13 साल बाद 14वें दलाई लामा के प्रवचन सुनने को सिक्किम आतुर

तिब्बती आध्यात्मिक नेता 14वें दलाई लामा तेनजिन ग्यात्सो 13 साल के अंतराल के बाद सिक्किम की तीन दिवसीय यात्रा पर आज यहाँ पहुंचे। दलाई लामा सिक्किम में अपने प्रवास के दौरान “बोधिसत्व के सैंतीस अभ्यास” पर शिक्षा देंगे। दलाई लामा यहां पल्जोर स्टेडियम में प्रवचन देने के साथ अपने अनुयायियों को आशीर्वाद प्रदान करेंगे। उनका प्रवचन ‘बोधिसत्व के 37 अभ्यास और बोधिसत्व सृजन समारोह’ पर केंद्रित होगा। कार्यक्रम में मुख्यमंत्री प्रेम सिंह तमांग, मंत्री, विधायक और अन्य गण्यमान्य नागरिक उपस्थित रहेंगे। धर्मगुरु 14वें दलाई लामा अपनी तीन दिवसीय यात्रा पर सोमवार सुबह सिक्किम पहुंचे। यहां मुख्यमंत्री प्रेम सिंह तमांग, कैबिनेट मंत्रियों और अन्य गणमान्य लोगों ने उनका स्वागत किया। सुबह बागडोगरा हवाईअड्डे (पश्चिम बंगाल) से हेलीकॉप्टर से राजधानी गंगटोक के लीबिंग स्थित भारतीय सेना के हेलीपैड पर उतरे। दलाई लामा के स्वागत के लिए हेलीपैड के पास वीसी गंजु लामा द्वार से राष्ट्रीय राजमार्ग 10 के दोनों ओर बड़ी संख्या में श्रद्धालु कतार में खड़े थे। भक्तों ने दलाई लामा को प्रणाम कर स्वागत किया। दलाई लामा ने भी अपनी गाड़ी से हाथ हिलाकर भक्तों का अभिवादन स्वीकार किया।सिक्किम के राज्यपाल लक्ष्मण प्रसाद आचार्य आज होटल में दलाई लामा से मुलाकात करेंगे। दलाई लामा 12 दिसंबर को राजधानी गंगटोक के पाल्जोर स्टेडियम में एक धार्मिक प्रवचन कार्यक्रम में शामिल होंगे और 14 दिसंबर को सिक्किम से वापस लौटेंगे।
भव्य स्वागत: दलाई लामा आज पूर्वी सिक्किम में लिबिंग सेना के हेलीपैड पर उतरे। जहां मुख्यमंत्री प्रेम सिंह तमांग ने उनका स्वागत किया। राज्य के विभिन्न मठों के भिक्षुओं द्वारा पारंपरिक बौद्ध नृत्य और प्रार्थना, जिसे ‘शेरबंग’ के नाम से जाना जाता है, के साथ उनका भव्य स्वागत किया गया। निर्वासित तिब्बती संसद, तिब्बती निपटान कार्यालय और स्थानीय तिब्बती सभा के कुछ सदस्य भी उनका स्वागत करने के लिए उपस्थित थे। सैकड़ों की भीड़: 87 वर्षीय दलाई लामा गंगटोक के एक होटल में रुके हैं। आध्यात्मिक नेता की एक झलक पाने के लिए सैकड़ों लोग देवराली से जीरो पॉइंट तक राजमार्ग के दोनों ओर कतार में खड़े थे। वह 12 दिसंबर को नाथुला में भारत-चीन सीमा से लगभग 50 किमी दूर पलजोर स्टेडियम में “बोधिसत्व के सैंतीस अभ्यास” पर शिक्षा देंगे। गंगटोक के एसपी तेनजिंग लोडेन लेप्चा ने कहा, दलाई लामा से आशीर्वाद लेने के लिए लगभग 40,000 भक्त पलजोर स्टेडियम में कार्यक्रम में शामिल होंगे। दलाई लामा ने आखिरी बार 2010 में सिक्किम का दौरा किया था। वह रुमटेक में करमापा पार्क परियोजना और गंगटोक जिले के सिम्मिक खामडोंग निर्वाचन क्षेत्र में ग्यालवा ल्हात्सुन चेनपो की मूर्ति की आधारशिला भी रखेंगे। उनका गुरुवार सुबह तक गंगटोक में रुकने का कार्यक्रम है, जिसके बाद वह पश्चिम बंगाल के सिलीगुड़ी के सालुगाड़ा के लिए रवाना होंगे। अक्टूबर में दलाई लामा की सिक्किम यात्रा अचानक आई बाढ़ के कारण रद्द कर दी गई थी, जिसमें कई लोगों की जान चली गई थी और हजारों लोग विस्थापित हुए थे।
बौद्ध धर्म को मानने वाले लोग दलाई लामा में भगवान बुद्ध की छवि देखते हैं: दलाई लामा ऐसे शख्स हैं जिनसे चीन भी घबराता है। चीन की चले तो वह दलाई लामा को खत्म करवा दे हालांकि वह भारत की शरण में हैं और इसीलिए सुरक्षित हैं। चीन ने दलाई लामा को साजिश फंसाने की कोशिश की थी लेकिन वह बच निकले। तिब्बत सरकार के गठन के बाद स्पष्ट हो गया था कि दलाई लामा की जान को बड़ा खतरा था। चीन उनको फंसाने की कोशिश में लगा था। तभी दलाई लामा ने भारत की शरण लेने का विचार किया और तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू को संदेश भिजवा दिया। पंडित नेहरू ने तुरंत उन्हें अनुमति दे दी। तब से वह भारत में ही रहते आ रहे हैं।
कौन हौते हैं दलाई लामा
बौद्ध धर्म में भगवान बुद्ध के बाद अगर किसी को ऊंचा स्थान प्राप्त है तो वह हैं दलाई लामा। बौद्ध धर्म को मानने वाले लोग दलाई लामा में भगवान बुद्ध की छवि देखते हैं। वह तिब्बती बौद्धों के ना केवल धार्मिक बल्कि राजनीतिक गुरु भी होते हैं। दलाई लामा बनने की प्रक्रिया भी कोई आसान नहीं है। वहीं एक दलाई लामा के चलते किसी और का चयन इस पद के लिए नहीं किया जा सकता। माना जाता है कि दलाई लामा हमेशा एक ही शख्स रहता है और वह बार-बार जन्म लेता रहता है।
कैसे होता है दलाई लामा का चयन
चीन चाहता है कि दलाई लामा का चयन उसकी मर्जी से हो। दरअसल दलाई का अर्थ मंगोलियाई भाषा में सागर होता है और लामा का अर्थ गुरु होता है। इस समय के दलाई लामा का ओरिजनल नाम तेनजिन क्यात्सो है। दो साल की उम्र में ही उनका चयन कर लिया गया था। वह 1959 में भारत आए थे। तिब्बती समुदाय का मानना है कि दलाई लामा का पुनर्जन्म होता है। जब एक दलाई लामा की मौत होती है तो अगले दलाई लामा की खोज शुरू हो जाती है। तब तक के लिए किसी विद्वान को यह पद दिया जाता है। दलाई लामा की खोज सालों तक भी चल सकती है। दलाई लामा के चयन के बाद उनकी शिक्षा-दीक्षा भी विशेष तरीके से कराई जाती है। संकेतों के आधार पर पहले दलाई लामा का बारे में अंदाजा लगाया जाता है और फिर शुरू होती है परीक्षा। दलाई लामा से संबंधित वस्तुओं की पहचान, कुछ सवाल पूछकर पता लगाया जाता है कि वह दलाई लामा बनने योग्य हैं या नहीं। जब सारे प्रमाण मिल जाते हैं तो इसकी जानकारी सरकार को दी जाती है। @रिपोर्ट अशोक झा

Back to top button