मुस्लिम विरोधी नहीं है नागरिकता संशोधन कानून (CAA), भ्रम दूर करने में उतरे मुस्लिम धर्मगुरु
कोलकाता: भारतीय नागरिकता (संशोधन) कानून पर 5 साल पहले ही मुहर लग गई थी। हालांकि, यह अब तक लागू नहीं हो पाया है। सीएए को लेकर पूरे देश में बड़े स्तर पर विरोध प्रदर्शन हुए थे। खासकर पूर्वोत्तर के सात राज्य इसके खिलाफ हैं. विरोध को लेकर नॉर्थ ईस्ट सबसे ज्यादा प्रभावित रहा है। वहां तोड़फोड़ की वजह से करोड़ों की संपत्ति का नुकसान हुआ था। अब नागरिकता संशोधन कानून (CAA) लागू करने को लेकर फैलाए जा रहे भ्रम को दूर करने के लिए बरेलवी मौलाना शहाबुद्दीन रजवी आगे आए हैं। उन्होंने इसका विरोध न करने की नसीहत मुसलमानों को दी है। मौलाना ने कहा कि सीएएए कानून का भारतीय मुसलमानों से कोई लेना देना नहीं है, इस कानून से डरने की जरूरत नहीं है। लोग राजनीतिक फायदा उठाने के लिए मुस्लिमों को भड़का रहे हैं। मौलाना ने कहा कि सीएए का अध्ययन करने पर पता चला कि कानून से भारत के मुसलमानों का कोई लेना देना नहीं है, बल्कि यह कानून उन लोगों से संबंध रखता है जो अफगानिस्तान, पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका और बर्मा से आये हुए है, जो अभी भारत में रह रहे हैं, लेकिन उनको अब तक नागरिकता नहीं मिली है। ऐसे लोगों को नागरिकता दी जाएगी। पीराष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) से जुड़े मुस्लिम संगठन की असम इकाई ने असम मुस्लिम विवाह और तलाक पंजीकरण अधिनियम 1935 को निरस्त करने के हिमंत बिस्वा सरमा सरकार के फैसले का समर्थन किया है। मुस्लिम राष्ट्रीय मंच ने कहा कि अधिनियम को हटाने से राज्य में बाल विवाह की समस्या को खत्म करने में मदद मिलेगी। संगठन की असम इकाई के संयोजक अलकास हुसैन ने रविवार को मीडिया से बातचीत में कहा कि कानून को रद्द करके असम सरकार मुस्लिम लड़कों और लड़कियों को खतरनाक स्थिति से बचा सकती है।हिमंत बिस्वा सरमा के बयान को सराहा: उन्होंने मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा के हालिया बयान की सराहना की जिसमें उन्होंने कहा था कि सरकार असम में 5-6 साल की लड़कियों की शादी की दुकान बंद कर देगी। उन्होंने मुस्लिम विधायकों के एक वर्ग की उनकी राजनीति के लिए आलोचना की।AIUDF ने दी है कोर्ट जाने की धमकी: असम में अल्पसंख्यक-आधारित ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (AIUDF) और ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन इस अधिनियम पर भाजपा सरकार के फैसले की जमकर आलोचना कर रहे हैं। AIUDF ने यह दावा करते हुए अदालत जाने की धमकी दी है कि सरकार का कदम 1880 के काजी अधिनियम के साथ-साथ काजियों के भी खिलाफ है। इसमें यह भी दावा किया गया कि राज्य कैबिनेट के पास काजी अधिनियम को खत्म करने की कोई शक्ति नहीं है जो एक केंद्रीय अधिनियम है। तीन तलाक पर बैन के लिए पीएम मोदी को सराहा: हुसैन ने तीन तलाक पर प्रतिबंध लगाने के लिए नरेंद्र मोदी सरकार को धन्यवाद देते हुए कहा, “हम समान नागरिक संहिता लागू करने की सरकार की योजना का भी समर्थन करते हैं क्योंकि एक देश के लिए एक कानून होना चाहिए।।CAA को लेकर इंतजार करने को कहा: मंच ने असम के लोगों से जनवरी में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के उस बयान के बाद नागरिकता (संशोधन) अधिनियम का विरोध नहीं करने की सलाह दी, जिसमें उन्होंने कहा था कि इसे लोकसभा चुनाव से पहले अधिसूचित और लागू किया जाएगा। उन्होंने कहा, “चूंकि मामला सुप्रीम कोर्ट में है, इसलिए हमें अदालत के फैसले का इंतजार करना चाहिए और उसका सम्मान करना चाहिए। यह अफवाह है कि नागरिकता कानून अल्पसंख्यकों, विशेषकर मुसलमानों के खिलाफ है। देश के मुसलमानों को चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है। किसी भी धर्म का कोई भी विदेशी नागरिक भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन कर सकता है। यह कानून इन प्रावधानों में हस्तक्षेप नहीं करता है। सिटिजनशिप अमेंडमेंट एक्ट के लागू होने पर तीन पड़ोसी मुस्लिम बाहुल्य देशों पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आए उन लोगों को भारत की नागरिकता मिल जाएगी, जो दिसंबर 2014 तक किसी ना किसी प्रताड़ना का शिकार होकर भारत आए. इसमें गैर-मुस्लिम माइनोरिटी- हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई शामिल हैं. नागरिकता संशोधन बिल पहली बार 2016 में लोकसभा में पेश किया गया था. यहां से तो ये पास हो गया था, लेकिन राज्यसभा में अटक गया था। बाद में इसे संसदीय समिति के पास भेजा गया और फिर 2019 का चुनाव आ गया. फिर से मोदी सरकार बनी। दिसंबर 2019 में इसे लोकसभा में दोबारा पेश किया गया। इस बार ये बिल लोकसभा और राज्यसभा, दोनों जगह से पास हो गया।10 जनवरी 2020 को राष्ट्रपति की मंजूरी मिल गई थी। लेकिन उस समय कोरोना के कारण इसमें देरी हुई। रिपोर्ट अशोक झा