आरएसएस प्रमुख पहुंचे झारखंड, आज संघ की अखिल भारतीय कार्यकारिणी की बैठक रांची में होगी

रांची: 10 जुलाई यानि बुधवार को संघ की अखिल भारतीय कार्यकारिणी की बैठक होगी। 11 जुलाई को होने वाली बैठक में अखिल भारतीय कार्यकारिणी के साथ क्षेत्र के प्रचारक भी शामिल होंगे। 15 व 16 जुलाई को संवैचारिक संगठनों के साथ बैठक होगी। इसमें संघ से जुड़े विश्व हिंदू परिषद, सेवा भारती, वनवासी कल्याण केंद्र, स्वदेशी जागरण जैसे संगठनों के संगठन मंत्री हिस्सा लेंगे। 17 जुलाई को बैठकों की समीक्षा की जायेगी। 18 जुलाई को सरसंघचालक मोहन भागवत विकास भारती बिशुनपुर जायेंगे। इसके बाद शाम तक वापस रांची लौट आयेंगे। 19 जुलाई को सुबह सात बजे मोहन भागवत वापस लौट जायेंगे।10 दिनों के प्रवास पर संघ प्रमुख रांची में: संघ प्रमुख मोहन भागवत 10 दिनों तक रांची में प्रवास करेंगे. इस दौरान वह 12 से 14 जुलाई तक अखिल भारतीय स्तर की प्रांत प्रचारकों की बैठक में हिस्सा लेंगे। मई-जून में संपन्न संघ के प्रशिक्षण वर्गों की दो माह की शृंखला के बाद देशभर के सभी प्रांत प्रचारक इस बैठक में मौजूद रहेंगे।
संघ की संगठन योजना में कुल 46 प्रांत बनाये गये : संघ की संगठन योजना में कुल 46 प्रांत बनाये गये हैं. बैठक में संघ के प्रशिक्षण वर्ग के वृत्तांत एवं समीक्षा, आगामी वर्ष की योजना का क्रियान्वयन, सरसंघचालक के वर्ष 2024-25 की प्रवास योजना जैसे विषयों पर चर्चा होगी। साथ ही संघ के शताब्दी वर्ष ( 2025-26) के आग्रह व उपक्रमों पर बैठक में विचार विमर्श होगा। बैठक में संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले, सभी सह सरकार्यवाह डॉ कृष्णगोपाल, सीआर मुकुंद, अरुण कुमार, रामदत्त, आलोक कुमार, अतुल लिमये सहित कार्यकारिणी के सदस्य इस बैठक में भाग लेंगे। मंगलवार को संघ की छोटी टोली की बैठक हुई है।
सीमावर्ती क्षेत्र में बढ़ती मुस्लिम जनसंख्या और क्षेत्रीय असंतुलन पर चिंता: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से जुड़ी एक पत्रिका ने देश के कुछ इलाकों में मुस्लिम आबादी बढ़ने के साथ ‘जनसांख्यिकीय असंतुलन’ बढ़ने का दावा करते हुए कहा कि एक व्यापक राष्ट्रीय जनसंख्या नियंत्रण नीति की जरूरत है।
‘ऑर्गेनाइजर’ साप्ताहिक के ताजा अंक में प्रकाशित संपादकीय में जनसंख्या के लिहाज से क्षेत्रीय असंतुलन पर चिंता जताते हुए नीतिगत हस्तक्षेप की वकालत की गई है। पत्रिका में लिखा गया है कि पश्चिम और दक्षिण के राज्य जनसंख्या नियंत्रण उपायों को लागू करने में अपेक्षाकृत बेहतर काम कर रहे हैं, लेकिन उन्हें जनगणना के बाद आबादी में बदलाव होने पर संसद में कुछ सीट कम होने का डर है। संपादकीय के अनुसार, ‘‘राष्ट्रीय स्तर पर जनसंख्या स्थिर होने के बावजूद, यह सभी धर्मों और क्षेत्रों में समान नहीं है। कुछ क्षेत्रों, खासकर सीमावर्ती जिलों में मुस्लिम आबादी में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। इसमें लिखा गया है कि पश्चिम बंगाल, बिहार, असम और उत्तराखंड जैसे सीमावर्ती राज्यों में सीमाओं पर ‘‘अवैध विस्थापन’’ की वजह से ‘‘अप्राकृतिक’’ तरीके से जनसंख्या वृद्धि हो रही है। संपादकीय के अनुसार, ‘‘लोकतंत्र में जब प्रतिनिधित्व के लिए संख्याएं महत्वपूर्ण होती हैं और जनसांख्यिकी भाग्य का फैसला करती है, तो हमें इस प्रवृत्ति के प्रति और भी अधिक सतर्क रहना चाहिए। संपादकीय में आरोप लगाया गया है, ‘‘राहुल गांधी जैसे नेता यदा-कदा हिंदू भावनाओं का अपमान कर सकते हैं। (पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री) ममता (बनर्जी) इस्लामवादियों द्वारा महिलाओं पर किए गए अत्याचारों को स्वीकार करते हुए भी मुस्लिम कार्ड खेल सकती हैं और द्रविड़ पार्टियां सनातन धर्म को गाली देने में गर्व महसूस कर सकती हैं, क्योंकि उन्हें जनसंख्या असंतुलन के कारण विकसित तथाकथित अल्पसंख्यक वोट बैंक के एकजुट होने पर भरोसा है। उसने कहा, ‘‘विभाजन की विभीषिका और पश्चिम एशियाई और अफ्रीकी देशों से राजनीतिक रूप से सही, लेकिन सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से गलत विस्थापन से सीख लेते हुए, हमें इस मुद्दे को तत्काल हल करना होगा, जैसा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के विभिन्न प्रस्तावों और न्यायिक फैसलों में कहा गया है। संपादकीय में आगे कहा गया कि क्षेत्रीय असंतुलन एक और ‘महत्वपूर्ण आयाम’ है, जो भविष्य में संसदीय निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन की प्रक्रिया को प्रभावित करेगा। पत्रिका के अनुसार, ‘‘हमें यह सुनिश्चित करने के लिए नीतियों की जरूरत है कि जनसंख्या वृद्धि से किसी एक धार्मिक समुदाय या क्षेत्र पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़े, जिससे सामाजिक-आर्थिक असमानता और राजनीतिक संघर्ष की स्थिति बन सकती है। उसने कहा, ‘‘अंतरराष्ट्रीय संगठनों, शोध संस्थानों और परामर्शदात्री एजेंसियों के माध्यम से आगे बढ़ाए जा रहे बाहरी एजेंडे से प्रभावित होने के बजाय, हमें देश में संसाधनों की उपलब्धता, भविष्य की आवश्यकताओं और जनसांख्यिकीय असंतुलन की समस्या को ध्यान में रखते हुए एक व्यापक राष्ट्रीय जनसंख्या नीति बनाने का प्रयास करना चाहिए और उसे सभी पर समान रूप से लागू करना चाहिए। रिपोर्ट अशोक झा

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