क्यों इतना जटिल होता जा रहा कोलकोता में ट्रेनी लेडी डॉक्टर रेप हत्याकांड, जिसे सीबीआई भी नहीं सुलझा पा रही

क्या इसके पीछे कोई दूसरा ही खेल तो नहीं, लगातार बढ़ने लगा है आक्रोश

कई चर्चित वकीलों ने भी अपने हाथ पीछे खींच लिए, राज्य सरकार पर उठता था है अंगुली

अशोक झा, कोलकोता: कोलकाता के आरजीकर मेडिकल कॉलेज हॉस्पिटल में ट्रेनी डॉक्टर के साथ हुए कथित रेप और हत्या के मामले में इंसाफ की मांग को लेकर डॉक्टरों ने लंबे प्रदर्शन का ऐलान किया है। डॉक्टरों के संगठन संयुक्त मंच (ज्वाइंट प्लेटफॉर्म ऑफ डॉक्टर्स, जेपीडी) ने इस सिलसिले में पुलिस से अनुमति मांगी है। कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज में ट्रेनी महिला डॉक्टर से दरिंदगी मामले पर बड़ी जानकारी सामने आ रही है।
हाल ही में सीबीआई को केंद्रीय फोरेंसिक अनुसंधान प्रयोगशाला (CFSL) रिपोर्ट सौंपी गई। इस रिपोर्ट में चौंकाने वाला खुलासा हुआ है। इस वजह ये है कि अब पीड़ित परिवार ने सीबीआई की तफ्तीश पर ही सवाल खड़े कर दिए हैं। इस मामले में नए सिरे से जांच की मांग करते हुए हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है।हाई कोर्ट ने इस पर 2 जनवरी को सुनवाई की तारीख तय की है। उधर, पीड़ित पक्ष की ओर से केस की पैरवी कर रहे दो नामी वकीलों ने अचानक से इस केस से अपना नाम वापस ले लिया है।ऐसे में गुनहगार को कब तक सजा होगी, होगी भी या नहीं, ये फिलहाल कोई नहीं जानता।सीबीआई ने इस मामले में 10 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट में स्टेटस रिपोर्ट सौंपी थी, अब सुप्रीम कोर्ट में अगली सुनवाई 17 मार्च को है। अब तक अगर इस मामले में कोई असरदार प्रगति नहीं हुई, तो पीड़ित पक्ष सुप्रीम कोर्ट में अपनी शिकायत दर्ज करा सकता है।फिलहाल अभियोजन पक्ष के करीब 81 गवाहों में से 43 गवाहों की गवाहियां हो चुकी है. लेकिन अजीब ये भी है कि सीबीआई ने अब तक इस मामले में पीड़ित ट्रेनी डॉक्टर की मां की गवाही भी दर्ज नहीं की है. दो वकीलों के अचानक इस केस से हट जाने का नतीजा ये हुआ कि 12 दिसंबर को ट्रायल कोर्ट में पीड़ित पक्ष की ओर बात रखने वाला कोई था ही नहीं. ऐसे में 3 में से 2 आरोपियों को जमानत मिल गई, जिससे निराश होकर पीड़िता के परिजनों ने सिरे से जांच की मांग की है.

इसके लिए 19 दिसंबर को हाई कोर्ट में अर्जी लगाई है. इस मामले में पीड़ित परिवार ने पहले सीनियर लॉयर बिकास रंजन भट्टाचार्य को अप्वाइंट किया था, जिन्होंने केस छोड़ दिया. भट्टाचार्य लोअर कोर्ट में पीड़ित पक्ष की पैरवी कर रहे थे, जबकि सुप्रीम कोर्ट के लिए पीड़ित परिवार किसी और वकील को नियुक्त करना चाहता था, कहा जा रहा है कि भट्टाचार्य ने इसी वजह से खुद को इस केस से अलग कर लिया. इसके बाद वकील वृंदा ग्रोवर की टीम ने भी 11 दिसंबर को केस छोड़ दिया.

हालांकि, उन्होंने इसकी कोई वजह भी नहीं बताई. फिलहाल सीनियर लॉयर करुणा नंदी इस मामले में पीड़ित परिवार का पक्ष कोर्ट में रख रही हैं. वो पहले से ही इस मामले को सुप्रीम कोर्ट में देख रही हैं. जबकि ट्रायल कोर्ट में तीन और वकील इस केस को रिप्रजेंट कर रहे हैं. क्योंकि ये रिपोर्ट ये बताती है कि मौका ए वारदात पर यानी जिस जगह से पीड़ित डॉक्टर की लाश बरामद हुई, वहां ना तो उस मैट्रेस पर और ना ही सेमिनार रूम में कहीं और जोर-जबरदस्ती के निशान मिले हैं.

अब सवाल ये उठता है कि यदि डॉक्टर के साथ रेप और कत्ल की वारदात उसी सेमिनार रूम में और उसी मैट्रेस पर हुई, तो फिर वहां संघर्ष के निशान क्यों नहीं हैं? इसी के साथ एक सवाल ये भी उठता है कि यदि वहां संघर्ष के निशान मौजूद नहीं हैं, तो इसका मतलब कहीं ये तो नहीं कि लड़की के साथ ज्यादती कहीं और हुई और फिर लाश को सेमिनार रूम में ला कर फेंक दिया गया? फिलहाल सीएफएसएल की इस रिपोर्ट ने कुछ ऐसे सवाल खड़े कर दिए हैं.

 

दूसरे अल्फाज़ में कहें तो इस रिपोर्ट ने मामले को लेकर नए सिरे से असमंजस के हालात पैदा कर दिए हैं. लेकिन इससे पहले कि हम इस रिपोर्ट के हवाले से पैदा हुए इन सवालों की गहराई में और उतरने की कोशिश करें, आइए से पहले रिपोर्ट के आखिरी पेज यानी पेज नंबर 12 पर एक निगाह डालते हैं, जिसमें मौका ए वारदात को लेकर प्वाइंट वाइज़ यानी बिंदुवार तरीके से कुछ बातें लिखी हैं…

प्वाइंट नंबर 1:- लकड़ी के स्टेज के ऊपर रखे मैट्रेस के अलावा उसके आस-पास, स्टेज पर, पास में रखे ब्लू शीट टॉप वाले लकड़ी के टेबल पर, जांच में कहीं भी कोई बायलॉजीकल स्टेन यानी किसी इंसान के शरीर के किसी डिपोज़िट के दाग़ नहीं मिले.

प्वाइंट नंबर 2:- लकड़ी के स्टेज पर रखे मैट्रेस के अलावा सेमिनार रूम के फ़र्श पर भी कहीं कोई बायलॉजिकल स्टेन नहीं मिला, जबकि सेमिनार रूम को ही मौका ए वारदात बताया गया था.

प्वाइंट नंबर 3:- मौके पर मिले सुराग (मसलन सीएफएसएल दिल्ली की टीम की ओर से इकट्ठा किए गए दवाई का फटा हुआ रैपर, मोबाइल का बैक कवर, फटे हुए पेपर के टुकड़े, मैट्रेस से काट कर निकाले गए दाग के टुकड़े) इस मामले में आगे की कार्रवाई के लिए सीबीआई के जांच अधिकारी के हवाले कर दिए गए थे.

प्वाइंट नंबर 4:- मैट्रेस के कट मार्क एरिया पर गौर करने से ये साफ है कि ये मैट्रेस के उसी एरिया के हिस्से हैं, जहां पीड़ित लड़की का सिर और पेट का निचला हिस्सा था. हालांकि आरोपी और पीड़ित लड़की के बीच यहां हुए संभावित संघर्ष के कोई भी निशान इस जगह पर मौजूद नहीं थे. जैसे कि मैट्रेस, लकड़ी के स्टेज या सेमिनार हॉल के अंदर कहीं और.

प्वाइंट नंबर 5:- इस बात की संभावना कम है कि कोई बगैर किसी की निगाहों में आए, अपराध को अंजाम देने के लिए सेमिनार हॉल के अंदर के दाखिल हो सकता है. (क्योंकि अस्पताल में सातों दिन और चौबीसों घंटे, डॉक्टर, नर्स, अटेंडीज़ और दूसरे लोग मौजूद होते हैं)

 

यानी ये रिपोर्ट ये तो बताती है कि मौका ए वारदात पर पीड़ित लड़की और आरोपी के बीच संघर्ष के कोई सबूत नहीं हैं. ऐसे में सवाल ये उठता है कि अगर उसी हॉल के अंदर रेप और कत्ल जैसी वारदात हुई है, तो फिर संघर्ष के निशान कहां चले गए? आपको याद होगा शुरू से ही इस मामले में सीन ऑफ क्राइम के साथ छेड़छाड़ करने की बात कही जाती रही है, इस रिपोर्ट के सामने आने के बाद सवाल उठता है कि कहीं ऐसा तो नहीं कि किसी ने सीबीआई सीएफएसएल के एक्सपर्ट्स के सीन ऑफ क्राइम के मुआयने से पहले ही सीन ऑफ क्राइम को बदल दिया. यदि हां, वो कौन है. फिलहाल इस सवाल से भी इनकार किया जा सकता है.

रिपोर्ट कहती है कि कोई भी इंसान बगैर किसी की निगाहों में आए चुपके इस हॉल में वारदात को अंजाम देने के लिए दाखिल भी नहीं हो सकता है. यदि ऐसा ही है तो फिर किसी ने आरोपी को सेमिनार हॉल में जाते हुए देखा क्यों नहीं? ध्यान दीजिएगा कि इस मामले में सीबीआई को वारदात के वक्त अस्पताल में संजय रॉय के आने और जाने के सीसीटीवी फुटेज तो मिले हैं, लेकिन उसे सेमिनार हॉल के अंदर जाते हुए देखने वाला कोई चश्मदीद नहीं मिला है.

आरजी कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में ट्रेनी डॉक्टर के साथ रेप और मर्डर की वारदात 9 अगस्त को हुई थी, जिस मामले की शुरुआती जांच कोलकाता पुलिस और फिर सीबीआई ने की और उसने 7 अक्टूबर को इस मामले में अपनी चार्जशीट भी दाखिल कर दी. सीएफएसएल की ये रिपोर्ट भी उसी चार्जशीट का हिस्सा है. यानी ये रिपोर्ट सीबीआई की चार्जशीट में दर्ज दूसरी बातों से पूरी तरह मेल नहीं खाती है. लेकिन ये तो रही रिपोर्ट की बात, अब आइए जान लेते हैं कि इस वारदात के बाद पीड़ित के शव की पोस्टमार्टम रिपोर्ट में क्या मिला था. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में रेप के बाद कत्ल की पुष्टि की गई थी.

 

इसके साथ ही ये भी कहा गया था कि ट्रेनी डॉक्टर का कत्ल गला घोंट कर रात 3 से 5 बजे के दरम्यान किया गया. आरोपी ने पीड़ित के साथ एबनॉर्मल तरीके से यौन अत्याचार किया, जिससे उसके प्राइवेट पार्ट में गहरा घाव पाया गया. ऐसा करते हुए उसे रोकने और चिल्लाने के लिए उसके नाक मुंह और गले को दबाया गया, जिससे उसका थाइराइ़ड कार्टिलेज भी टूट गया. उसके सिर को दीवार से सटाया गया, जिससे वो चिल्ला ना सके, उसके पेट, होंठ, ऊंगलियों और बांए पैर में चोट के निशान मिले. और तो और उस पर हमला इतनी जोर से किया गया उसका चश्मा तक टूट गया और उसके शीशे आंखों में घुस गए.

इसी तरह पीड़िता के चेहरे पर आरोपी के नाखुनों से बने खरोंच के निशान मिले. यानी ट्रेनी डॉक्टर ने खुद को रेप से बचाने की पुरजोर कोशिश की थी. अब सवाल ये है कि अगर पोस्टमार्टम रिपोर्ट में लिखी ये बातें सही हैं, तो फिर ऐसा कैसे हो सकता है कि मौका ए वारदात पर कोई संघर्ष के निशान ही ना मिलें? सीबीआई ने अपनी चार्जशीट में पीड़ित ट्रेनी डॉक्टर के साथ गैंगरेप की बात से इनकार किया है. यानी सीबीआई के मुताबिक रेप और कत्ल करने वाला एक ही शख्स संजय रॉय है.

उसकी चार्जशीट में 100 गवाहों के बयान के साथ-साथ 12 पॉलीग्राफ टेस्ट रिपोर्ट, सीसीटीवी पुटेज, फॉरेंसिक रिपोर्ट के साथ मोबाइल कॉल डिटेल और लोकेशन की रिपोर्ट शामिल है. मौके से मिले टूटे ब्लूटूथ से आरोपी के फोन का कनेक्ट होना भी इस बात का एक अहम सबूत माना गया कि ट्रेनी डॉक्टर के साथ ज्यादती करने वाला संजय रॉय ही है. यहां तक कि पीड़ित के शरीर से मिला सीमन और खून के सैंपल भी आरोपी से मैच हो चुके हैं. जबकि क्राइम सीन पर मिले छोटे बाल भी आरोपी के होने की पुष्टि डीएनए जांच से हो चुकी है. ऐसे में संजय रॉय के खिलाफ सबूत तो कई हैं, लेकिन सीएफएसएल रिपोर्ट तमाम तथ्यों को उलझाने के लिए काफी है।

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