90 दिनों बाद राबड़ी आवास पर लालू -नीतीश की चूड़ा-दही भोज में हुई मुलाकात
पटना: पूरे 90 दिन बाद राबड़ी आवास पर लालू से नीतीश की मुलाकात हुई। और कयास लगाए जा रहे हैं कि दही चूड़ा भोज से दोनों दलों राजद-जदयू के रिश्तों में और मिठास आ जाएगी। ये भोज इसलिए भी अहम है। क्योंकि बीते करीब 3 महीने बाद नीतीश कुमार राबड़ी आवास पहुंचे हैं। इससे पहले आखिरी मुलाकात राबड़ी आवास पर बीते साल 16 अक्टूबर को हुई थी। जब नीतीश कुमार लालू यादव से मिलने राबड़ी आवास पहुंचे थे। लालू-नीतीश की मुलाकातों का दौर नवंबर में भी चला था। जब छोटे बेटे और डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव के साथ लालू यादव 3 नवंबर को सीएम हाउस नीतीश कुमार से मिलने पहुंचे थे। वहीं सीपीआई की रैली में जब नीतीश ने सीट बंटवारा में देरी के लिए कांग्रेस को खरी-खोटी सुनाई थी तो अगले दिन फिर लालू और तेजस्वी उनसे मिलने पहुंचे थे। राबड़ी आवास पर आयोजित चूड़ा-दही भोज की तैयारियां पूरी थी ।10 क्विंटल से ज्यादा दही और पांच क्विंटल चूड़े की व्यवस्था की गई थी। इसके अलावा चूड़ा-दही भोज में शामिल लोगों को तिलकुट और आलू-गोभी-मटर की सब्जी भी परोसी गई। चूड़ा-दही भोज के लिए राजनीतिक दिग्गजों के साथ-साथ आम कार्यकर्ताओं को भी न्योता दिया गया था। बड़ी तादाद में राजद कार्यकर्ताओं के राबड़ी आवास पर पहुंच गए थे। बिहार की सियासत में चूड़ा-दही भोज का विशेष महत्व रहा है। खराब सेहत के चलते इस बार 4 सालों बाद लालू यादव मकर संक्रांति पर भोज का आयोजन कर रहे हैं। जिसमें सभी दलों को नेता शामिल होते हैं। इस दौरान खुद लालू भोज परोसते हैं। बिहार में मकर संक्रांति पर भोज की पुरानी परंपरा चली आई है। जिसे हर सियासी दल के नेता निभाते आए हैं। लेकिन आज लालू यादव का चूड़ा-दही भोज काफी अहम होने वाला है। क्योंकि बिहार में सीटों के बंटवारे को लेकर मची रस्साकशी के बीच नीतीश कुमार और लालू की मुलाकात होगी। जिसके कई सियासी मायने निकाले जा रहे हैं। इस दिन, भक्त गंगा नदी में डुबकी लगाते हैं और पूजा करते हैं, जबकि अन्य लोग दही चूड़ा खाते हैं और दान कार्य करते हैं। आइए जानते हैं मकर संक्रांति के दिन क्यों खाया जाता है दही चूड़ा। मकर संक्रांति पर खाते हैं दही-चूड़ा: बिहार के मिथिला क्षेत्र में मकर संक्रांति को तिल संक्रांति भी कहा जाता है और इस दिन देवताओं को तिल अर्पित की जाती है। एक खिचड़ी परंपरा भी है, लेकिन बिहार में मकर संक्रांति के दिन खिचड़ी के साथ दही-चूड़ा खाने की परंपरा है और यह परंपरा सदियों से चली आ रही है। धार्मिक और सामाजिक मान्यताओं के अनुसार मकर संक्रांति के दिन धान की कटाई की जाती है और उसके बाद ही चावल खाया जाता है। इसलिए मकर संक्रांति के दिन चावल का दान करना बहुत शुभ होता है और चावल खाना स्वास्थ्य के लिए भी अच्छा होता है। बिहार में इस दिन दही चूड़ा खाया जाता है और मान्यता है कि मकर संक्रांति के दिन दही चूड़ा खाने से सुख और सौभाग्य में वृद्धि होती है। साथ ही आपकी कुंडली के ग्रह दोषों से भी छुटकारा मिल जाएगा। बिहार में ऐसा माना जाता है कि अगर इस दिन पूरा परिवार एक साथ दही-चूड़ा खाता है, तो उनका एक-दूसरे के प्रति प्यार बढ़ता है और उनका रिश्ता मजबूत होता है। चूड़ा दही खाने का महत्व:दही चूड़ा खाने का रिवाज प्राचीन काल से ही चला आ रहा है। कृषि समाजों में दही का उपयोग फसल के बाद भोजन को संरक्षित करने के लिए किया जाता था। साथ ही काटे गए चावल को लंबे समय तक संग्रहीत करना आसान था। इस प्रकार ये दोनों चीजें मिलकर एक संतुलित और पौष्टिक आहार विकल्प बनाती हैं। रिपोर्ट अशोक झा