सौहार्द पूर्ण और कड़ी चौकसी में कल मनाई जाएगी बकरीद
अफवाह फैलाने वालों और सोशल मीडिया पर होगी पुलिस की नजर
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सिलीगुड़ी: इस्लामी कैलेंडर के अनुसार, हर साल आखिरी माह ज़ु अल-हज्जा की 10वीं तारीख को बकरीद का पर्व मनाया जाता है। इस साल बकरीद 17 जून 2024 को मनाई जा रही है। ये पर्व पैगंबर हजरत इब्राहिम से ही कुर्बानी देने की प्रथा शुरू हुई थी। इस दिन नमाज अदा करने के बाद कुर्बानी दी जाती है। आमतौर पर बकरीद के दिन सुबह के समय नमाज जरूर अदा की जाती है। आइए जानते हैं आपके शहर में किस समय होगी नमाज। इसके साथ ही जानें ईद-अल-अज़हा का महत्व। जैसे-जैसे इस्लामी त्योहार ‘बकरा ईद’ यानी ‘ईद-अल-अधा’ करीब आ रहा है। बंगाल में जानवरों की खरीद-फरोख्त अंतिम चरण में है। कुर्बानी के इस त्योहार में मुसलमान बकरियों या भेड़ों की बलि देते हैं। बकरा ईद, जिसे बकरीद, ईद अल-अधा, ईद क़ुर्बान या क़ुर्बान बयारामी के नाम से भी जाना जाता है, इस्लामी चंद्र कैलेंडर, ज़ुल हिज्जाह (धू अल-हिज्जाह) के बारहवें महीने में मनाया जाता है। इस वर्ष, इस्लामी त्योहार चंद्रमा के अर्धचंद्र के आधार पर 17 जून को मनाया जाएगा। धू अल-हिज्जा के दसवें दिन, दुनिया भर के मुसलमान अल्लाह के प्रति समर्पण के संकेत के रूप में अपनी प्रिय चीज़ों का बलिदान करने के सम्मान में ईद-उल-अधा मनाते हैं। वे जिब्रील के माध्यम से अल्लाह द्वारा भेजी गई भेड़ की याद में बकरियों या भेड़ों की बलि देते हैं।इन बलिदानों के मांस को तीन बराबर भागों में विभाजित किया जाता है; एक भाग परिवार के लिए रखा जाता है, दूसरा रिश्तेदारों के साथ बांटा जाता है और शेष भाग गरीबों और जरूरतमंदों को दिया जाता है। मुसलमानों का मानना है कि हालांकि बलिदान से मांस और खून अल्लाह तक नहीं पहुंचता है, लेकिन विश्वासियों की सच्ची भक्ति और प्यार ही उसके लिए वास्तव में मायने रखता है। वे सूरज पूरी तरह उगने के बाद लेकिन दोपहर की ज़ुहर की नमाज़ से पहले ईद-उल-अधा की नमाज़ के लिए मस्जिद में जाते हैं। बकरीद का पर्व मुस्लिम धर्म के महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक माना जाता है। ये पर्व दुनिया भर के मुसलमानों द्वारा पैगम्बर इब्राहीम द्वारा अल्लाह में दृढ़ विश्वास के कारण दिए गए बलिदान की याद के रूप में मनाते हैं। इस्लाम मजहब में इस दिन अल्लाह के नाम कुर्बानी देने की परंपरा है। मुसलमान इस दिन नामज पढ़ने के बाद खुदा की इबादत में चौपाया जानवरों की कुर्बानी देते हैं और तीन भाग में बांटकर इसे जरूरतमंद और गरीबों को देते हैं।
कैसे मनाया जाता है ईद-उल-अजहा ?
ईद-उल-अजहा के दिन, मुस्लिम समुदाय के लोग सुबह जल्दी उठकर नहाते हैं और नए कपड़े पहनते हैं। फिर वे ईद की नमाज़ पढ़ने के लिए ईदगाह या मस्जिद जाते हैं। नमाज़ के बाद, भेड़ या बकरे की कुर्बानी दी जाती है। कुर्बानी का मांस तीन भागों में बांटा जाता है: एक भाग गरीबों और जरूरतमंदों में बांटा जाता है, दूसरा रिश्तेदारों और दोस्तों को दिया जाता है, और तीसरा परिवार के लिए रखा जाता है।
जानें बकरीद का इतिहास
कहते हैं कि एक रात अल्लाह ने हजरत इब्राहिम के ख्वाब में आकर उनसे उनकी सबसे प्यारी चीज की कुर्बानी मांगी। इब्राहिम को पूरी दुनिया में अपना बेटा ही प्यारा था। ऐसे में वह अल्लाह पर भरोसे के साथ बेटे स्माइल की कुर्बानी के लिए तैयार हो गए।
इब्राहिम अपने बेटे को कुर्बानी के लिए ले ही जा रहे थे कि रास्ते में उन्हें एक शैतान मिला और उसने उन्हें ऐसा करने से मना किया। शैतान ने पूछा कि वह भला अपने बेटे की कुर्बानी देने क्यों जा रहे हैं? इसे सुन इब्राहिम का मन भी डगमगा गया लेकिन आखिरकार उन्हें अल्लाह की बात याद आई और कुर्बानी के लिए चल पड़े।
कहते हैं कि इब्राहिम ने बेटे की कुर्बानी देने के समय अपने आंखों पर पट्टी बांध ली ताकि उन्हें दुख न हो। कुर्बानी के बाद जैसे ही उन्होंने अपनी पट्टी खोली, अपने बेटे को उन्होंने सही-सलामत सामने खड़ा पाया। दरअसल, अल्लाह इब्राहिम के यकीन और सब्र का इम्तहान ले रहे थे। कुर्बानी का समय जैसे ही आया तो अचानक किसी फरिश्ते ने छुरी के नीचे स्माइल को हटाकर दुंबे (भेड़) को आगे कर दिया। ऐसे में दुंबे की कुर्बानी हो गई और बेटे की जान बच गई। इसी के बाद से कुर्बानी देने की परंपरा शुरू हो गई। रिपोर्ट अशोक झा