म ‘हम आपके हैं कौन’ में बाबुल गाना उन्होंने ही गाया था. बाद में यह गीत बेटी की विदाई के दौरान बजने वाला सबसे चर्चित गीत बन गया। शारदा सिन्हा से पहले उनके परिवार में कोई गायकी की दुनिया में नहीं था. सिन्हा को बचपन से ही गाने का शौक था और उनके पिता ने उनकी कला को भांप लिया था. शारदा सिन्हा एक इंटरव्यू में कहती हैं कि मेरे पिता ने ही मुझे इस बात की छूट दी कि मैं जो चाहूं वह कर सकती हूं. जब छठी कक्षा में थी तभी पंडित रघु झा से संगीत सीखना शुरू कर दिया था।बिहार के सुपौल जिले के हुलास गांव में जन्मी शारदा सिन्हा की जब शादी हुई तो ससुराल में गायकी के खिलाफ विरोध का स्वर उठा, लेकिन उनके पति ब्रज किशोर सिन्हा ने उनका खूब साथ दिया. हर कदम पर उनके साथ खड़े रहे। 2 महीने पहले ही शारदा सिन्हा के पति का देहांत हो गया था। पति का निधन उनके लिए वज्रपात जैसा था. वह तभी से सदमे में थीं और उनकी तबीयत बिगड़ती चली गई।

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