सैर सपाटा: रोचेस्टर की डायरी 15@ आइए मेरे संग घूूमिए अमेरिका के स्ट्रांग नेशनल प्ले म्यूजियम में
सैर सपाटा: रोचेस्टर की डायरी 15
स्ट्रांग नेशनल प्ले म्यूजियम
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खेल – खिलौनों को लेकर मानव जाति का आकर्षण अति प्राचीन और स्वाभाविक है । देश-काल के अनुसार इनका कलेवर/ रूप भले ही बदलता रहा हो, लेकिन यह अपने समाज की पहचान भी होते हैं।
इनका भी एक इतिहास होता है और इनकी भी एक जीवन यात्रा होती है हम मनुष्यों की तरह। हजारों वर्षों से यही होता चला आ रहा है।
मेेरा यह मनोभाव उस स्थान विशेष की उपज हैं, जिनसे हम रूबरू होने पहुंचे थे। सीधी बात पर आते हैं। रोचेस्टर के हृदय स्थल कहे जाने वाले स्थान वन मैन हटन स्क्वायर पर स्ट्रांग नेशनल प्ले म्यूजियम है । यहां इनडोर खेलों- खिलौनों का बहुत बड़ा संसार है ।
यह सब न केवल बच्चों के लिए काफी लुभावना है अपितु बड़े भी अपनी जानकारियों में इजाफा होते अनुभव कर सकते हैं। जैसा कि मैंने किया । इन्हें देख कर मुझे महसूस हुआ कि अमेरिकी जिस काम में रुचि लेते हैं उसको अच्छे तरीके से पूरा भी करते हैं ।
इससे पता चलता है कि वह अपनी विरासत को बचाने की प्रति कितने गंभीर हैं। यह संकल्प दोनों ओर से दिखता है । चाहे वह सरकार हो या आम नागरिक।
यद्यपि स्ट्रांग नेशनल प्ले म्यूजियम का इतिहास बहुत लंबा नहीं है लेकिन जानने योग्य जरूर है। एक अमेरिकी महिला मार्गरेट वुडबरी स्ट्रांग के व्यक्तिगत प्रयासों से 1969 में इस संग्रहालय की स्थापना हुई है।
दरअसल उसके पास गुड़ियों और अन्य खिलौनों का बहुत बड़ा संग्रह था , जो उसने संग्रहालय के लिए दे दिया । लेकिन आम लोगों के लिए 1982 में इस संग्रहालय को खोला गया। बाद के वर्षों में इसका और भी विस्तार किया गया । अब नए भवन में स्थापित म्यूजियम काफी विस्तृत है ।
इसका प्रधान उद्देश्य अमेरिका के सामाजिक और सांस्कृतिक इतिहास की झलक प्रस्तुत करना था। खासकर 1830 से 1940 तक के खिलौनों के इतिहास को समेटने की कोशिश की गई है। वैसे आधुनिक युग के प्रचलित खिलौने भी यहां खूूब उपलब्ध हैं।
म्यूजियम में प्रवेश से पूर्व गाड़ी पार्क करनी पड़ती है, जिसका शुल्क $25 है । इसी तरह संग्रहालय देखने के लिए $19 प्रति व्यक्ति शुल्क निर्धारित है।
प्रवेश द्वार पर ही बड़ों की उंगली पकड़कर बड़े उत्साह से भीतर जाते बच्चे यह संकेत जरूर दे रहे थे कि भीतर जो कुछ भी है , वह काफी मजेदार हैं।
इनडोर खेलों में जिसकी कल्पना की जा सकती है , वह सभी यहां मौजूद हैं। तरह-तरह के खिलौने यहां पर हैं। पर इतिहास की धरोहर बन चुके प्राचीन खिलौने सिर्फ दर्शनीय हैं।
यहां पर ज्ञात हुआ कि बच्चों को लुभाने वाली गुड़ियों का भी लंबा इतिहास है और उसके स्वरूप में समय-समय पर परिवर्तन होता रहा है। उदाहरण के लिए बार्बी डॉल समय के साथ अपना रूप बदलती रही है।
ट्रस्ट द्वारा संचालित इस म्यूजियम को लोगों द्वारा डोनेशन भी मिलता रहता है, जिससे बच्चों के मनोरंजन को और व्यापक आयाम देने का प्रयास आज भी जारी है। बोर्ड गेम , वीडियो गेम, इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों वाले खेल, बच्चों की ट्रेन आदि उदाहरण इसी की पुष्टि करते हैं । लेकिन इसको खेलने के लिए पैसा खर्च करना पड़ेगा।
म्यूजियम में एक प्ले लैब भी है। यहां पर कागज है। कलम है। ब्रश है। बच्चे अपनी इच्छा से कुछ भी बना सकते हैं। बच्चों की रचनात्मकता को प्रोत्साहन देने के लिए यह सब किया गया है।
कॉमिक्स और कहानियों का भी यहां बड़ा संग्रह है । समय की कमी से किताबों को उलट-पुलट तक हम आगे बढ़ गए ।
अमेरिकन कॉमिक्स में वर्णित चरित्रों से हम अपरिचित थे, लेकिन वहां पर उनका मूर्तिमान स्वरूप देखकर उनके साथ फोटो खिंचवाने का लोभ हम छोड़ नहीं सके।
यहां का मछलीघर भी बच्चों को लुभाने वाला है । खारे पानी और मीठे पानी में मिलने वाली तरह-तरह की मछलियां रंगीन शीशे के पीछे अपना करतब दिखाती रहीं।
दूसरी ओर बच्चों की ट्रेन यात्रियों का इंतजार कर रही थी । म्यूजियम में एक खेल जरूर बड़ों के लिए भी था। मुुझे अच्छा लगने के बावजूद साहस की कमी आड़े आ रही थी । स्काईलाइन क्लाइंब नाम वाले इस खेल में काफी ऊंचाई पर रस्सियों और हिलते – डुलते पुलों से इधर से उधर गुजरना था। यहां तक कि नीचे लगे जाल पर गिरने पर भी चोट लगने की आशंका नहीं थी ।
फिर भी मुझे यह खेल डराने वाला लगा। इतनी ऊंचाई पर जाना मजबूत दिलवाले के लिए ही संभव था। अब वीडियो गेम वाले सेक्शन में पहुंच गए। वीडियो गेम खेलने वाले बच्चों का उत्साह उनके चेहरे पर झलक रहा था । ऐसे स्मार्ट बच्चों को देखकर अपने दौर के बचपन की याद भला क्यों ना आती।
तब गुल्ली- डंडा और आइसपाइस जैसे खेलों में बचपन कब आगे निकल गया, पता ही नहीं चला। आज के बच्चे पैसे खर्च करने वाला खेल खेलते हैं, जबकि हमारी पीढ़ी के बच्चे मुफ्त वाले खेल में ही संतुष्ट हो जाते थे । मुझे तो यह समय का बड़ा बदलाव लगता है।
खेल म्यूजियम वैसे तो दिन भर खुला रहता है। जितना मन हो कॉमिक्स पढ़ते जाइए। कहानियों में दिलचस्पी लीजिए । ढेर सारी किताबें हैं । यह कभी खत्म नहीं होंगी।
उधर शाम को म्यूजियम बंद होने का समय तो निश्चित ही है । हमारे पास समय कम था और कई खेलों में अलग से टिकट लेना भी था । इसलिए हम उसे बाहर से देख कर आगे बढ़ते गए । इस संग्रहालय की विविधता और व्यापकता को देखते हुए इसे अमेरिका के सबसे बड़े म्यूजियम में से एक गिना जाता है ।
सचमुच इसका आकर्षण बहुत है । बच्चे भी इसकी तस्दीक करते दिखे। क्योंकि जितने उत्साह से वह म्यूजियम में प्रवेश करते थे , इतने उत्साह से बाहर निकलते नहीं थे। मैं यह देख कर मुस्कुराए बिना नहीं रह सका कि बाहर निकलने के लिए अभिभावकों को कुुछ बच्चों का हाथ पकड़कर खींचना पड़ रहा था ।
मैं देख रहा था और सोच भी रहा था कि इस म्यूजियम की सार्थकता का इससे बड़ा प्रमाण और क्या हो सकता है।
क्रमश: …….-लेखक आशुतोष पाण्डेय अमर उजाला वाराणसी के सीनियर पत्रकार रहे हैं, इस समय वह अमेरिका घूम रहे हैं,उनके संग आप भी करिए दुनिया की सैर