संघ परिवार उत्साह के साथ मनाएगा शरद पूर्णिमा
संघ परिवार उत्साह के साथ मनाएगा शरद पूर्णिमा
कोलकाता: चंद्रमा जब अपनी 16 कलाओं के संग अवतरित होते हैं शरद पूर्णिमा की रात आकाश से अमृत वर्षा करते हैं। इसी तरह जब हमारा हिंदू समाज अपने सभी जाति वर्गो के साथ एकजुट होगा तभी भारत हिंदू राष्ट्र बनेगा। संघ के प्रत्येक स्वयंसेवक को चंद्रमा की किरणों के समान बनना चाहिए। ताकि वे अपने गुणों से दूसरे को लाभान्वित कर सकें। भारतमाता परम वैभव के शिखर पर विराजमान होंगी। सशक्त हिंदू ही भारत को विश्व गुरु बना पाने में सक्षम होगा और संपूर्ण विश्व में भारतीय वांग्मय की अमृत वर्षा होगी। इसी उद्देश्य के साथ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक प्रति वर्ष शरद पूर्णिमा महोत्सव मनाते हैं और जाति-वर्ग का भेद भुलाकर इस अप्रतिम रात्रि को साथ-साथ अमृत समान खीर का सहभोज करते हैं। आज चंद्रग्रहण और सूतक के कारण खेलकूद तो होगा परंतु सहभोज नहीं होगा। संघ के वर्षभर में आयोजित प्रमुख छह उत्सवों में शरद पूर्णिमा उत्सव इस लिए प्रमुख है, क्योंकि यह प्रकृति का पर्व है और प्रकृति से हमें समरसता की शिक्षा मिलती है। अतः हम एकरस होकर समरस समाज की रचना करें। वहीं महिर्षि वाल्मीकि के चरित्र पर प्रकाश डालते हुए सभी में समभाव भारतीय संस्कृति के अनुरूप आचरण करने की प्रेरणा मिलता है।
शरद पूर्णिमा के बारे में खगोलीय, पौराणिक वैज्ञानिक एवं ऐतिहासिक महत्व है। चंद्रमा आज के दिन पृथ्वी के सबसे ज्यादा करीब होता है तथा सबसे अधिक प्रखर भी होता है। ऐसी मान्यता है कि आज चंद्रमा से अमृत की वर्षा होती है जिसे हम खुले में रखे हुए खीर में संग्रहित कर लेते हैं और उसे बाद में प्रसाद रूप में ग्रहण करते हैं। इसके पौराणिक महत्व के बारे में उन्होंने ऋग्वेद की ऋचा को उद्धृत किया तथा कहा कि चंद्रमा का संबंध मन से है। पूर्णिमा अर्थात पूर्णचंद्र, स्वच्छ, सफेद, निर्दोष चंद्र अमृत की वर्षा अर्थात संपूर्ण समाज परिवर्तन में अमृत की वर्षा। रामायण के अत्यंत महत्वपूर्ण पात्र महर्षि वाल्मीकिजी का जन्म भी इसी दिन हुआ था। शरद पूर्णिमा उत्सव अपने समाज को संगठित, उत्साहित, सफल व जागृत करने का माध्यम भी है। रिपोर्ट अशोक झा