सांस्कृतिक-साहित्यिक-आध्यात्मिक विरासत को संजोने का आयोजन बना काशी-तमिल संगमम्
काशी-तमिल संगमम्
वाराणसी। काशी हिंदू विश्वविद्यालय के एम्पीथियेटर ग्राउंड में चल रहा काशी-तमिल संगमम् श्रोताओं एवं दर्शकों को आनंद से सराबोर कर रहा है। गुरुवार को आयोजित सांस्कृतिक संध्या के मुख्य अतिथि समाज कल्याण, अनुसूचित जाति एवं जनजाति कल्याण, राज्य मंत्री, उत्तर प्रदेश सरकार, श्री संजीव गौड़ रहे। मुख्य अतिथि ने अपने वक्तव्य में कहा कि बाबा विश्वनाथ की धरती पर आयोजित काशी तमिल संगमम अपनी तरह का ऐसा पहला आयोजन है और यह कार्यक्रम इतिहास रच रहा है। उन्होंने कहा कि काशी का पवित्र विश्वनाथ मंदिर हो या मदुरई का मीनाक्षी मंदिर, दोनों साझी संस्कृति का केंद्र है। कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि, तमिलनाडु से पधारे श्री टीएस बालाजी ने कहा कि वाराणसी की पवित्र भूमि में आयोजित इस कार्यक्रम में सम्मिलित होना गर्व का विषय है। युवा पीढ़ी को अपने समृद्ध एवं गौरवपूर्ण इतिहास के विषय में जानना चाहिए। इस दिशा में केंद्र सरकार द्वारा किया गया यह प्रकल्प अत्यंत प्रशंसनीय है। विशिष्ट अतिथि के रुप में पधारी प्रसिद्ध तमिल अभिनेत्री खुशबू गौड़ ने कहा कि काशी-तमिल संगमम हमारी विरासत का उत्सव है। आधुनिकता को स्वीकार करते हुए भी, हमें मूल से जुड़े रहना होगा। उन्होंने कार्यक्रम में तमिल से आए हुए अतिथियों को तमिल भाषा में भी सम्बोधित किया। कार्यक्रम में श्रीमती शीला बालाजी भी उपस्थित हुईं।
काशी तमिल संगमम के सांध्यकालीन कला उत्सव में गुरुवार को वाराणसी के गुणी कलाकारों ने सम्मोहक प्रस्तुतियां दी। “काशी नाथ – सोल ऑफ म्यूजिक” समूह की “शिवाय” प्रस्तुति से कार्यक्रम की शुरुआत हुई। डॉ. शनिष ज्ञावली, डॉ. आनंद मिश्रा एवं उनके साथियों ने विभिन्न वाद्ययंत्रों के माध्यम से प्राच्य-पाश्चात्य धुनों के सुंदर सम्मिलन के साथ श्रोताओं को आकृष्ट कर लिया। कार्यक्रम की अगली कड़ी में बनारस घराने के प्रसिद्ध गायक श्री गणेश मिश्रा एवं उनके शिष्यों ने मनमोहक प्रस्तुति दी। बनारस घराने की ख्याति विश्वव्यापी है। गीतों के बाद श्री पी. एस बोपथ्थी के निर्देशन में ऊर्जस्वी कलाकारों ने कवाड़ी आट्टम प्रस्तुत किया। नृत्य के बाद श्री टी. एल .मुरुगन एवं उनके साथियों ने भक्तिमय गीतों की प्रस्तुति से श्रोताओं में आस्था की उद्दीपना हुई। गीतों के बाद, कलाकारों ने श्री डी. श्रीधरन के निर्देशन में पम्बई, कई शिलाबट्टम प्रस्तुत किया। श्री एलवाझगङ्कर के निर्देशन में अगली प्रस्तुति कारागट्टम की रही। देवी मरियम्मा को समर्पित इस नृत्य में भरतनाट्यम की कई मुद्राओं को भी सम्मिलित किया जाता है। इसके बाद थंजावुर तमिलनाडु से पधारे श्री टी. एस. मुरुगन, श्री मुरुगन संगीथा, बोम्मालाथा सबा ने कार्यक्रम में कठपुतली नाट्य प्रस्तुत किया। कार्यक्रम का समापन डॉ. थिरूवरूर भक्तवत्सलम एवं सहयोगी कलाकारों की “लय – मधुरा” प्रस्तुति से हुआ।