रामरथ से भारतरत्न तक पहुंचने वाले एक स्वयंसेवक है लाल कृष्ण आडवाणी

– जिनके भीतर मजबूत और संपन्न भारत का विचार जड़ तक समाहित
सिलीगुड़ी: लाल कृष्ण आडवाणी को भारत रत्न दिया जा रहा है। आज सिलीगुड़ी में उनके साथ घंटो की गई बात याद आती है। जिसमे उन्होंने कहा था कि उनकी इच्छा है जीवन के अंतिम समय तक पार्टी के लिए काम और जीवन में स्वयंसेवक के वास्तविक स्वरूप को जीता रहूं। कहा था संघ के विस्तार से राष्ट्रवाद बढ़ेगा और जहां राष्ट्रवाद की शाखाएं मजबूत होगी वहां भारतीय जनता पार्टी का कमल खिलने से कोई नहीं रोक सकता। 1980 में भाजपा के गठन के बाद से ही आडवाणी वह शख्स है जो सबसे ज्यादा समय तक पार्टी में अध्यक्ष पद पर बने रहे है। बतौर सासद तीन दशक की लंबी पारी खेलने के बाद आडवाणी पहले गृह मंत्री रहे, बाद में अटल सरकार में (1999-2004) उपप्रधानमंत्री बने। आडवाणी को बेहद बुद्धिजीवी, काबिल और मजबूत नेता माना जाता है जिनके भीतर मजबूत और संपन्न भारत का विचार जड़ तक समाहित है। जैसा कि वाजपेयी कहते थे- आडवाणी ने कभी राष्ट्रवाद के मूलभूत विचार को नहीं त्यागा और इसे ध्यान में रखते हुए राजनीतिक जीवन में वह आगे बढ़े है।
एक स्वयंसेवक के रूप में सार्वजनिक जीवन की शुरूआत करने वाले लालकृष्ण आडवाणी को अब जब देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से नवाजा गया है तो यह आभास होता है कि इसके लिए इससे बेहतर कोई समय नहीं हो सकता था। जब देश के अंदर कई विचारधाराएं बहुत प्रबल थीं तो श्रीराम के नाम से राजनीति में सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का झंडा बुलंद करने वाले आडवाणी को अब राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा के एक पखवाड़े के अंदर ये सम्मान मिला है। और यह भी बहुत सहजता से कहा जा सकता है कि आज के दिन देश में आडवाणी के नाम का कोई विरोध करने चाला भी नहीं। भाजपा आज एक अजेय राजनीतिक ताकत के रूप में स्थापित है लेकिन अस्सी के दशक में आडवाणी के प्रयास ने ही भाजपा को कांग्रेस से इतर एक वैकल्पिक राजनीति का आधार खड़ा
करने में अहम भूमिका निभाई। अटल बिहारी वाजपेयी की लोकप्रियता के साथ ही लालकृष्ण आडवाणी के संगठनकर्ता के रूप में योगदान को भाजपा को 1984 से दो सीटों से लेकर 15 साल में सत्ता के शिखर तक पहुंचाने में अहम माना जाता है। दरअसल अटल बिहारी भाजपा के सबसे बड़े चेहरे थे लेकिन परदे के पीछे संगठन को खड़ा करने का काम आडवाणी ने ही किया।1984से भाजपा को दो सीटों से लेकर 15 साल में सत्ता के शिखर तक पहुंचाने में रही है उनकी अहम भूमिका
लाल कृष्ण आडवाणी ने आर्गेनाइजर में काम करते हुए पत्रकारिता में भी हाथ आजमाया, लेकिन बाद में पूरा जीवन राजनीति को समर्पित कर दिया। 1970 में पहली बार राज्यसभा से संसद में प्रवेश करने वाले लालकृष्ण आडवाणी 2019 तक कुल 10 बार संसद सदस्य के रूप में रहे। 1984 में दो सीटों पर सिमटने के बाद भी आडवाणी ने हार नहीं मानी और पांच साल बाद पार्टी को 85 सीटों पर पहुंचा दिया। इसके बाद भाजपा ने पीछे मुड़कर नहीं देखा और अमित शाह के अध्यक्ष रहते हुए दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी बन गई।1980 में आडवाणी ने ही वाजपेयी को सलाह दी थी कि जनता पार्टी परिवार से अलग होकर पार्टी का गठन करना चाहिए क्योंकि तब के जनता पार्टी के नेता वाजपेयी के विकास को रोकने की कोशिश कर रहे थे। आडवाणी ने ही कमल फूल का चुनाव चिह्न चुना था। राजनीति में अटल-आडवाणी की। जोड़ी बहुत सफल और अटूट मानी जाती थी। 2015 में वाजपेयी को भारत रत्न से। विवादों में भी रहे: कट्टर हिंदुत्व वाली छवि के बावजूद आडवाणी जिन्ना को धर्मनिरपेक्ष बताने को लेकर विवादों में भी रहे। लाहौर की यात्रा के दौरान मोहम्मद अली जिन्ना को धर्मनिरपेक्ष बताने पर भाजपा के कार्यकर्ताओं में ही नाराजगी देखने को मिली और आडवाणी को अध्यक्ष पद से हाथ धोना पड़ा। इसके बावजूद लालकृष्ण आडवाणी की अहमियत भाजपा में कम नहीं हुई और 2009 में उनके चेहरे पर ही पार्टी लोकसभा का चुनाव लड़ी। यह और बात है कि भाजपा तब अपेक्षित सफलता नहीं पास सकी थी।सम्मानित किया गया था। शनिवार को प्रधानमंत्री मोदी के काल में ही आडवाणी को भी भारत रत्न देने का एलान हो गया। पालमपुर के अधिवेशन में अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण को भाजपा के एजेंडे में शामिल कराने और फिर 1990 में रामरथ यात्रा के सहारे इसे जन-जन तक पहुंचाने में आडवाणी की केंद्रीय भूमिका रही थी। ध्यान देने की बात है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी उस समय रामरथ। जन्म: आठ नवंबर 1927 सिन्ध प्रांत(पाकिस्तान)। पिता का नाम: किशन चंद आडवाणी।माता का नाम : ज्ञानी देवी। 1936-1942: कराची के सेट पैट्रिक्स स्कूल में 10वीं तक पढ़ाई, क्लास में टापर रहे। 1942 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में शामिल हुए।1942 में भारत छोड़ो आदोलन के दौरान गिरुमल नेशनल कालेज में दाखिला लिया। 1944 में कराची के माडल हाई स्कूल में बतौर शिक्षक नौकरी की। 1947 में आडवाणी देश के आजाद होने का जश्न भी नहीं मना सके कि विभाजन के चलते उन्हें सिंध में अपना घर छोड़कर दिल्ली आना पड़ा। उन्होंने इस घटना को खुद पर हावी नहीं होने दिया और मन में इस देश को एकसूत्र में बांधने का संकल्प ले लिया।
1947-1951 तक राजस्थान के अलवर।भरतपुर, कोटा, बुडी और झालावार में आरएसएस को संगठित किया। 1957 में अटल बिहारी वाजपेयी की सहायता के यात्रा के संयोजन में अहम भूमिका में रहे थे। 34 सालों बाद भव्य राममंदिर में प्राण प्रतिष्ठा के 11 दिन बाद खुद प्रधानमंत्री मोदी ने आडवाणी को भारत रत्न से सम्मानित करने को सूचना दी। वैसे रामरथ से भारत रत्न तक की आडवाणी की यात्रा भी उत्तर चढ़ावों से भरी रही। वाजपेयी सरकार में गृह मंत्री और उप प्रधानमंत्री के रूप में आडवाणी राष्ट्रीय सुरक्षा के कड़े फैसलों के लिए जाने जाते लिए दिल्ली शिफ्ट हुए।1958-63 तक दिल्ली प्रदेश जनसंध में सचिव रहे। 1965 में कमला आडवाणी से विवाह हुआ, प्रतिभा एवं जयंत दो संताने है। अप्रैल 1970 में पहली बार राज्यसभा में प्रवेश • दिसंबर 1972- भारतीय जनसंघ के अध्यक्ष नियुक्त किए गए। 26 जून, 1975- बैंगलुरु में आपातकाल के दौरान गिरफ्तार, भारतीय जनसंघ के अन्य सदस्यों के साथ जेल में कैद रहे। मार्च 1977 से जुलाई 1979 तक देश के सूचना एवं प्रसारण मंत्री रहे।मई 1986 में भाजपा अध्यक्ष बने। तीन मार्च 1988 को दोबारा पार्टी अध्यक्ष बने। 1990 में सोमनाथ से अयोध्या तक राम मंदिर रथ यात्रा शुरू की।अक्टूबर 1999 से मई 2004 तक केंद्रीय गृह मंत्री रहे। जून 2002 से मई 2004 तक देश के उप प्रधानमंत्री रहे थे। वाजपेयी भले ही प्रधानमंत्री के रूप में सरकार के अगुवा थे, लेकिन पार्टी के संगठन में आडवाणी की छाप हर तरफ देखी जा सकती थी और यही कारण है कि एक बार आडवाणी को प्रधानमंत्री बनाने की मांग भी उठी थी।आडवाणी की राजनीति की शुरूआत 1957 से अटल बिहारी वाजपेयी और दीनदयाल उपाध्याय के सहयोगी के रूप में जाने जाते है। रिपोर्ट अशोक झा

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