रत्नों के परीक्षण हेतु काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में स्थापित हो रही है अत्याधुनिक प्रयोगशाला
भारत सरकार के साथी कार्यक्रम के तहत सेन्ट्रल डिसकवरी सेन्टर में बनाई जा रही है परीक्षण सुविधा
-शिक्षा व उद्योग जगत के बीच सहयोग का बेहतरीन उदाहरण पेश कर रहा बीएचयू
-नई प्रयोगशाला के संदर्भ में उद्योग जगत के प्रतिनिधियों के साथ 27 अप्रैल को आयोजित किया जाएगा संवाद कार्यक्रम
वाराणसी: रत्न और अन्य कीमती पत्थरों का व्यापक रूप से आम जनता द्वारा आभूषणों व अन्य उद्देश्यों के लिए उपयोग किया जाता है। रत्न व कीमती पत्थर न केवल व्यावसायिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण हैं अपितु ज्योतिष के लिहाज़ से भी आमजन को बड़े पैमाने पर आकर्षित करते हैं। ऐसे में शुद्ध व असली तथा नकली रत्न की पहचान इस उद्योग से जुड़े लोगों व इकाइयों तथा जनमानस के लिए एक महत्वपूर्ण चरण है। रत्न उद्योग के व्यापार और व्यवसाय में कई छोटे और मध्यम उद्यम (SMEs) शामिल होते हैं। ऐसे में अधिकांश रत्न परीक्षण प्रयोगशालाएँ पश्चिमी भारत के मुंबई, सूरत, अहमदाबाद आदि शहरों में स्थित हैं तथा पूर्वी उत्तर प्रदेश में ऐसी विश्वसनीय परीक्षण सुविधाओं की कमी है। वैज्ञानिक पद्धति से रत्नों का प्रमाणीकरण असली और नकली रत्नों के बीच अंतर करने में मदद करता है तथा आम जनता के मन में विश्वास पैदा करता है। देश के इस भाग में एक आधुनिक व भरोसेमंद रत्न परीक्षण प्रयोगशाला की स्थापना की आवश्यकता लंबे समय से महसूस की जा रही थी। इसी क्रम में विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी), भारत सरकार, द्वारा स्वीकृत SATHI (Sophisticated Analytical and Technical Help Institute) योजना के तहत प्राप्त अनुदान के दूसरे चरण में काशी हिंदू विश्वविद्यालय स्थित सेन्ट्रल डिसकवरी सेन्टर में अत्याधुनिक रत्न परीक्षण और अनुसंधान प्रयोगशाला स्थापित की जा रही है।
रत्न की सटीक पहचान और गुणवत्ता में अक्सर एक से अधिक तकनीकें शामिल होती है, इसलिए साथी योजना के अंतर्गत 3.75 करोड़ रुपये के निवेश के साथ इस रत्न परीक्षण सुविधा में अत्याधुनिक मशीनें स्थापित की जा रही हैं। इनमें एफटीआईआर (Fourier transformation infra-red spectroscope) लेजर रमन स्पेक्ट्रोस्कोपी, ईडीएक्सआरएफ (Energy Dispersive X-ray Fluorescence Spectrometer), टेबल टॉप एक्सआरडी (X-ray Diffractmeter), यूवी-विज़-एनआईआर (Ultra violet, visible and near infra-red) -स्पेक्ट्रोमीटर, दूरबीन, ध्रुवीकरण माइक्रोस्कोप एवं लेजर कटर जैसे कई आधुनिक परिष्कृत उपकरण शामिल हैं। इनमें से प्रत्येक उपकरण रत्न के विभिन्न पहलुओं जैसे संरचना, रसायन, रंग, समावेश आदि की पहचान के लिए अलग-अलग उद्देश्यों की पूर्ति करते है।
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के विज्ञान संस्थान के निदेशक तथा बीएचयू-साथी के समन्वयक प्रो. अनिल कुमार त्रिपाठी ने बताया कि यह पहली बार है कि देश के इस हिस्से में ऐसी प्रयोगशाला स्थापित की जा रही है। उन्होंने बताया कि विज्ञान संस्थान और महिला महाविद्यालय, बीएचयू के भूविज्ञान, रसायन विज्ञान और भौतिकी विज्ञान विभागों से खनिज विज्ञान, एक्स-रे स्पेक्ट्रोस्कोपी के विविध क्षेत्रों में विशेषज्ञ प्रोफेसर एवं एक बाहरी विशेषज्ञ, जो रत्न परीक्षण प्रयोगशाला भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण के प्रमुख रहे थे, रत्न परीक्षण प्रयोगशाला के कामकाज की निगरानी को सुनिश्चित करने के लिए एक टीम का हिस्सा होंगे। प्रो. त्रिपाठी ने कहा कि गुणवत्ता परीक्षण और रत्नों के व्यापार से जुड़े विविध विषयों व चुनौतियो को बेहतर ढंग से समझने व उनके इस प्रयोगशाला के माध्यम से प्रभावी समाधान खोजने के उद्देश्य से उद्योग प्रतिनिधियों व बीएचयू के भूविज्ञान विशेषज्ञों के एक संवाद कार्यक्रम का आयोजन भी आगामी 27 अप्रैल को किया जा रहा है। सेन्ट्रल डिसकवरी सेन्टर में अपराह्न 3.30 बजे प्रस्तावित इस संवाद में प्रतिभागिता के लिए रत्न की गुणवत्ता के परीक्षण में रुचि और अनुभव रखने वाले लोग मुख्य परिचालन अधिकारी, साथी-बीएचयू, श्री सैकत सेन (फोन 8127980858, ईमेल: sathi-bhu@bhu.ac.in) से सम्पर्क कर सकते हैं। प्रोफेसर त्रिपाठी ने यह भी कहा कि प्रस्तावित रत्न परीक्षण प्रयोगशाला सरकार की उस सोच के अनुरूप हैं, जिसमें बीएचयू जैसे शैक्षणिक संस्थानों को अपने तकनीकी अनुभव और विशेषज्ञता द्वारा स्थानीय उद्योगों की मदद करनी चाहिए। उन्होंने रेखांकित किया कि यह रत्न परीक्षण प्रयोगशाला माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी द्वारा किये गए आह्वान का नतीजा है, जिसमें विज्ञान और प्रौद्योगिकी को आम जनता और आम लोगों की जरूरतों तक पहुँचना चाहिए। साथ ही साथ यह प्रयोगशाला शिक्षा व उद्योग जगत की सहभागिता का एक उत्तम उदाहरण भी पेश करेगी ।