व्रतियों के घरों में छठ पर्व का उत्साह, खरना आज

व्रतियों के घरों में छठ पर्व का उत्साह, खरना आज
सिलीगुड़ी: छठ पर्व को लेकर व्रतियों के घर छठ के गीतों से गूंज रहे हैं. यह पर्व पारिवारिक व सामाजिक एकता को भी दर्शा रहा है, जहां घर वालों से लेकर मोहल्ले व समाज के लोग पूरे भक्तिभाव में पूजा में जुटे हुए हैं। चार दिनाें तक चलने वाले इस महापर्व की शुक्रवार को स्नान-ध्यान और कद्दू-भात के साथ शुरुआत हो गयी। शनिवार को खरना को लेकर व्रतियों के घरों में गेहूं सुखाने में लोग जुटे दिखे। शाम में में खरना का प्रसाद बनाया जायेगा।18 नवंबर 2023 को दूसरे दिन खरना है। इसे लोहंडा भी कहा जाता है। इसके साथ 19 नवंबर को अस्ताचलगामी यानी डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य और उसके अगले दिन यानी 20 नवंबर को सुबह उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देकर छठ पूजा का समापन होगा।छठ महापर्व दूसरा दिन खरना :छठ महापर्व के दूसरे दिन खरना करने का विधान है। शास्त्रों में खरना का मतलब शुद्धिकऱण से बताया है। इस दिन जो लोग व्रत रखते हैं वो पूरे दिन उपवास रखते हैं। फिर शाम के टाइम मिट्टी का नया चूल्हा बनाकर उस पर गुड़ की खीर का प्रसाद बनाया जाता है और इसी प्रसाद को व्रती ग्रहण करता है। फिर इस प्रसाद को परिवार के अन्य सदस्य ग्रहण करते हैं। साथ ही इसके बाद से 36 घंटे का लंबा निर्जला उपवास आरंभ होता है।छठ तीसरा दिन संझिया घाट : छठ पूजा के तीसरे दिन का भी विशेष महत्व है। क्योंकि इस दिन अस्त होते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। वहीं सूर्य देव की उपासना की जाती है। साथ ही सूर्य देव को पकवान ठेकुआ और मौसमी फल आदि अर्पित किए जाते हैं।19 नवंबर को शाम में 5 बजकर 28 मिनट तक:
छठ तीसरा दिन 20 नवंबर 2023 उगते सूर्य को अर्घ्य (भोरका घाट) छठ पूजा के चौथे दिन उगते सूर्य देव को अर्घ्य दिया जाता है। साथ ही सूर्य देव को अर्घ्य देते समय सुख- समृद्धि का आशीर्वाद मांगा जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार शाम के समय सूर्य को अर्घ्य देने से जीवन में संपन्नता और सुखों का आगमन होता है। माना जाता है कि शाम के समय सूर्य अपनी पत्नी प्रत्युषा के साथ होते हैं। वहीं सूर्य को अर्घ्य देने के बाद प्रसाद ग्रहण कर व्रत का समापन किया जाने का प्रावधान है।
पंडित अभय झा ने बताया कि इस बार रविवार और छठ पूजा का योग होने से इस दिन का महत्व और बढ़ गया है। रविवार का कारक ग्रह सूर्य ही है। सूर्य के वार को ही सूर्य पूजा का पर्व मनाया जाएगा। भगवान सूर्य पंचदेवों में शामिल हैं। हर एक शुभ काम की शुरुआत पंचदेवों की पूजा के साथ जाती है। सूर्य देव को रोज सुबह अर्घ्य चढ़ाना चाहिए। सूर्य पूजा से नकारात्मक विचार खत्म होते हैं और स्वास्थ्य लाभ मिलते हैं।झा ने बताया कि सूर्य को अर्घ्य चढ़ाकर सूर्य के मंत्र और नामों का जप करना चाहिए।
सूर्य मंत्र-आदिदेव नमस्तुभ्यं प्रसीद मम भास्कर, दिवाकर नमस्तुभ्यं, प्रभाकर नमोस्तुते। सप्ताश्वरथमारूढ़ं प्रचंडं कश्यपात्मजम्, श्वेतपद्यधरं देव तं सूर्यप्रणाम्यहम्।।
सूर्य देव की बहन हैं छठ माता : पंडित झा ने बताया कि छठ माता से जुड़ी कई मान्यताएं हैं। माना जाता है कि प्रकृति ने खुद को छह भागों में बांटा था। इनमें छठे भाग को मातृ देवी कहा जाता है। छठ माता को ब्रह्मा जी की मानस पुत्री भी कहते हैं। देवी दुर्गा के छठे स्वरूप कात्यायनी को भी छठ माता कहते हैं। छठ माता को सूर्य भगवान की बहन कहते हैं। इस वजह से सूर्य के साथ छठ माता की पूजा होती है। कहा कि छठ माता बच्चों की रक्षा करने वाली देवी मानी गई हैं। इस वजह से संतान के सौभाग्य, लंबी उम्र और अच्छे स्वास्थ्य की कामना से छठ पूजा का व्रत किया जाता है। उन्होंने बताया कि भविष्य पुराण के मुताबिक श्रीकृष्ण ने अपने पुत्र सांब को सूर्य पूजा करने के लिए कहा था। बिहार में कथा प्रचलित है कि देवी सीता, कुंती और द्रौपदी ने भी छठ पूजा का व्रत किया था और व्रत के प्रभाव से ही इनके जीवन के सभी कष्ट दूर हुए थे। ठेकुवा का प्रसाद: उन्होंने बताया कि 19 नवंबर को डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा, जिसे संध्या अर्घ्य भी कहा जाता है। चौथे दिन यानी 20 नवंबर को उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा। इस दौरान व्रती सूर्य देव से सुख-शांति के लिए प्रार्थना करती हैं। पारण सुबह के अर्घ्य के बाद होता है। इसके साथ ही यह पर्व समाप्त हो जाएगा। छठ पूजा का मुख्य प्रसाद केला और नारियल है। इस पर्व के महाप्रसाद को ठेकुवा कहा जाता है। यह ठेकुवा आटा, गुड़ और शुद्ध घी से बनता है, जो काफी मशहूर है। दीपावली के बाद लोग इस पर्व की तैयारी में जुट जाते हैं। इस त्योहार में कद्दू भात, खरना रसियाव रोटी और ठेकुआ ये तीन तरह के प्रसाद पूजा के लिए बनाए जाते हैं। इस पर्व में लोग छठ पूजा के प्रसाद को मांग कर खाते हैं। बहुत से लोगों को इसके बारे में नहीं पता है इसलिए चलिए जानते हैं कि इस महापर्व में लोग एक दूसरे से क्यों प्रसाद मांग कर खाते हैं।क्यों मांग कर खाया जाता है छठ का प्रसाद: पौराणिक मान्यताओं के अनुसार छठ पूजा के त्योहार में प्राकृतिक पकवान और मिठाई का बहुत महत्व बताया गया है। इस छठ पूजा में प्रसाद के रूप में सब्जी, फल और फूलों का बहुत महत्व है। छठ पूजा के प्रसाद को एक दूसरे से मांग कर खाने को लेकर यह मान्यता है कि छठ का प्रसाद मांग कर खाने से भगवान सूर्य देव और छठी मैया के प्रति भक्तों की आस्था प्रकट होती है। प्रसाद मांग कर खाने से छठी मैया और सूर्य देव का मान सम्मान बढ़ता है। प्रसाद मांग कर खाने से शरीर के दुर्गुण दूर होते हैं और छठी मैया भक्तों से प्रसन्न होती है और कृपा करती हैं। लोक मान्यता है कि छठ पूजा के प्रसाद को मांगने में संकोच नहीं करना चाहिए और नहीं कोई प्रसाद बांट रहा हो तो उसे मना करना चाहिए। छठ पूजा के प्रसाद के साथ भूलकर भी ऐसा न करें: पूजा के प्रसाद को मांग कर खाने से छठी मैया और सूर्य देव की कृपा बनी रहती है। लेकिन यदि कोई छठ पूजा के प्रसाद को लेने से मना करते हैं या लेकर कहीं रख देते हैं तो छठी मैया नाराज हो जाती है। बहुत से लोग कई बार अनजाने में छठी मैया के प्रसाद को ले लेते हैं और तुरंत खाने के बजाए कहीं भी रखकर भूल जाते हैं, ऐसा बिल्कुल भी नहीं करना चाहिए। प्रसाद को लेने के बाद नहीं खाने और न लेने से प्रसाद और छठी मैया का अपमान होता है। छठी मैया प्रसाद के अपमान से नाराज हो सकती है।मिट्टी के चूल्हे में प्रसाद बनाने का क्या महत्व है: धार्मिक मान्यता के अनुसार छठ पूजा का प्रसाद मिट्टी के नए चूल्हे पर बनाया जाता है। इस पूजा में शुद्धता का विशेष ध्यान रखा जाता है। मिट्टी के चूल्हे को शुद्ध और पवित्र माना जाता है। मिट्टी न होने पर ईंट के चूल्हे का भी उपयोग किया जाता है। मिट्टी के चूल्हे में घीया भात, रसिआव रोटी और ठेकुआ बनाया जाता है। चूल्हा जलाने के लिए आम के लकड़ी का उपयोग किया जाता है। इस दिन भगवान सूर्य और छठी माता की पूजा का विधान है। ऐसा माना जाता है कि छठ की पूजा तब तक पूर्ण नहीं होती है जब तक इस पावन पर्व की कथा न सुनी जाए। ऐसे में चलिए विस्तार से जानते हैं छठ पूजा की पौराणिक व्रत कथा के बारे में। छठ पूजा व्रत कथा: प्रियंवद और मालिनी की कहानी:पुराणों के अनुसार, राजा प्रियंवद नामक राजा हुआ करते थे जिनकी कोई संतान नहीं थी। तब महर्षि कश्यप ने पुत्र प्राप्ति के लिए राजा के यहां यज्ञ का आयोजन किया। महर्षि ने यज्ञ आहुति के लिए बनाई गई गई खीर को प्रियंवद की पत्नी मालिनी को खाने के लिए कहा। खीर के प्रभाव से रजा और रानी को पुत्र तो हुआ किन्तु वह मृत था। प्रियंवद पुत्र को लेकर श्मशान गए और पुत्र वियोग में प्राण त्यागने लगे। उसी समय भगवान की मानस पुत्री देवसेना प्रकट हुईं। उन्होंने राजा से कहा कि सृष्टि की मूल प्रवृत्ति के छठे अंश से उत्पन्न होने के कारण मैं षष्ठी कहलाती हूं। माता ने राजा को अपने पूजन का आदेश दिया और दूसरों को भी यह पूजन करने के लिए प्रेरित करने को कहा।राजा ने पुत्र इच्छा से देवी षष्ठी का व्रत किया और उन्हें शीघ्र ही पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। जिस दिन राजा ने यह व्रत किया था उस दिन कार्तिक शुक्ल षष्ठी तिथि थी। तभी से छठी मैय्या के पूजे जाने की परंपरा आरंभ हुई। कर्ण ने की थी शुरुआत: महाभारत काल में कुंती पुत्र कर्ण को दानवीर माना जाता था। कर्ण सिर्फ माता कुंती के ही नहीं अपितु सूर्य देव के भी पुत्र थे। सूर्य देव की कर्ण पर विशेष कृपा थी। कर्ण नियमित रूप से प्रातः काल उठकर सूर्य देव को अर्घ्य दिया करते थे। तभी से एक पर्व के रूप में सूर्य अर्घ्य की परंपरा का आरंभ हुआ।इसके अलावा, कुंती और द्रौपदी के भी व्रत रखने का उल्लेख ग्रंथों में मिलता है। ऐसा कहा जाता है कि द्रौपदी के छठ पूजा करने के बाद ही पांडवों को उनका हारा हुआ सारा राजपाट वापस मिल गया था।इसे जरूर छठ पूजा में इस विधि से करें सूर्य की उपासना, चमक उठेगी किस्मत। श्री राम और माता सीता ने भी रखा था व्रत : रामायण में भी छठ पूजा का वर्णन मिलता है। दरअसल, भगवान राम सूर्यवंशी कुल के राजा थे और उनके आराध्य एवं कुलदेवता सूर्य देव ही थे। इसी कारण से राम राज्य की स्थापना से पूर्व भगवान राम ने माता सीता के साथ कार्तिक शुक्ल षष्ठी के दिन छठ पर्व मनाते हुए भगवान सूर्य की पूजा विधि विधान से की थी। मार्कण्डेय पुराण में भी है वर्णन: मार्कण्डेय पुराण में इस बात का उल्लेख मिलता है कि छठी मैय्या प्रकृति की अधिष्ठात्री देवी हैं और इसके साथ ही भगवान सूर्य की बहन भी। छठी मैय्या को संतान सुख, संतान की दीर्घायु और सौभाग्य प्रदान करने वाली माता माना गया है।इसे जरूर इन दैवीय तत्वों की पूजा से घर में छा सकती हैं नाकारात्मक शक्तियां: जब बच्चे के जन्म के छठे दिन उसका छठी पूजन होता है तब इन्हीं माता का स्मरण किया जाता है। इनकी कृपा से न सिर्फ संतान को हर तरह की सुख सुविधा प्राप्त होती है बल्कि उसके जीवन में आने वाले कष्टों का अपने आप ही निवारण हो जाता है। रिपोर्ट अशोक झा

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