लोकसभा सीट देवरिया पर पेंच : इस बार स्काई लैब और बाहरी चेहरे से मुक्त हो सकेगी सीट ?

भाजपा के ही सांसद और विधायक के रहते गायब हो गया अटल जी का नाम

विशेष संवाददाता
नईदिल्ली। पूर्वांचल की देवरिया लोकसभा सीट गुजरे दो दशकों में एक अलग तरह की चर्चा में रही है। बीते कई लोकसभा चुनावों में स्थानीय नेतृत्व को नज़रंदाज़ कर बाहरी लोगों को टिकट दिया गया। इस बार बाहरी नेताओं और अचानक उग कर टिकट पाने वालों को लेकर ज़बरदस्त विरोध भी है जिसका संज्ञान भी भाजपा ने लिया है। स्थानीय नेताओं की मज़बूत दावेदारी से यहाँ विकल्प भी खड़े हुए हैं जिसके चलते अबकि इस सीट पर निर्णय को लेकर पेंच फँसा हुआ है। मुद्दा यह है कि जब यहां से कोई भी बाहरी या स्काई लैब बनकर आता है और जनता कमल चुन कर मौका दे देती है, ऐसे में क्षेत्र की पांचों विधानसभा क्षेत्रों में बराबर की पकड़ रखने वाले संगठन के दावेदार को मौका क्यों नहीं दिया जाता? सूत्र बता रहे है कि रमापति राम त्रिपाठी का प्रकरण स्वयं हाईकमान के संज्ञान में आने से इस बार स्थानीय बेदाग कैडर को मौका देने पर पार्टी विचार कर रही है। आज की पवन सिंह की टिकट वापसी की घटना से भी भाजपा को झटका लगा है जिससे नेतृत्व अब अलग प्रकार से अवश्य विचार करेगा।

बाहरी और स्काई लैब की इस प्रयोगशाला की कहानी 1996 से शुरू हो जाती है जब क्षेत्र में बिना चेहरा दिखाए ही प्रत्याशी उतार दिया गया। उसके बाद तो जैसे सिलसिला चल पड़ा। देवरिया लोकसभा सीट पर वर्ष 2014 में हुए चुनावों में भारतीय जनता पार्टी ने पूर्व प्रदेश अध्यक्ष कलराज मिश्र को प्रत्याशी बनाया था। जिनका टिकट वर्ष 2019 में काटकर पूर्व प्रदेश अध्यक्ष डाक्टर रमापति राम त्रिपाठी को पार्टी ने प्रत्याशी बना दिया। बाद में पार्टी ने कलराज मिश्र का समायोजन बतौर राज्यपाल कर दिया। यह बात सबको पता है कि संतकबीरनगर के पूर्व सांसद स्व.शरद त्रिपाठी का टिकट 2019 के लोकसभा चुनाव में जूताकांड में वांक्षित होने के कारण काटकर उनके पिता रमापति राम को देवरिया लोकसभा सीट समायोजन किया गया। देवरिया की लोकसभा सीट से ना तो कभी पूर्व सांसद शरद त्रिपाठी का कोई वास्ता रहा है और ना ही वर्तमान सांसद डाक्टर रमापति राम का। स्थानीय लोगों में इस बात को लेकर गहरा आक्रोश और क्षोभ व्याप्त है कि आख़िर यहाँ हर बार बाहरी लोगों को मौक़ा क्यों?
ग़ौरतलब है कि देवरिया लोकसभा सीट की पाँच विधानसभा सीटों में से दो पर बाहरी लोग बतौर विधायक क़ाबिज़ हैं ।
देवरिया सदर विधानसभा सीट से विधायक शलभ मणि त्रिपाठी मूल रूप से गोरखपुर के निवासी हैं और गुजरे एक दशक से बतौर टीवी पत्रकार लखनऊ में कार्यरत थे। पार्टी ने इन्हें 2022 के विधानसभा चुनावों में प्रत्याशी बनाया था जो अभी विधायक हैं। इसी प्रकार तमकुही विधानसभा सीट से भाजपा विधायक असीम राय मूल रूप से बिहार के बेगूसराय के रहने वाले हैं तथा गोरखपुर में इनका कारोबार है। वर्ष 2022 के आम चुनावों में निषाद पार्टी के टिकट पर असीम राय विधायक चुने गये।
देखा जाय तो देवरिया लोकसभा सीट पर सांसद तो बाहरी है ही साथ ही इस सीट के पाँच विधानसभा क्षेत्रों में से दो सीटों पर बाहरी विधायक क़ब्ज़ा जमाए हुए हैं। चर्चा है कि सदर विधायक शलभ मणि अब लोकसभा पर भी नजर गड़ाए हैं।
इधर लंबे समय से बाहरी लोगों द्वारा स्थानीय कार्यकर्ताओं की उपेक्षा को लेकर उपजे संघर्ष और विवाद का भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश नेतृत्व ने सज्ञान भी लिया है। इस बीच लोकसभा सीट पर भाजपा प्रबुद्ध प्रकोष्ठ के क्षेत्रीय संयोजक और प्रधानाचार्य डाक्टर अजय मणि त्रिपाठी, शशांक मणि, पूर्व विधायक डाक्टर सत्यप्रकाश मणि, पूर्व एमएलसी प्रत्याशी सुनील सिंह समेत आधा दर्जन से अधिक लोगों ने अपनी मज़बूत उम्मीदवारी दर्ज कराई है।
उधर पाँच वर्ष में सदर सांसद रमापति राम त्रिपाठी अपने बिगड़े बोल और बदजुबानी को लेकर सुर्ख़ियों में रहे। स्थानीय समस्याओं से न सिर्फ़ मुँह मोड़ने के नाते वह चर्चा में रहे बल्कि कार्यकर्ताओं की उपेक्षा उनसे दुर्व्यवहार तथा आर्थिक कदाचार के आरोप भी उन पर लगते रहे। सदर विधायक शलभ मणि और सांसद रमापति राम त्रिपाठी के रहते ही यहां अटल जी के नाम पर बने भवन से अटल जी को गायब कर सपा के मोहन सिंह का नाम लगा दिया गया।
इसी प्रकार बरहज सीट से पूर्व विधायक रहे सुरेश तिवारी के उद्योगपति पुत्र संजय तिवारी का नाम भी इन दिनों देवरिया लोकसभा सीट को लेकर चर्चा में हैं। वर्तमान में संजय तिवारी महाराष्ट्र के पूना में रहकर कारोबार करते हैं और वह इन दिनों दिल्ली में सक्रिय देखे जा रहे हैं।
संजय के पिता पूर्व विधायक सुरेश तिवारी का टिकट 2022 के चुनावों में भाजपा ने काट दिया जिसके बाद वह बसपा के टिकट पर रुद्रपुर विधानसभा सीट से चुनाव लड़े थे। इसके पूर्व प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ पर अभद्र टिप्पणी को लेकर सुरेश तिवारी नेशनल मीडिया की सुर्ख़ियों में थे। हाल ही में सुरेश तिवारी व उनकी पुत्री समेत तीन लोगों पर उनके अपने ही महाविद्यालय में कार्यरत एक शिक्षक ने धोखाधड़ी सहित अन्य गंभीर धाराओं में मुक़दमा दर्ज कराया है।
इस तरह से तमाम एनआरआई और बाहरी लोगों की नज़रें देवरिया लोकसभा सीट पर लगी हुई हैं। शायद यहाँ बाहरी लोगों के खिलाफ आम जनता तथा पार्टी कार्यकर्ताओं के मन में उबल रहे आक्रोश को भाजपा के शीर्ष नेतृत्व से जान लिया है। इसे लेकर अंदरखाने मंथन जारी है। धनबल और अपनी ऊपरी पकड़ के आधार पर अनेक चेहरे अपनी अपनी जुगत में लगे हैं। एक चेहरा तो ऐसा भी है जिसको पार्टी के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने उसके धनबल की अकड़ उतारने के लिए बाहर का रास्ता दिखा दिया था। चर्चा है कि उस परिवार ने अभी हाल में ही फिर से जुगाड लगाकर जिला स्तर पर पार्टी की सदस्यता ली है ताकि ऊपर से नाम फाइनल करा सकें।

Back to top button