सिलीगुड़ी इस्कॉन में चंदन यात्रा उत्सव का भव्य आयोजन

सिलीगुड़ी: शुक्रवार को अक्षय तृतीया और चंदन यात्रा उत्सव के अवसर पर इस्कॉन सिलीगुड़ी में विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे है। ग्रीष्म ऋतु की इस भीषण गर्मी में, भगवान श्री श्री राधा माधव सुंदर के श्रीविग्रह को शीतलता प्रदान करने के लिए सुगंधित चंदन का लेप किया गया है। शाम को आयोजित, संध्या आरती के बाद, 07 बजे शानदार सलिल विहार समारोह मंदिर के तालाब में आयोजित किया गया है। जिसमें श्री श्री राधा माधव सुंदर के अर्चा विग्रह को एक सुसज्जित नाव में ले जाया गया। इस मौके पर बड़ी संख्या में भक्त मौजूद रहे। इस्कॉन के जनसंपर्क अधिकारी नाम कृष्ण नाम का कहना है कि वैसे तो इसकी मान्यता हर सनातनियों में है लेकिन शैव और वैष्णवों में लिए इसका महत्व कुछ विशेष है। शैव मतावलंबी इस तिथि पर देवाधिदेव की प्रसन्नता के लिए तमाम उपक्रम करते हैं। वहीं वैष्णव भगवान श्रीकृष्ण और श्रीहरि विष्णु के विग्रह पर चंदन का लेप लगाते हैं। मान्यता है कि इस तिथि से श्रावण पूर्णिमा तक भगवान को गर्मी का अनुभव अधिक होता है। उन्हें राहत देने के भाव से ये दोनों कार्य किए जाते हैं। इसके अतिरिक्त शीतलता प्रदान करने वाले फलों आदि खाद्य पदार्थों का नित्य भोग अर्पण किया जाता है। अक्षय तृतीया पर मंदिरों में चंदन यात्रा निकाली जाती है। अक्षय तृतीया 10 मई को भोर में 05:31 बजे से 11 मई की भोर में 04:11 बजे तक रहेगी। पांच विशेष योग बनेंगे: अक्षय तृतीया के दिन चंद्रमा और गुरु की वृषभ राशि में युति से गजकेसरी योग, मंगल और बुध की मीन राशि में युति से धन योग बनेंगे। ये दोनों ही योग मेष, वृष और मीन राशि के जातकों के लिए अत्यंत शुभकारी होंगे। इस दिन सूर्य और शुक्र की मेष राशि में युति हो रही है। इससे शुक्रादित्य योग बन रहा है। शनि का मूल त्रिकोण कुंभ राशि में होने से शश योग और मंगल के अपनी उच्च राशि मीन में होने से मालव्य राजयोग योग बन रहा है। वृषभ राशि में उच्च के चंद्रमा का संचरण रवियोग भी बनाएगा। दान का विशेष महत्व: अक्षय तृतीया पर मिट्टी के पात्र में जल भरकर दान करने की परंपरा है। शरबत, नमक, चावल और चांदी की वस्तुत का भी दान किया जाता है। मान्यता है कि इन वस्तुओं के दान से कई ग्रहदोषों का शमन स्वत: हो जाता है। इस कारण से यह एक संधिकाल है। मुहूर्त कुछ ही क्षणों का होता है, परंतु अक्षय तृतीया संधिकाल होने से उसका परिणाम 24 घंटे तक रहता है। इसलिए यह पूरा दिन ही अच्छे कार्यों के लिए शुभ माना जाता है ।
हिन्दू धर्म बताता है, ‘सत्पात्र दान करना, प्रत्येक मनुष्य का परम कर्तव्य है ।’ सत्पात्र दान का अर्थ सत् के कार्य हेतु दान धर्म करना ! दान देने से मनुष्य का पुण्यबल बढता है, तो ‘सत्पात्र दान’ देने से पुण्य संचय सहित व्यक्ति को आध्यात्मिक लाभ भी मिलता है । अक्षय अर्थात जिसका कभी क्षय नही होता है। माना जाता है कि इस दिन जो भी पुण्य कर्म अर्जित किये जाते हैं,उनका क्षय नहीं होता है। यही कारण है कि इस दिन शुभ विवाह, गृह प्रवेश अथवा अन्य मांगलिक कार्य जैसे गंगा स्नान, भागवत का पाठ आरंभ हो जाते है। ऐसी मान्यता भी है कि सच्चे मन से अपनी गलतियों की क्षमा मांगने से ईश्वर क्षमा करते हैं तथा अपनी कृपा भी बरसाते हैं। इस दिन अपने भीतर के दुर्गुणों को भगवान के चरणों में अर्पित कर सद्गुणों को बढ़ाने का प्रयास करना चाहिए। आज ही वृंदावन के बांके बिहारी जी के मंदिर में श्री विग्रह जी के चरणों के दर्शन भी होते हैं। इस दिन इनके चरणों से वस्त्र हटा दिया जाता है। जबकि पूरे वर्ष भर उनके चरणों को वस्त्र से ढक दिया जाता है। श्री विग्रह के चरणों के दर्शन भी असीम कृपा का भाग है। इस दिन सत्पात्र को दान करना भी अत्यधिक पुण्य का कर्म है जिसका क्षय नही होता है। कहते हैं इस दिन वस्त्र स्वर्ण आभूषण मुद्रा खरीदना भी शुभ होता है। इस दिन पितरों को किया गया तर्पण और पिंडदान अथवा अपने सामर्थ्य अनुरूप किसी भी प्रकार का दान अक्षय फल प्रदान करता है। अक्षय तृतीया के दिन गौ, भूमि, तिल, स्वर्ण, घी, वस्त्र, धान्य, गुड़, चांदी, नमक, शहद और कन्यादान करने का महत्व है। इस दिन जितना भी दान करते हैं उसका चार गुना फल प्राप्त होता है। इस दिन किए गए कार्य का क्षय नहीं होता है। यही कारण है, इस दिन पुण्य प्राप्त करने का महत्व बहुत अधिक है। अक्षय तृतीया के दिन ही हयग्रीव,परशुराम और नर नारायण जैसे भगवान के अवतार प्रकट हुए थे। अक्षय तृतीया के दिन ब्रह्मा एवं श्री विष्णु इन दो देवताओं का सम्मिलित तत्व पृथ्वी पर आता है जिससे पृथ्वी की सात्विकता दस प्रतिशत तक बढ़ जाती है। इस सात्विकता का लाभ लेने के लिए इस दिन स्नान, ध्यान, दान, भागवत पूजन, जपतप, हवन और पितृ तर्पण करना चाहिए। ऐसा करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है और आध्यात्मिक लाभ भी मिलता है। साथ ही विवाह, मुंडन, गृह प्रवेश वस्त्राभूषण को क्रय करना आदि शुभ कार्य भी बिना मुहूर्त देखे किए जा सकते हैं क्योंकि इस दिन की संपूर्ण अवधि ही शुभ मुहूर्त होती है। चूंकि इस दिन दान करने का बहुत महत्व है, अतः धार्मिक कार्य करने वाले व्यक्ति, समाज में धर्म प्रसार करने वाली आध्यात्मिक संस्थाओं को दान करना चाहिए। कालानुरूप यही सत्पात्र दान है। इस दिन मिट्टी का पूजन, नए बीज बोना और वृक्षारोपण भी किया जाता है। रिपोर्ट अशोक झा

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