गुरु नानक जयंती के अवसर पर रोशनी से जगमाया गुरुद्वारा
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सिलीगुड़ी: प्रतिवर्ष कार्तिक मास की पूर्णिमा को गुरु नानक जयंती मनाई जाती है और इस वर्ष 27 नवंबर को यह पर्व पूरे हर्षोल्लास के साथ मनाया जा रहा है। सिलीगुड़ी बागडोगरा, अलीपुरद्वार, कूच बिहार समेत पड़ोसी राज्य सिक्किम में भी सिखों के प्रथम गुरु गुरु नानक जयंती पर प्रकाश पर्व मनाया जा रहा है। सिलीगुड़ी के मेयर समेत अन्य पार्टियों के नेता और प्रतिनिधि भी यहां माथा टेकने पहुंचे है।जब-जब मानवता पर संकट की घड़ी आती है जुल्म तथा अज्ञानता हद से ज्यादा बढ़ जाते हैं, धर्म और नेकी पर प्रहार होने लगते हैं, तब संसार की हालत सुधारने के लिए सृष्टि का मालिक अपने किसी विशेष प्रिय को पृथ्वी पर भेजता है। गुरु नानक देव जी का जन्म सन् 1469 में कार्तिक पूर्णिमा के दिन पिता श्री कालू मेहता तथा माता तृप्ता के घर हुआ था। उन दिनों भारत का हिंदू समाज अनेक प्रकार की जाति और संप्रदायों में विभक्त था। धार्मिक साधना के क्षेत्र में नामदेव, कबीर जैसे भक्त जातिगत तथा सांप्रदायिक भेदभाव मिटाने का प्रयास कर चुके थे लेकिन भेदभाव की मनोवृत्ति बड़ी कठोर हो चुकी थी।।ऐसी विषम परिस्थितियों का सामना करने के लिए गुरु नानक जी मनुष्य की आंतरिक शक्ति को जागृत करने का आह्वान करते हैं। वह निर्भय, निरंकार और निर्वैर परमात्मा में अखंड विश्वास करते थे और उसी विश्वास को प्रत्येक व्यक्ति के चित्त में जागृत करते थे। अपने जीवन काल के 70 वर्षों में गुरुजी ने एक तिहाई उम्र यात्राओं में ही बिताई थी। उनका उद्देश्य साधु संग और भगवद्भक्ति का प्रचार था। पहली यात्रा के समय उनके साथ उनके शिष्य मरदाना थे जिनके रबाब की धुन पर गुरुजी की रचनाएं श्रोताओं को मुग्ध कर देती थीं। दूसरी यात्रा में वे दक्षिण की ओर गए। इस बार उनके साथ दो जाट शिष्य सैदो और धेबी थे. तीसरी यात्रा में वे उत्तर की ओर कैलाश और मानसरोवर की ओर गए। साथ में सीहा और नासू नामक शिष्य थे। इस यात्रा में वे तिब्बत और दक्षिणी चीन भी गए थे। चौथी यात्रा पश्चिम की ओर हुई और वह हाजी के रूप में मक्का गए। इस यात्रा के दौरान वे बगदाद भी गए और अनेक मुस्लिम संतों और पंडितों से सत्संग किया। उनकी प्रेममय वाणी से सर्वत्र जादू सा असर दिखा। उन्होंने जहां मनुष्य के दुख-कष्टों का अनुभव किया, उन्हें दूर करने का प्रयास किया, वहीं उनके अंधविश्वास और गलत मान्यताओं को दूर करने का प्रयास भी किया। वह अपने पवित्र आचरण द्वारा विरोधियों को सत्य का साक्षात्कार करा देते थे। गुरुजी ने छोटी जातियों को भरपूर सम्मान दिया. भेदभाव तो उनमें लेशमात्र भी नहीं था। हिंदू तथा मुसलमान दोनों को समान रूप से स्नेह करते थे। उन्होंने कहा था एक ही ज्योति से संसार उत्पन्न किया गया है. सभी समान हैं। अपने जीवन में गुरुजी ने अनेक वाणियों का सृजन किया. गुरुग्रंथ साहिब में गुरुजी की वाणियां संग्रहीत हैं। गुरुजी के उपदेशों, शिक्षाओं का सार उनकी वाणी को जपुजी साहिब में दर्शाया गया है। ईश्वर एक है, उसका नाम सत्य है, वह न किसी से डरता है, न किसी से बैर करता है, उसे पाने के लिए लंबे-चौड़े ज्ञान की जरूरत नहीं है, केवल सच्चाई की आवश्यकता है।
गुरु नानक देव के जन्मदिवस को प्रकाश पर्व के रूप में मनाया जाता है। इस दिन सिख धर्म के लोग गुरुद्वारे में गुरुग्रंथ साहिब का पाठ करते हैं. इसके अलावा गुरुद्वारों में इस मौके पर बड़े पैमाने पर भजन, कीर्तन, लंगर आदि का आयोजन किया जाता है। गुरु नानक देव की कहानी : गुरु नानक देव साहब का जन्म 15 अप्रैल 1469 को पंजाब के तलवंडी में हुआ था. यह स्थान अब पाकिस्तान में आता है. यह जगह ननकाना साहिब के नाम से लोकप्रिय है और हर साल बड़ी तादाद में श्रद्धालु यहां जाते हैं. गुरु नानक देव की मां का नाम तृप्ता और पिता का नाम कल्याण चंद था. गुरु नानक देव साहिब सिखों के पहले गुरु हैं. उन्होंने ही सिख संप्रदाय की स्थापना की थी. सिख संप्रदाय के लिए गुरु नानक देव जी की जयंती का विशेष महत्व है। क्यों कहा जाता है प्रकाश पर्व?: सिख समुदाय गुरु नानक देव जी की जयंती को प्रकाश पर्व के रूप में मनाता है. दरअसल, गुरु नानक देव जी ने जीवन भर समाज सुधारक के रूप में काम किया. उन्होंने जात-पात, ऊंच-नीच आदि सभी तरह के भेद-भाव को मिटाने के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए और लोगों को एकता के सूत्र में बांधें. उनके उपदेशों ने समाज में ज्ञान फैलाया और अज्ञान रूपी अंधकार को मिटाया. उनके उपदेश आज भी प्रासंगिक हैं और लोगों को धर्म-इंसानियत के रास्ते पर चलने की प्रेरणा देते हैं. इसी के चलते गुरु नानक देव की जयंती हर साल प्रकाश पर्व के रूप में मनाई जाती है। क्योंकि नानक देवजी ने कुरीतियों और बुराइयों को दूर कर लोगों के जीवन में नया प्रकाश भरने का कार्य किया। इस दिन गुरुद्वारे को रंग-बिरंगी लाइटों और फूलों से सजाया जाता है। इसके साथ ही कीर्तन, पाठ का आयोजन किया जाता है और प्रभात फेरियां भी निकाली जाती है. गुरु नानक जयंती को गुरु पूरब और प्रकाश पर्व के नाम से भी जाना जाता है। गुरुनानक जी की जन्म तिथि और स्थान: सिखों के पहले गुरु नानक जी (Guru Nanak Ji) pका जन्म 1469 में पंजाव प्रांत के तलवंडी में हुआ था. ये स्थान अब पाकिस्तान में है. इस स्थान को नानकाना साहिब के नाम से जाना जाता है. सिख धर्म के लोगों के लिए ये बहुत ही पवित्र स्थल है. गुरु नानक जी की माता का नाम तृप्ता और पिता का नाम कल्याणचंद था.
गुरु नानक जयंती का महत्व: गुरु नानक जयंती को गुरु पर्व या फिर प्रकाश पर्व के रुप में मनाया जाता है. ये सिख धर्म में मनाया जाने वाला सबसे महत्वपूर्ण पर्व है. गुरु नानक जयंती के दिन गुरुद्वारों में कीर्तन दरबार सजता है. सुबह को वाहे गुरु जी का नाम जपते हुए प्रभात फेरी निकाली जाती है. साथ ही गुरुद्वारों में भक्तों के लिए लंगर का आयोजन किया जाता है।गुरु नानक जयंती का इतिहास: जानकारी के मुताबिक गुरु नानक देव जी को सिख धर्म का पहला गुरु माना जाता है. उन्हें नानक देव, बाबा नानक और नानकशाह के नाम से भी जाना जाता है. लद्दाख और तिब्बत के इलाकों में उन्हें नानक लामा कहा जाता है. गुरु नानक देव का जन्म साल 1526 में कार्तिक पूर्णिमा के दिन हुआ था. इस दिन को प्रकाश पर्व के रूप में मनाया जाता है. गुरु नानक जी ने जीवन से जुड़े कई उपदेश दिए हैं, जिनका आज भी लोग पालन करते हैं. गुरु नानक देव का जन्म भोई की तलवंडी में हुआ था. इस जगह को राय भोई दी तलवंडी भी कहते हैं. आपको बता दें कि अब ये जगह पाकिस्तान के ननकाना साहिब में है. इस जगह का नाम गुरु नानक देव के नाम पर ही रखा गया था. बता दें कि राजा महाराजा रणजीत सिंह ने ‘ननकाना साहिब’ गुरुद्वारा बनवाया था। गौरतलब है कि गुरु नानक देव जी ने ही सिख समाज की नींव रखी थी. गुरु नानक जी सिख समुदाय के पहले गुरु औैर इस धर्म के संस्थापक माने जाते हैं. गुरु नानक देव जी ने भारत के अलावा अफगानिस्तान, ईरान और अरब देशों में भी उपदेश दिए हैं. उनकी निजी जिंदगी की बात करें तो उनकी शादी 16 साल की उम्र में सुलक्खनी से शादी हुई। उनके दो बेटे श्रीचंद और लखमीदास हुये।आइए गुरु नानक जयंती के मौके पर उनके कुछ उपदेश जानते हैं। यदि तू अपने दिमाग को शांत रख सकता है, तो तू विश्व पर विजयी होगा। केवल वही बोलें, जो आपको मान-सम्मान दिलाए।अपनी कमाई का 10वां हिस्सा परोपकार के लिए और अपने समय का 10वां हिस्सा प्रभु भक्ति में लगाना चाहिए। हमेशा दूसरों की मदद के लिए तैयार रहो क्योंकि जब आप किसी की मदद करते हैं, तो ईश्वर आपकी मदद करता है। जिसे खुद पर विश्वास हो, वही भगवान पर विश्वास कर सकता है। रिपोर्ट अशोक झा