काशी, मथुरा, वृदांवन ने एक साथ हुंकारा है कहो गर्व से हम हिन्दू हैं हिंदुस्तान हमारा हैं : साध्वी ऋतंभरा
काशी, मथुरा, वृदांवन ने एक साथ हुंकारा है कहो गर्व से हम हिन्दू हैं हिंदुस्तान हमारा हैं : साध्वी ऋतंभरा
सिलीगुड़ी: साल 1992 का साध्वी ऋतंभरा के ये सिर्फ भाषण नहीं बल्कि ये वो संघर्ष है जिसकी वजह से हमें आज राम जन्मभूमि वापस मिली है। इस बीच आम जनता में मंदिर आंदोलन के इतिहास और उसके नेताओं की चर्चा है।1990 के दशक का ‘राम जन्मभूमि आंदोलन’ का इतिहास उन औरतों की कहानी के बिना अधूरा है, जो अपने तीखे भाषणों के ज़रिए प्रभावी नेता बन कर उभरीं। साध्वी ऋतंभरा ऐसी ही एक नेत्री हैं। एक समय पर वह आंदोलन के प्रमुख चेहरों में से एक बन गई थीं।माना जाता है कि ऋतंभरा जैसी महिला नेताओं की वजह से ही आंदोलन से बड़ी संख्या में हिंदू महिलाएं जुड़ी थीं। अनुमान लगाया जाता है कि 50 हजार से ज्यादा हिंदू औरतें कारसेवा में शामिल हुई थीं।स्वामी परमानंद के साथ भारत भ्रमण के दौरान ही उन्होंने भाषण देने का कौशल सीखा।।उत्तेजक भाषण में निपुण ऋतंभरा जल्द ही विश्व हिंदू परिषद में सक्रिय हो गईं। वीएचपी ने उन्हें मंदिर आंदोलन के दौरान अपना प्रवक्ता बना दिया था।ऋतंभरा के भाषणों के ऑडियो टेप एक-एक रुपये में बेचे जाते थे। मंदिर आंदोलन के दौरान जिस एक आवाज को सबसे अधिक सुना गया, वह ऋतंभरा की आवाज थी। गली-नुक्कड़ से लेकर मंदिरों और भाजपा की सभाओं तक में ऋतंभरा के भाषणों को भीड़ में उत्तेजना भरने के लिए सुनाया जाता था। एक वक्त तो ऐसा आ गया था जब ऋतंभरा के भड़काऊ संदेश वाले भाषणों के ऑडियो टेप बनाकर एक-एक रुपए में बेचे जाते थे।इतिहासकार तनिका सरकार ने ‘हिंदू वाइफ़, हिंदू नेशन’ नाम की एक किताब लिखी है। किताब में तनिका ने बताया है कि एक वक्त तो ऐसा भी था जब अयोध्या के मंदिरों में पुजारी रोज़ाना के पूजा-पाठ छोड़कर ऋतंभरा के भाषणों का ऑडियो कैसेट चलाने लगे थे।6 दिसंबर, 1992 को भाजपा के लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी समेत कई विहिप और बजरंग दल के नेता और साधु एक मंच पर बैठे थे। यह मंच बाबरी मस्जिद से 150-200 मीटर की दूरी पर बना था। इसी मंच पर ऋतंभरा भी थीं। कारसेवकों ने जब बाबरी पर हमला किया तो आडवाणी और जोशी समेत कई नेताओं ने उन्हें रोकने के लिए मंच से आवाज लगाई। लेकिन ऋतंभरा ऐसे लोगों में नहीं थीं। वरिष्ठ पत्रकार हेमंत शर्मा ने अपनी किताब ‘युद्ध में अयोध्या’ में उस दिन का आंखों देखा हाल लिखा है। किताब के मुताबिक, ‘ऋतंभरा कारसेवकों को संबोधित करते हुए कह रही थीं कि वो इस शुभ और पवित्र काम में पूरी तरह लगें।’ वरिष्ठ पत्रकार सागरिका घोष ने अटल बिहारी वाजपेयी की जीवनी में भी छह दिसंबर का जिक्र किया है। किताब के मुताबिक, कारसेवकों ने जब बाबरी के कुछ हिस्से को गिरा दिया तो भगवा वस्त्र पहने ऋतंभरा राम कथा कुंज में गाना गाना और नृत्य करना शुरू कर दिया। इस दौरान उनकी आँखें आधी बंद थीं और होंठों के चारों ओर मुस्कान फैली हुई थी। वह लगातार कह रही थीं- एक धक्का और दो बाबरी मस्जिद तोड़ दो। बाबरी विध्वंस मामले में आरोपी थीं ऋतंभरा।बाबरी मस्जिद विध्वंस की जांच के लिए भारत सरकार ने लिब्रहान आयोग बनाया था। इस आयोग ने 68 लोगों की एक सूची तैयार की थी। इस सूची में शामिल लोगों के लिए आयोग ने कहा था कि ये देश को ‘सांप्रदायिक तनाव के कगार पर ले जाने’ के लिए व्यक्तिगत रूप से दोषी हैं। इस सूची में ऋतंभरा का नाम भी था। न्यायमूर्ति एमएस लिब्रहान ने लगभग 17 वर्षों की जांच के बाद जून 2009 में सरकार को रिपोर्ट सौंपी थी। हालांकि 30 सितंबर 2020 को ऋतंभरा और मामले के अन्य सभी 31 आरोपियों को लखनऊ की एक विशेष सीबीआई अदालत ने बरी कर दिया था।
कैसे बनी निशा से साध्वी ऋतंभरा: मां ने मारा था थप्पड़ तो छोड़ दिया घर -द्वार। ऋतंभरा अपने भाषणों में हिंदुओं को जाति का भेदभाव भूलकर एक होने का आह्वान करती रही हैं। ऐसा वह सिर्फ किसी धार्मिक या राजनीतिक एजेंडे की वजह से नहीं कहती हैं। बल्कि यह उनके जीवन की भी सच्चाई रही है। ऋतंभरा का जन्म पंजाब के मंडी दौराहा गांव (लुधियाना) के एक गरीब परिवार में हुआ था। बीबीसी की एक स्पेशल रिपोर्ट में बताया गया है कि ऋतंभरा के परिवार का ताल्लुक निचली समझी जाने वाली एक जाति से है। ऋतंभरा के संबंध में बताया गया है कि पहले उनका नाम निशा था। किशोरी निशा को उनकी मां ने दो किरायेदार लड़कों के साथ अधिक मित्रवत होने के कारण थप्पड़ जड़ दिया था। मां की मार से गुस्साई निशा ने अपना बैग पैक किया और मध्यम वर्गीय हलवाई परिवार को छोड़ दिया।घर छोड़ने के बाद ऋतंभरा हरिद्वार चली गई थीं। मनोविश्लेषक सुधीर कक्कड़ ने अपनी किताब ‘द कलर्स ऑफ़ वायलेंस’ में ऋतंभरा के घर छोड़ने के बारे में लिखा है। कक्कड़ के मुताबिक, ऋतंभरा 16 साल की उम्र में ही हिंदू पुनरुत्थान के लिए काम कर रहे कई स्वामी परमानंद के प्रभाव में आ गई थीं। उन्हें परमानंद के प्रवनच सुनकर एक आत्मिक अनुभव हुआ था। घर छोड़ने के बाद ऋतंभरा हरिद्वार स्थित स्वामी परमानंद के आश्रम में ही रहीं और उनकी शिष्या बन गईं। लेखक क्रिस्टोफ़ जाफ़रलॉट ने अपनी किताब में लिखा है कि ‘उस समय विश्व हिंदू परिषद के केंद्रीय मार्गदर्शक मंडल की सदस्य ऋतंभरा को सबसे आक्रामक माना जाता था और उनके भाषणों के टेप उन लोगों में से थे, जिन पर सबसे अधिक ध्यान गया था।’।जनवरी 1991 में 25 वर्षीय ऋतंभरा पर दिल्ली पुलिस ने भड़काऊ भाषण देने का चार्ज लगाया है। रिपोर्ट में लिखा है, ‘अयोध्या मुद्दे पर उनकी भड़काऊ बयानबाजी वाले ऑडियो कैसेट को दिल्ली पुलिस पहले ही प्रतिबंधित कर चुकी है। अब उनके खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 153 ए के तहत एक आपराधिक मामला दर्ज किया गया था। रिपोर्ट अशोक झा