गोरखा के सपने को पूरा करने के लिए विधायक ने खून से पीएम को लिखा पत्र

पहली सूची में राजू बिष्ट का नाम नहीं आने पर शुरू हो गई राजनीतिक

कोलकाता: भाजपा जहां लोकसभा चुनाव 2024 की तैयारियों में जुटी है, वहीं भाजपा के एक मौजूदा विधायक ने प्रधानमंत्री मोदी से नाराजगी जताई है। दार्जिलिंग से पहले लिस्ट में राजू बिष्ट का नाम नहीं आने से राजनीतिक माहौल गरमा गया है। पहाड़ में भाजपा सहित उनका सहयोगी दल ना सिर्फ गुस्से में है बल्कि प्रेशर पॉलिटिक्स का दौर भी शुरू हो गया है। आज तो यह भी चर्चा है कि सांसद राजू बिष्ट पर टीएमसी सुप्रीमो ने डोरा डालना शुरू कर दिया है।सिलीगुड़ी जर्नलिस्ट कल्ब में पत्रकारों से बात करते हुए दार्जिलिंग के विधायक ने प्रधानमंत्री को अपने खून से एक लेटर लिखा है। इस लेटर में उन्होंने PM मोदी को 14 साल पुराना वादा याद दिलाया और अपील की कि प्रधानमंत्री 14 साल पहले 10 अप्रैल 2014 को किया वादा निभाएं। मामला गोरखों के मुद्दों से जुड़ा है और खून से लेटर लिखने वाले विधायक पश्चिम बंगाल के सिलीगुड़ी के दार्जिलिंग से भाजपा विधायक नीरज जिम्बा हैं।
इस बयान को याद दिलाते हुए विधायक ने पीएम मोदी से गोरखा मुद्दों में उनके हस्तक्षेप की मांग की। जिम्बा ने लिखा कि आपने 10 अप्रैल 2014 को सिलीगुड़ी के पास खपरैल में एक रैली को संबोधित करते हुए कहा था कि गोरखा का सपना मेरा सपना है, ये आपका सपना अधूरा रह गया है।मैं गंभीर महत्व के मामले पर आपका ध्यान आकर्षित करने के लिए अपने खून का इस्तेमाल करते हुए यह पत्र लिख रहा हूं।
भाजपा विधायक ने खून से चिट्ठी में ये भी लिखा
भाजपा विधायक ने पीएम मोदी को खून से लिखी चिट्ठी में ये भी कहा कि राजनीतिक स्थायी समाधान ढूंढकर अनुसूचित जनजाति का दर्जा देकर गोरखाओं के मुद्दों को हल करने की प्रतिबद्धता को अभी तक मूर्त रूप नहीं दिया गया है। उन्होंने ये भी लिखा है कि हालांकि लद्दाखियों, कश्मीरियों, मिज़ोस, नागाओं और बोडोज़ को न्याय दिया गया है, गोरखा उपेक्षा का शिकार बने हुए हैं। उन्होंने कहा कि ये परेशान करने वाली वास्तविकता केंद्र सरकार के भीतर राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी का एक स्पष्ट प्रतिबिंब है।आपके लिए समय आ गया है कि अब भारतीय गोरखाओं को न्याय दिलाया जाए। 1980 के बाद से, अलग गोरखालैंड राज्य का मुद्दा हिल्स की राजनीति पर हावी रहा है, जिसमें अक्सर हिंसक आंदोलन देखे गए हैं। 2017 में ‘100 दिन की आर्थिक नाकेबंदी’ के दौरान 11 लोगों की जान चली गई थी। 2019 में, भाजपा ने 11 पहाड़ी समुदायों को आदिवासी दर्जा और स्थायी राजनीतिक समाधान (पीपीएस) का वादा किया। लेकिन उसके बाद से यह मामला ठंडे बस्ते में चला गया।गोरखालैंड की मांग को लेकर होते रहे हैं आंदोलन
विधायक जिम्बा ने लिखा कि प्रधानमंत्री मोदी राजनीतिक और स्थायी समाधान ढूंढकर गोरखाओं के 11 समुदायों को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देकर गोरखाओं के मुद्दों को हल करने की प्रतिबद्धता दिखाएं। लद्दाखियों, कश्मीरियों, मिज़ोस, नागाओं और बोडोज़ को न्याय दिया गया है, लेकिन गोरखा आज तक उपेक्षा का शिकार बने हुए हैं।1980 के दशक से अलग गोरखालैंड राज्य का मुद्दा राजनीति पर हावी रहा है। इस मांग को लेकर हिंसक आंदोलन भी हुए हैं। 2017 में 100 दिन की आर्थिक नाकेबंदी के दौरान 11 लोगों की जान चली गई थी। 2019 में भाजपा ने 11 पहाड़ी समुदायों को आदिवासी दर्जा देने का वादा किया, लेकिन यह मामला भी ठंडे बस्ते में चला गया। रिपोर्ट अशोक झा

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