पहली अक्टूबर को सिलीगुड़ी में बंगाल सरकार के खिलाफ मोर्चा खोलेंगी स्मृति ईरानी

लोकसभा चुनाव के पूर्व भाजपा तृणमूल कांग्रेस का शक्ति प्रदर्शन

अशोक झा

सिलीगुड़ी: लोकसभा चुनाव के पहले भाजपा और तृणमूल कांग्रेस एक दूसरे के मजदूर विरोधी नीतियों के खिलाफ शक्ति प्रदर्शन की तैयारी में कोई कोर कसर नहीं छोड़ना
चाहती है। यही कारण है की पहली अक्तूबर को सिलीगुड़ी में चाय श्रमिकों को उनका अधिकार दिलाने के लिए भाजपा आंदोलन का आगाज करेगी।
इस मंच पर केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी, जॉन बारला, शुभेंदु अधिकारी ,सांसद राजू बिष्ट समेत उत्तर बंगाल के सभी सांसद व विधायक मौजूद रहेंगे। इसके माध्यम से उत्तर बंगाल के पांच लोकसभा क्षेत्र को साधने का मौका होगा। वही दूसरी ओर केंद्र के खिलाफ मनरेगा राशि के भुगतान की मांग को लेकर 2 और 3 अक्टूबर को दिल्ली में तृणमूल कांग्रेस धरना देगी। उस धरने का वीडियो पश्चिम बंगाल के हर ब्लॉक तक पहुंचाया जा सके इसके लिए विशेष व्यवस्था की जा रही है। इसकी अगुआई सांसद सह पार्टी के महासचिव अभिषेक बनर्जी करेंगे। इसको लेकर भाजपा ट्रेड यूनियन की एक बैठक हो चुकी है दूसरी और अंतिम बैठक 28 सितंबर को होगी। इस बैठक में उत्तर बंगाल के चाय बागान श्रमिकों द्वारा सामना किए जाने वाले अभाव और भेदभाव के इन और ऐसे अन्य मुद्दों को उजागर करने के लिए रणनीति बनेगी। सांसद राजू बिष्ट ने बताया कि प्रधानमंत्री के नेतृत्व में जैसे देश प्रगति कर रहा है ठीक उसी प्रकार भाजपा चाय बागानों और सिनकोना बागानों के श्रमिकों के लिए अधिकार और न्याय सुनिश्चित करने और उनके लिए सुरक्षित कामकाजी परिस्थितियां सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध है। पहली अक्टूबर, 2023 को सिलीगुड़ी के डागापुर मैदान में भाजपा ट्रेड यूनियन सेल द्वारा उत्तर बंगाल के चाय बागान श्रमिकों के अधिकारों की मांग के लिए एक विशाल सार्वजनिक जनसभा का आयोजन किया जाएगा। उन्होंने बताया कि इस जनसभा में दार्जिलिंग पर्वतीय क्षेत्र, तराई और डुआर्स क्षेत्र के चाय बागान श्रमिकों की भागीदारी होगी और भाजपा के राष्ट्रीय और राज्य के नेता इसे संबोधित करेंगे। उन्होंने कहा कि 1850 के दशक में पहली चाय बागानों की स्थापना के बाद से, दार्जिलिंग पहाड़ियों, तराई और डुआर्स के लोगों की पीढ़ियों ने इस उद्योग में काम किया है। आज, लगभग 5 लाख श्रमिक सीधे चाय बागानों में कार्यरत हैं, जिनमें से अधिकांश महिलाए हैं। हालाकि, पीढ़ियों से चाय बागानों में काम करने के बावजूद, हमारे लोगों को पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा उनकी पैतृक भूमि पर जमीन का पट्टा और अधिकारों से वंचित रखा गया है। पहले कांग्रेस सरकार, फिर कम्युनिस्ट सरकार और अब टीएमसी सरकार, सभी ने चाय श्रमिकों और सिनकोना श्रमिकों के साथ बंधुआ मजदूरों जैसा व्यवहार करना जारी रखा है। वे नहीं चाहते कि चाय बागान श्रमिकों को उनकी पैतृक भूमि का परजा पट्टा मिले, और भूमि अधिकार न होने के कारण लोगों को सामंतवादी व्यवस्था में काम करने के लिए मजबूर होना पड़ता है। उन्हें जमीन का पट्टा अधिकार देने के बजाय बंगाल सरकार चाय श्रमिकों के लिए केवल 5 दशमलव ‘शरणार्थी पट्टा’ देकर श्रमिकों को नुकसान पहुंचाने की साजिश रच रही है। देश में सबसे कम वेतन पाने वाले औद्योगिक श्रमिक होने के बावजूद, चाय उद्योग और सिनकोना गार्डन केवल दो स्थान हैं (दोनों उत्तर बंगाल में स्थित हैं), जहां बंगाल सरकार द्वारा न्यूनतम मजदूरी अधिनियम लागू नहीं किया गया है। जबकि पश्चिम बंगाल में रबर उद्योग में कुशल श्रमिकों के लिए न्यूनतम मजदूरी 405 रूपये प्रति दिन है, सबसे कुशल चाय श्रमिकों को केवल 250 रूपये प्रति दिन मिलते हैं।दोषी मालिकों के खिलाफ पीएफ प्राधिकरण द्वारा मामले दर्ज करने के बावजूद, दार्जिलिंग में 12 मामले, जलपाईगुड़ी,अलीपुरद्वार में 68 मामलों में बंगाल की पुलिस ने उन मालिकों के खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई नहीं की है। जिन्होंने जानबूझकर पीएफ योगदान के अपने हिस्से को जमा नहीं कर श्रमिकों के हक को ढकार गए है। इतना। ही नहीं श्रमिकों को अपना बोनस पाने के लिए हर साल संघर्ष करना पड़ता है। श्रमिकों के अधिकारों को देने के बजाय बंगाल सरकार पर्वतीय चाय बागानों में किस्तों में बोनस देने की प्रथा को सक्रिय रूप से प्रोत्साहित करती है। चाय कंपनियों से स्वास्थ्य लाभ प्रदान करने की अपेक्षा की जाती है जबकि अधिकांश चाय बागान ऐसा नहीं हैं। बंगाल सरकार इस व्यवस्था को लेकर पूरी तरह से आंखें मूंद लेती है। चाय श्रमिकों के लिए कोई भी स्वास्थ्य सुविधा प्रदान करने में भी पूरी तरह विफल रही है। इसके अलावा चाय बागान श्रमिकों को पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा केंद्र सरकार की कई योजनाओं का लाभ पाने से वंचित रखा गया है। ऐसे कई उद्यान हैं जो 5 वर्षों से अधिक समय से बंद पड़े हैं। 2004-2014 के बीच उत्तर बंगाल में कम से कम 3000 चाय श्रमिक भूख से मर गए। फिर भी बंगाल सरकार इन बागानों को फिर से खोल पाने में विफल रही है। यही कारण है की जिससे हजारों चाय बागान श्रमिक आर्थिक रूप से वंचित हो गए हैं। अधिकांश चाय बागान श्रमिक मौसमी श्रमिकों के रूप में कार्यरत हैं भले ही वे साल में लगभग 10-11 महीने काम करते हैं। चाय कंपनियां उन्हें मौसमी श्रमिकों के रूप में नियुक्त करती हैं। क्योंकि इससे उनका पैसा बचता है। ऐसे में इन मजदूरों को उन्हें बोनस, ग्रेच्युटी, पीएफ योगदान आदि नहीं देना पड़ता है। इनमें से अधिकांश कर्मचारी महिलाएं हैं, और सेवानिवृत्त होने पर उनके पास कोई सामाजिक सुरक्षा नहीं होती है। इन सभी सवालों का जवाब देना ही होगा।

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