ना 2 नवंबर 1990 होता ना राम मंदिर के विग्रह की प्राण-प्रतिष्ठा 22 जनवरी 2024 आता

बलिदानियों की याद में 25 यूनिट किया गया रक्तदान, रक्तवीरो को है इसका अभिमान

सिलीगुड़ी: शहर के विहिप कार्यालय में राम जन्मभूमि के लिए अपने प्राण न्योछावर करने वाले शहिदों की याद में रक्तदान शिविर का आयोजन किया। इसमें 25 यूनिट रक्त संग्रहित किया गया। इसे रोटरी क्लब सिलीगुड़ी को सौप दिया गया। शिविर में विहिप और बजरंग दल के पदाधिकारी और कार्यकर्ता मौजूद थे। इस मौके पर राम मंदिर निर्माण आंदोलन को याद किया गया।भारत माता के मूर्ति पर माल्यार्पण कर कहा गया कि
अब जब राम मंदिर के उद्घाटन की तारीख तय हो गयी है तो यह जानना भी जरूरी है कि आखिर इस तारीख के लिए हमने क्या खोया, कितना खून बहाया है। कितनी लंबी लड़ाई लड़ी है। कितनी पीढ़िंया सिर्फ यह सोचते-सोचते गुजर गयी कि क्या वह अपनी आंख से राम मंदिर को देख पायेगी। वर्ष 1528 से चली आ रही लंबी लड़ाई, कई शहीद और पीढ़ियों के संघर्ष का परिणाम अब हम सबके सामने है तो निश्चित रूप से यह अद्भुत घड़ी है। चलिये समझते हैं कि हमने इस घड़ी के लिए क्या कुछ गंवाया। हमें यूं ही नहीं राम लला का दिव्य मंदिर देखने को मिल रहा है। हमारी पीढ़ी धन्य है क्योंकि हमने संघर्ष भी देखा और आकार लेते राम मंदिर को अपनी आंख से देख पा रहे हैं। श्री राम जन्मभूमि मंदिर में भगवान श्री रामलला सरकार के श्री विग्रह की प्राण-प्रतिष्ठा 22 जनवरी 2024 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी करेंगे। यह यात्रा उतनी भी सहज नहीं रही है जितनी आज दिखती है। यह संघर्ष 1528 से ही शुरू हो गया था जब इस्लामी आक्रांता बाबर के सेनापति मीर बाकी ने अयोध्या में भगवान राम के जन्मस्थान पर मस्जिद का निर्माण करवाया। 9 नवम्बर 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने बताया कि पूरी जमीन रामलला की। मंदिर वहीं बनेगा।
लेकिन इस मोड़ तक पहुँचने के क्रम में न जाने कितने रामभक्तों ने खुद को बलिदान कर लिया। कितनी बार अयोध्या की गलियों के रामभक्तों के रक्त से लाल कर दिया गया। ऐसी ही एक तारीख 2 नवंबर 1990 की थी। 2 नवंबर 1990 को तत्कालीन आईजी एसएमपी सिन्हा ने अपने मातहतों से कहा कि लखनऊ से साफ निर्देश है कि भीड़ किसी भी कीमत पर सड़कों पर नहीं बैठेगी। सुबह के नौ बजे थे। कार्तिक पूर्णिमा पर सरयू में स्नान कर साधु और रामभक्त कारसेवा के लिए रामजन्मभूमि की ओर बढ़ रहे थे। पुलिस ने घेरा बनाकर रोक दिया। वे जहाँ थे, वहीं सत्याग्रह पर बैठ गए। रामधुनी में रम गए। फिर आईजी ने ऑर्डर दिया और सुरक्षा बल एक्शन में आ गए। आँसू गैस के गोले दागे गए। लाठियाँ बरसाई गईं। लेकिन रामधुन की आवाज बुलंद रही। रामभक्त न उत्तेजित हुए, न डरे और न घबराए। अचानक बिना चेतावनी के उन पर फायरिग शुरू कर दी गई। गलियों में रामभक्तों को दौड़ा-दौड़ा कर निशाना बनाया गया। 3 नवंबर 1990 को छपी एक रिपोर्ट में लिखा गया था, ‘राजस्थान के श्रीगंगानगर का एक कारसेवक, जिसका नाम पता नहीं चल पाया है, गोली लगते ही गिर पड़ा और उसने अपने खून से सड़क पर लिखा सीताराम। पता नहीं यह उसका नाम था या भगवान का स्मरण। मगर सड़क पर गिरने के बाद भी सीआरपीएफ की टुकड़ी ने उसकी खोपड़ी पर सात गोलियाँ मारी।’इस घटना का उस समय की मीडिया रिपोîटग से लिए गए कुछ और विवरण पर गौर कीजिए: पुलिस और सुरक्षा बल न खुद घायलों को उठा रहे थे और न किसी दूसरे को उनकी मदद करने दे रहे थे। फायरिग का लिखित आदेश नहीं था। फायरिग के बाद जिला मजिस्ट्रेट से ऑर्डर पर साइन कराया गया। किसी भी रामभक्त के पैर में गोली नहीं मारी गई। सबके सिर और सीने में गोली लगी। तुलसी चौराहा खून से रंग गया। दिगंबर अखाड़े के बाहर कोठारी बंधुओं को खींचकर गोली मारी गई। राम अचल गुप्ता का अखंड रामधुन बंद नहीं हो रहा था, उन्हें पीछे से गोली मारी गई। रामनंदी दिगंबर अखाड़े में घुसकर साधुओं पर फायरिग की गई। कोतवाली के सामने वाले मंदिर के पुजारी को गोली मारकर मौत के घाट उतार दिया गया। रामबाग के ऊपर से एक साधु आँसू गैस से परेशान लोगों के लिए बाल्टी से पानी फेंक रहे थे। उन्हें गोली मारी गई और वह छत से नीचे आ गिरे। फायरिग के बाद सड़कों और गलियों में पड़े रामभक्तों के शव ले जाए गए। 2 नवंबर 1990 को विनय कटियार के नेतृत्व में दिगंबर अखाड़े की तरफ से हनुमानगढ़ी की ओर जो कारसेवक बढ़ रहे थे, उनमें 22 साल के रामकुमार कोठारी और 20 साल के शरद कोठारी भी शामिल थे। सुरक्षा बलों ने फायरिग शुरू की तो दोनों पीछे हटकर एक घर में जा छिपे। पर उन्हें शहीद होना ही पड़ा। अगले दिन छपी खबर में बलिदानियों की संख्या 40 बताई गई थी। साथ ही लिखा गया था कि 60 बुरी तरह जख्मी हैं और घायलों का कोई हिसाब नहीं है। मौके पर रहे एक पत्रकार ने मृतकों की संख्या 45 बताई थी। कोई 10 की मौत की बात कही थी तो किसी ने यह संख्या 400 बताई थी। आधिकारिक तौर पर बाद में मृतकों की संख्या 17 बताई गई। हालाँकि घटना के चश्मदीदों ने कभी भी इस संख्या को सही नहीं माना।
दिलचस्प यह है कि घटना के फौरन बाद प्रशासन ने अपनी ओर से कोई आँकड़े तो नहीं दिए थे, लेकिन मीडिया के आँकड़ों का खंडन भी नहीं किया था। यहाँ तक कि फैजाबाद के तत्कालीन आयुक्त मधुकर गुप्ता तो फायरिग के घंटों बाद तक यह नहीं बता पाए थे कि कितने राउंड गोली चलाई गई थी। उनके पास मृतकों और जख्मी लोगों का आँकड़ा भी नहीं था। उस समय की अपनी रिपोर्ट में स्पष्ट शब्दों में लिखा था, ‘निहत्थे कारसेवकों पर गोली चलाकर प्रशासन ने जलियांवाले से भी जघन्य कांड किया है।’ यहाँ तक कि 30 अक्टूबर 1990 के दिन भी कारसेवकों पर गोलियाँ बरसाई गई थी। आधिकारिक आँकड़े 30 अक्टूबर को 5 रामभक्तों के बलिदान की पुष्टि करते हैं। 30 अक्टूबर और 2 नवंबर 1990 को अयोध्या जय सियाराम और हर-हर महादेव के जयकारे से गूँजायमान था। 22 जनवरी 2024 यह सुनिश्चित करेगा कि अयोध्या में बस राम का नाम हो। 2024 के इस 22 जनवरी का महत्व हिदू होकर ही जाना जा सकता है। @रिपोर्ट अशोक झा

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