लोकसभा चुनाव से पहले उत्तर बंगाल में अलग राज्य की मांग पकड़ रही जोड़

राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री व गृह मंत्री को मिलकर देंगे ज्ञापन

सिलीगुड़ी: बंगाल में लंबे समय से अलग राज्य बनाने की मांग हो रही है। अब ये मांग जोर पकड़ती नजर आ रहा है। अगले साल की शुरुआत में होने वाले लोकसभा चुनाव से ठीक पहले गोरखा, राजबंशी और आदिवासी समूहों के विभिन्न संगठनों ने अलग उत्तर बंगाल राज्य की मांग को लेकर हाथ मिलाया है। दरअसल जिन राजनीतिक दलों और संगठनों ने वर्षों से कामतापुरियों, राजबंशियों और गोरखाओं के लिए अलग राज्यों की मांग की थी, उन्होंने हाल ही में पश्चिम बंगाल के आठ जिलों को मिलाकर एक अलग राज्य की मांग करते हुए ‘अलग राज्य के लिए संयुक्त मोर्चा’ का गठन किया है। मोर्चा, अपने पहले कदम के रूप में, शीघ्र ही राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को एक ज्ञापन सौंपने की योजना बना रहा है। कई राज्यों के लिए हो चुका आंदोलन, अब सब एकजुट रिपोर्ट के मुताबिक, शुक्रवार को सिलीगुड़ी में फ्रंट की बैठक हुई और निर्णय लिया गया कि 20 दिसंबर को दिल्ली में धरना दिया जाएगा। फ्रंट जनवरी में सिलीगुड़ी, कूच बिहार और रायगंज (उत्तर दिनाजपुर) में मेगा रैलियां भी करेगा। मोर्चा के संयोजक और गोरखा जनमुक्ति मोर्चा (बिमल गुरुंग) की केंद्रीय समिति के सदस्य दीपेंद्र निरौला ने कहा, “इससे पहले, अलग-अलग समुदायों द्वारा अलग उत्तर बंगाल राज्य के लिए कई आंदोलन हुए थे। कामतापुरियों ने अलग राज्य के लिए आंदोलन किया। ग्रेटर कूचबिहार राज्य के लिए भी आंदोलन हुआ। हमने अलग गोरखालैंड राज्य की मांग को लेकर आंदोलन किया। इस क्षेत्र ने तीन आंदोलन देखे हैं। लेकिन अब हम सभी अलग उत्तर बंगाल राज्य की मांग के साथ एकजुट हो गए हैं।”इस मोर्चे में नौ संगठन हैं। इनमें कामतापुर प्रोग्रेसिव पार्टी, जीजेएम (बिमल गुरुंग), कामतापुर पीपुल्स पार्टी (यूनाइटेड), जॉय बिरसा मुंडा उलगुलान, एससी/एसटी मूवमेंट कमेटी, प्रोग्रेसिव पीपुल्स पार्टी, अखिल भारतीय राजबंशी समाज, ग्रेटर कूच बिहार पीपुल्स एसोसिएशन और भूमिपुत्र उन्नयन समिति शामिल हैं। दीपेंद्र ने फोन पर द एक्सप्रेस से बात करते हुए कहा, “आप देखिए, हमने पिछले एक साल से बातचीत की और इस मुद्दे पर एक आम सहमति पर पहुंचे हैं। अक्टूबर में ही हम मोर्चा लेकर आये थे। वर्षों से न तो केंद्र और न ही राज्य सरकार ने हमारी और हमारी फरियाद सुनी है। हम इसे अलग से रख रहे थे। अब हम सब एक साथ हैं। उत्तर बंगाल में कोई विकास नहीं हुआ है। यहां ढांचागत विकास नहीं हुआ है। चिकित्सा, आर्थिक या शैक्षिक क्षेत्रों में कोई विकास नहीं हुआ।” अलग राज्य में होंगे आठ लोकसभा क्षेत्र और 54 विधानसभा क्षेत्र: अलग राज्य में आठ जिले, आठ लोकसभा क्षेत्र और 54 विधानसभा क्षेत्र शामिल होंगे। मोर्चा चाहता है कि केंद्र में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार संसद के आगामी शीतकालीन सत्र में उसकी मांग पर अपना रुख स्पष्ट करे। फोन पर बात करते हुए फ्रंट के प्रवक्ता और कामतापुर प्रोग्रेसिव पार्टी के नेता उत्तम रॉय ने कहा, “फ्रंट में कई पार्टियों और संगठनों ने किसी न किसी तरह से वर्षों से भाजपा का समर्थन किया है। लेकिन बीजेपी ने हमें सिर्फ वादे दिए। उत्तर बंगाल के लिए कुछ नहीं किया गया। संसद का शीतकालीन सत्र जल्द ही शुरू होगा। हम राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और केंद्रीय गृह मंत्री को ज्ञापन सौंपेंगे। हम उनकी प्रतिक्रिया का इंतजार करेंगे। हम चाहते हैं कि वे आगामी लोकसभा चुनाव से पहले जवाब दें। या हमारी अन्य योजनाएं हैं। हम 20 दिसंबर को दिल्ली में धरना देंगे, इसके बाद 7 जनवरी को सिलीगुड़ी, 24 जनवरी को रायगंज और 28 जनवरी को कूच बिहार में मेगा रैलियां करेंगे।” यूनाइटेड फ्रंट फॉर सेपरेट स्टेट के प्रवक्ता उत्तम रॉय ने कहा कि वे केंद्र सरकार को स्पष्ट संदेश भेजने के लिए जल्द ही उत्तर बंगाल के केंद्र में स्थित स्थान, विशेषकर सिलीगुड़ी में एक सार्वजनिक बैठक करेंगे, ताकि वह संसद में इस मुद्दे पर निर्णय ले सके। फ्रंट ने सिलीगुड़ी से शुरू करके उत्तर बंगाल में सार्वजनिक बैठकें और रैलियां आयोजित करने की भी योजना बनाई है। इन पार्टियों और संगठनों का गोरखा, राजबंशी और आदिवासी समुदायों के बीच सपोर्ट बेस है, जिसने 2019 से भाजपा को उत्तर बंगाल में सीटें जीतने में मदद की है। यह 2021 में था जब अलीपुरद्वार से भाजपा सांसद जॉन बारला ने उत्तर बंगाल को अलग राज्य बनाने की मांग उठाई थी। हालांकि, भाजपा की राज्य इकाई के नेताओं ने स्पष्ट किया कि यह पार्टी का रुख नहीं है।1980 के दशक में हुआ था गोरखालैंड राज्य के लिए आंदोलन: अलग गोरखालैंड राज्य के लिए आंदोलन सबसे पहले गोरखा नेशनल लिबरेशन नेशनल लिबरेशन फ्रंट (जीएनएलएफ) के संस्थापक सुभाष घीसिंग ने 1980 के दशक में एक हिंसक आंदोलन के माध्यम से शुरू किया था। घीसिंग के भरोसेमंद सहयोगी बिमल गुरुंग के जीएनएलएफ से अलग होने और अपनी पार्टी गोरखा जनमुक्ति मोर्चा (जीजेएम) बनाने के बाद मांग फिर से उठी। 2017 में दार्जिलिंग पहाड़ियों में 104 दिनों के बंद और हिंसक आंदोलन के साथ यह मुद्दा एक बार फिर भड़क गया। गुरुंग और अन्य नेताओं के खिलाफ यूएपीए की धाराओं सहित कई मामले दर्ज किए गए थे। बाद में गुरुंग ने तृणमूल कांग्रेस को समर्थन देने की घोषणा की थी। कामतापुरी को कोच राजबंशी के नाम से जाना जाता है। यह कूच बिहार जिले के लोगों का एक एससी समुदाय है, जिन्होंने कामतापुर के एक अलग राज्य के लिए आंदोलन किया, जिसमें उत्तरी बंगाल के आठ में से सात जिले और असम के चार जिले (कोकराझार, बोंगाईगांव, धुबरी और गोलपारा) और बिहार का किशनगंज जिला व नेपाल का झापा जिला शामिल है। यह मांग पहली बार 1995 में एक सशस्त्र उग्रवादी संगठन कामतापुर लिबरेशन ऑर्गनाइजेशन (केएलओ) के गठन के बाद उठाई गई थी। हालांकि, 2000 के दशक की शुरुआत में नेतृत्व संकट और केएलओ और ऑल कामतापुर स्टूडेंट्स यूनियन (एकेएसयू) के कई कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी के कारण आंदोलन विफल हो गया। रिपोर्ट अशोक झा

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