सैरसपाटा : काशी के कलमकार आशुतोष पाण्डेय अमेरिका का जहाज पकड़ने से पहले किस प्रकार की तैयारी किए, पढ़िए आपको भी दुनिया घूमने का दिल करता है तो काम आएगा
सैर सपाटा: रोचेस्टर की डायरी: आमुख 2
अमेरिका जाने के लिए हमारा टिकट 18 सितंबर का था । लेकिन हमें वस्तुतः 17 की रात 2:00 बजे यूनाइटेड एयरलाइंस की फ्लाइट से दिल्ली से रवाना होना था । पड़ोसी देश नेपाल के अलावा विदेश यात्रा का यह दूसरी बार मौका मिल रहा था।
यह विदेश यात्रा भी कई महीनों के लिए थी, अतः ठीक ढंग से इसकी तैयारी भी करनी जरूरी थी। ठंड को देखते हुए सामान में गर्म कपड़े भी आवश्यक थे। कुछ सामान बिटिया के लिए भी ले जाना था । विदेश जाने वाले यात्रियों को प्रति व्यक्ति 22. 5 किलो तक का सामान ले जाने की अनुमति होती है । इसी प्रकार हाथ में रखने वाले बैग में 8 किलो तक सामान रखा जा सकता है। इस मानक के अनुसार ही हमने सामानों की पैकिंग की।
निश्चिंत होने के लिए उनका वजन भी कर लिया, जिससे एयरपोर्ट पर कोई झंझट ना हो । सामानों की लिस्ट भी बना ली थी ताकि कोई जरूरी चीज छूटने ना पाए। यह भी ध्यान दिया कि कोई आपत्तिजनक वस्तु बैग में न जाने पाए।
दिल्ली में हम पति-पत्नी दो दिन छोटी बिटिया रत्नप्रभा के साथ भी बिताना चाहते थे , क्योंकि दिल्ली विश्वविद्यालय में पढ़ने वाली रत्नप्रभा कई महीनों से बनारस नहीं आई थी। इसलिए हमारी यात्रा बनारस से 14 सितंबर को शिवगंगा एक्सप्रेस से आरंभ हुई ।
सामान अधिक था । छोटे भाई हेरंंब गाड़ी से बनारस स्टेशन तक छोड़ने आए । इससे जहां समय की बचत हुई , वहां पर्याप्त सुविधा भी हो गई। रात में सोते – जागते अगले दिन सुबह 8:30 बजे हम नई दिल्ली स्टेशन पहुंच गए ।
यहां से हमें द्वारिका सेक्टर 21 जाना था , जो अधिक दूर नहीं था । लेकिन दूसरी मेट्रो में बैठने से दूरी और समय दोनों बढ़ गया । उधर वसुमित्र उपाध्याय जी हमारी राह देख रहे थे। यह वही उपाध्याय जी हैं , जो वीजा इंटरव्यू के लिए कुछ बरस पहले हमारे साथ अमेरिकी दूतावास भी जा चुके थे ।
खैर देर से ही सही हम उनके घर पहुंच गए । दोपहर का भोजन वहीं पर हुआ।
इसके बाद दिल्ली विश्वविद्यालय कैंपस में स्थित ला फैकेल्टी में बिटिया से मिलने पहुंचे। कुछ खरीदारी करनी थी। इसलिए बिटिया के साथ कमला नगर मार्केट से कुछ सामान खरीदा। यहां से उसके कमरे पर भी गए । जहां उसकी सहपाठी ने बढ़िया चाय पिलाकर हमारा स्वागत किया । रात में रत्नप्रभा के साथ पुनः उपाध्याय जी के यहां हम पहुंच गए थे।
अगली सुबह यात्रा से जुड़े कुछ दस्तावेजों के फोटो स्टेट भी कराए। दिन में बरसात होती रही । शाम को कार से दिल्ली का भ्रमण करने निकले । संसद भवन , राष्ट्रपति भवन इंडिया गेट , आकाशवाणी भवन आदि को चलती हुई कार से देखा । रुकने की जरूरत नहीं थी क्योंकि यह सब चीजें पहले भी हम देख चुके थे ।
लौटते वक्त द्वारिका में ही गोलगप्पा और जलेबी खाना रुचिकर लगा । घर पर खाना खाने के बाद देर रात तक बातें करते रहे ।
अगले दिन 17 तारीख थी । आज की रात ही हमें अमेरिका के लिए प्रस्थान करना था। इसलिए दिन भर घर में ही आराम करते रहे । उपाध्याय जी ने अपनी अमेरिका यात्रा के कई संस्मरण भी सुनाए। शायद यह सब हमारे उत्साहवर्धन के लिए था ।
एयरपोर्ट यहां से नजदीक ही था। इसलिए दिन भर जहाजों का आना-जाना खिड़कियों से देखता रहा। रात के 8:00 बजे हम इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट जाने के लिए निकले। द्वारिका मेट्रो स्टेशन पर हमें छोड़ने के लिए उपाध्याय जी उनकी पत्नी , मेेरी बिटिया रत्नप्रभा आई थी।
विदाई का यह क्षण भावुुक करने वाला था । एक तरफ उपाध्याय परिवार का बार-बार वही आतिथ्य सत्कार , तो दूसरी तरफ रत्नप्रभा को छोड़कर विदेश जाना । हालांकि दिल्ली जाते वक्त बिटिया हमें छोड़कर जाती थी । यद्यपि इस बार हम उस को छोड़कर विदेश जा रहे थे , यह पहली बार हो रहा था ।
भारी मन से विदा लेकर हम मेट्रो स्टेशन में घुस गए । अगले 10 मिनट में हम एयरपोर्ट मेट्रो स्टेशन भी पहुंच गए । एयरपोर्ट जाने का रास्ता पूछना चाहते थे । लेकिन यहां तो स्टेशन के अंदर से ही एयरपोर्ट की तरफ रास्ता जाता था । गलियारों से होते हुए हम अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट तक पहुंच गए।
क्रमश
-लेखक आशुतोष पाण्डेय अमर उजाला वाराणसी के सीनियर पत्रकार रहे हैं, इस समय वह अमेरिका घूम रहे हैं,उनके संग आप भी करिए दुनिया की सैर