498 करोड़ रुपये की लागत से तैयार होगा कामाख्या मंदिर गलियारा
काशी और महाकाल के बाद तीसरा सबसे बड़ा कॉरिडोर
गुवाहाटी: पीएम मोदी ने कामख्या कोरिडोर की आधारशिला रखी और कहा की
असम में आस्था, अध्यात्म और इतिहास से जुड़े सभी स्थानों को आधुनिक सुविधाओं से जोड़ा जा रहा है , जिससे विकास अभियान को बल मिला है, हमने पिछले दस सालों में कॉलेज, विवि बनवाए हैं। हमारे मंदिर केवल आस्था के केंद्र नहीं हैं बल्कि हमारी संस्कृति और सभ्यता की पहचान हैं, जिन्हें संजोकर रखना हमारी जिम्मेदारी है।’ मां कामाख्या मंदिर गलियारे को तैयार करने में करीब 498 करोड़ रुपये की लागत आएगी। गलियारे की रूपरेख बहुत पहले ही तैयार कर ली गई है। जिसकी पहली झलक असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने ट्वीट कर दिखाई थी।
काशी और महाकाल के बाद तीसरा सबसे बड़ा कॉरिडोर
मां कामाख्या मंदिर कॉरिडोर देश का तीसरा सबसे बड़ा कॉरिडोर के रूप में विकसित होने वाला है। काशी विश्वनाथ, उज्जैन महाकाल के बाद मां कामाख्या गलियारे का स्थान होगा। 13 दिसंबर 2021 को पीएम मोदी ने काशी विश्वनाथ कॉरिडोर का उद्घाटन किया था। काशी कॉरिडोर के निर्माण में करीब 340 करोड़ रुपये खर्च हुए थे. जबकि उज्जैन महाकाल कॉरिडोर का निर्माण 800 करोड़ रुपये के खर्च से किया गया।
कॉरिडोर में ये सारी सुविधाएं होंगीं उपलब्ध : बताया गया है कि मां कामाख्या मंदिर कॉरिडोर में मंदिर के विकास के साथ-साथ तीर्थयात्री सुविधा केंद्र, अतिथि गृह, सार्वजनिक सुविधाएं, चिकित्सा केंद्र, बैंक और फूड स्टॉल जैसी कई सुविधाएं उपलब्ध होंगी। कॉरिडोर के निर्माण से स्थानीय लोगों को आजीविका मिलेगी और तीर्थयात्रियों को माता के दर्शन में सुविधा होगी।
जानें खासियत और मंदिर का इतिहास
ओपन स्पेस 3000 वर्ग फुट से बढ़कर लगभग 100,000 वर्ग फुट हो जाएगा।कॉरिडोर के निर्माण के बाद मंदिर के चारों ओर ओपन स्पेस वर्तमान में 3000 वर्ग फुट से बढ़कर लगभग 100,000 वर्ग फुट हो जाएगा। बताया कि एक्सेस कॉरिडोर की औसत चौड़ाई इसकी वर्तमान चौड़ाई 8-10 फीट से बढ़कर लगभग 27-30 फीट हो जाएगी। इन मंदिरों को मिलाकर बनाया जाएगा कॉरिडोर: मां कामाख्या मंदिर कॉरिडोर में मुख्य मंदिर के अलावा नीलांचल पर्वत पर स्थित कई और मंदिरों का भी विकास होगा। जिसमें मातंगी, कमला, त्रिपुर सुंदरी, काली, तारा, भुवनेश्वरी, बगलामुखी, छिन्नमस्ता, भैरवी, धूमावती देवियों और दशमहाविद्या के मंदिर भी हैं। इनके अलावा पहाड़ी के चारों ओर भगवान शिव के पांच मंदिर कामेश्वर, सिद्धेश्वर, केदारेश्वर, अमरतोकेश्वर, अघोरा और कौटिलिंग मंदिर हैं। इन सभी मंदिरों को मिलाकर एक कॉरिडोर बनाया जाएगा।
51 शक्तिपीठों में सबसे पवित्र मानी जाती हैं मां कामाख्या: देश के कई हिस्सों में कुल 51 शक्तिपीठ हैं, जिसमें सबसे पवित्र मां कामाख्या को माना जाता है. नीलांचल पर्वत पर विराजी मां कामाख्या को कामेश्वरी या इच्छा की देवी कहा जाता है। इसे तांत्रिक शक्तिवाद पथ का केंद्र भी माना जाता है. कामाख्या मंदिर असम के गुवाहाटी से करीब 8 किलोमीटर दूर स्थित है। इस मंदिर की पहचान रजस्वला माता की वजह से है। जहां माता की पूजा योनी रूप में होती है.l। ऐसी मान्यता है कि मंदिर के करीब से बहने वाली ब्रह्मपुत्र नदी हर वर्ष आषाढ़ महीने में लाल हो जाती है। ऐसी मान्यता है कि माता के रजस्वला होने की वजह से नदी का पानी लाल हो जाता है। प्रसिद्ध है अंबुवाची मेला: मां कामाख्या मंदिर में लगने वाला अंबुवाची मेला विश्व प्रसिद्ध है। यहां हर साल जून में तीन दिन के लिए यह मेला लगता है। इस दौरान मंदिर के दरवाजे तीन दिन के लिए बंद कर दिए जाते हैं। ऐसी मान्यता है कि इस दौरान जल कुंड से पानी की जगह रक्त प्रवाहित होता है, क्योंकि माता रजस्वला होती हैं। साल 2017 में गुवाहाटी हाईकोर्ट ने इस मंदिर में भक्तों से प्राप्त दान को डिप्टी कमिश्नर को देने और दान की राशि के लिए अलग खाता खोलने का निर्देश दिया था। इस फैसले से मंदिर के विकास कार्यों की देखरेख मंदिर के मुख्य पुजारी, जिसे डोलोई कहा जाता है, के हाथों से प्रशासन के हाथ में आ गई थी। इसके बाद पुजारी समाज ने गुवाहटी हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। इस मामले पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अभय एस ओक और जस्टिस पंकज मित्तल की बेंच ने 10 नवंबर 2023 के आदेश में कहा कि कामाख्या मंदिर के प्रबंधन की मौजूदा व्यवस्था पर गुवाहाटी HC का आदेश लागू नहीं होगा। इस मामले में असम सरकार ने भी सुप्रीम कोर्ट में अपनी रखी थी।
अपने हलफनामे में असम सरकार ने कहा, “डोलोई (पुजारी समाज) स्थानीय प्रशासन के साथ गहरे तालमेल के साथ मंदिर प्रशासन के मामलों को संतोषजनक ढंग देख रहा है और ये व्यवस्था जारी रह सकती है।” असम सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि राज्य सरकार प्रधानमंत्री डिवाइन योजना के तहत माँ कामाख्या मंदिर के विकास के लिए बड़े पैमाने पर काम कर रही है। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट का फैसला रद्द कर दिया।गौरतलब है कि गुवाहाटी हाईकोर्ट ने साल 2015 में डिप्टी कमिश्नर को मंदिर में जनता और भक्तों से मिले दान को लेने का निर्देश दिया था। इसके साथ ही इस तरह के दान के लिए अलग बैंक खाता खोलकर इस पैसे को मंदिर के विकास के कामों में खर्च करने के लिए कहा था। बाद में हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ एक समीक्षा याचिका दाखिल की गई। इसके बाद मंदिर के पुजारियों ने एक समीक्षा याचिका दाखिल की और कहा कि मंदिर के प्रशासन और धार्मिक गतिविधियों पर उसका अधिकार है। इसके बाद साल 2017 में गुवाहटी हाईकोर्ट ने उस समीक्षा याचिका का निस्तारण कर दिया। उस निस्तारण याचिका के फैसले में गुवाहाटी हाईकोर्ट ने कहा था श्रद्धालुओं से प्राप्त दान केवल मंदिर की विकास के लिए होगा। आदेश के मुताबिक यह पैसा पूजा अर्चना पर खर्च नहीं किया जा सकता था।पुजारी समाज हाईकोर्ट के फैसले से संतुष्ट नहीं हुआ और उसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। इसको लेकर सुप्रीम कोर्ट ने असम सरकार से भी राय माँगी। सुप्रीम कोर्ट में 3 सितंबर 2023 को दायर अपने हलफनामे में असम सरकार ने बताया कि माँ कामाख्या कॉरिडोर से संबंधित मामलों पर चर्चा के लिए असम के मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में 13 अगस्त 2023 को एक बैठक हुई थी। इसके बाद असम सरकार ने 8 नवंबर 2023 को एक और हलफनामा दायर किया था। दरअसल, माँ कामख्या देवी के मुख्य मंदिर के पुजारियों के परिवार को बोर्डेउरिस और सहायक मंदिरों के पुजारियों के परिवारों को देउरिस कहा जाता है। ये नौ सहायक मंदिर उसी नीलांचल पहाड़ी पर स्थित हैं, जहाँ माँ कामाख्या का मंदिर है। कामाख्या मंदिर के मुख्य पुजारी को डोलोई कहा जाता है। डोलोई का चुनाव बोर्डेउरी और देउरिस द्वारा किया जाता है। साल 2021 में हुए चुनाव के बाद से कबींद्र प्रसाद सरमा कामाख्या देवी मंदिर के मुख्य पुजारी (डोलोई) हैं।
मंदिर पर कब्जे को लेकर सत्ता संघर्ष
कामाख्या मंदिर के प्रबंधन के अधिकार को लेकर 1990 के दशक में एक लंबा सत्ता संघर्ष देखा गया था। ये संघर्ष पुजारियों के परिवार के व्यक्तियों के साथ-साथ उन वर्गों के प्रतिनिधियों के बीच था, जिनका मंदिर चलाने में कोई भूमिका नहीं थी। विरोधियों ने कामाख्या डेब्यूटर बोर्ड का गठन किया था। इस बोर्ड ने पुजारी समाज के अधिकारों और विशेषाधिकारों को अपने अधिकार में ले लिया। वहीं, पुजारी समाज ने आरोप लगाया कि डेबटर बोर्ड ने 1998 में सत्ता में आने के लिए हेरफेर किया था। बोर्ड ने कहा था कि उन्होंने ऐसा इसलिए किया क्योंकि पुजारी समाज मंदिर को ‘अलोकतांत्रिक’ तरीके से चला रहा था।
साल 2012 में एक अंतरिम आदेश द्वारा सुप्रीम कोर्ट ने कामाख्या देवी मंदिर में जिम्मेदारियों को विभाजित कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने डेबुटर बोर्ड को मंदिर का प्रशासन चलाने के लिए कहा, जबकि डोलोई (पुजारियों) की भूमिका को धार्मिक गतिविधियों तक सीमित कर दिया। हालाँकि, जुलाई 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने मुख्य पुजारी समाज के पारंपरिक अधिकारों को बहाल कर दिया। साथ ही यह भी कह दिया कि डोलोई एवं अन्य पदों के लिए चुनाव होना चाहिए।अक्टूबर 2022 में शीर्ष अदालत ने टिप्पणी की कि मंदिर का रखरखाव ठीक से नहीं किया जा रहा है। पूजा स्थल में स्वच्छता मानकों पर कोई समझौता नहीं किया जाना चाहिए। उस समय, राज्य सरकार के साथ-साथ डोलोई समाज ने अदालत को आश्वासन दिया था कि मंदिर परिसर के आसपास स्वच्छता के साथ-साथ बुनियादी ढांचे के विकास को प्राथमिकता पर लिया जा रहा है। @
रिपोर्ट अशोक झा