श्मशान की होली को वही झेल सकता है जो भैरव – भैरवी, तारा, प्रत्यंगिरा, धूमावती, छिन्नमस्ता या श्मशान काली का साधक होगा

वाराणसी। काशी में श्मशान की होली की नई परंपरा पंर काशी विदत्त परिषद ने चिंता व्यक्त करते हुए चेतावनी दी है।

💐💐** श्मशान की होली **💐💐
*- ” खेले मसाने में होली दिगम्बर ” होली गीत ने कुछ लोगों को अवसर दे दिया कि वे श्मशान में जा कर भस्म होली खेलें।
*– पहली बात श्मशान की होली दिगम्बर हो कर खेलते हैं श्वेताम्बर, नीलाम्बर, पीताम्बर या जीन – सूट अम्बर हो कर नहीं।
जो कोई श्मशान भैरव का साधक हो वह श्मशान में भस्म होली खेल सकता है। वह चिता की अग्नि में सुरा से हवन कर सकता है।मकार सेवन कर सकता है पर विष्णु , सूर्य,
गणेश,श्री विद्या, महालक्ष्मी,महासरस्वती का साधक वहाँ जा कर होली खेलने की पात्रता ही नहीं रखता।
मैंने १९९८ से २००० के बीच एक अध्ययन किया था-
“राजनैतिक पुतला दहन के परिणाम” विषय को लेकर।
इसमें प्रायः यह देखने को मिला था जो लोग विरोध के लिए पुतला जलाते हैं वे एक से तीन वर्ष के भीतर किसी न किसी रोग या विरोध के कारण परेशान होते हैं।अधिक से अधिक पुतला दहन करने वाला या हमेशा पुतला बना कर रखने वाला तो अवसाद और संकट का भागी बन गया। अतः श्मशान की होली को वही झेल सकता है जो भैरव – भैरवी, तारा, प्रत्यंगिरा, धूमावती, छिन्नमस्ता या श्मशान काली का साधक होगा।शेष लोग जो आनन्द लेने श्मशान में होली खेल रहे हैं वे जीवन में इसकी कीमत चुकायेंगे।
*- श्मशान की अग्नि क्रव्य अग्नि होती है जो मृत शरीर का भोजन करती है। वहां जा कर सम्वत्सर अग्नि से होने वाले कार्य को जो सम्पन्न करेंगे वे सर्पिणी से व्याह कर मनुष्य उत्पन्न करने की अभिलाषा रखेंगे।
💐💐* श्मशान प्रवेश कभी भी अकारण नहीं करना चाहिये। चिता पर शव दाह करने या श्मशान सिद्धि करने के अतिरिक्त श्मशान प्रवेश वर्जित है।अगर कोई वर्जना तोड़ना ही जीवन की सफलता मानता हो तो वह भी जा सकता है। श्मशान का वेध लगने पर लोग वहाँ मकान नहीं बनाते हैं। श्मशान के वृक्ष के पुष्प और फल पर गृहस्थों का अधिकार नहीं होता।जो श्मशान की वस्तुओं पर अपना अधिकार जमाते हैं वे प्रेत,भूत,भैरव,श्मशान देवता के हक को छीनते हैं।श्मशान में प्रवेश करते समय
मन्त्र बोला जाता है–
” नमो रुद्राय पितृषदे स्वस्ति मा सम्पारय ”
हे रुद्र! आपको प्रणाम है।आप पितरों में रहते हैं।आप कल्याण करें, पार लगायें।
श्मशान प्रेत को पितर बनाने का स्थान होता है।उसकी विशेषता को जो भंग करेगा वह रुद्र दण्ड का पात्र बनेगा।
डॉ कामेश्वर उपाध्याय
अखिल भारतीय विद्वत्परिषद

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