रामराज्य के मजबूत आर्थिक सूत्र तलाशने में जुटा एनसीईआरटी

अवध विश्वविद्यालय, अयोध्या में चला तीन दिनों तक मंथन

 

सिद्धार्थ मणि त्रिपाठी

अयोध्या। रामराज्य जैसी सामाजिक, राजनीतिक व्यवस्था की स्थापना के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कृतसंकल्पित्त हैं। प्रधानमंत्री की इसी संकल्पना को आकार देने के लिए भारत सरकार ने अभी से प्रयास शुरू कर दिया है। रामराज्य जैसी व्यवस्था में आर्थिक मजबूती के आधार के उन सूत्रों की तलाश शुरू कर दी गई है जो बाल्मीकि रामायण और अन्य सनातन ग्रंथों में उपलब्ध हैं। इसी विषय को लेकर डॉक्टर राम मनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय अयोध्या में तीन दिनों तक एनसीईआरटी, भारत संस्कृति न्यास और संस्कृत तथा व्याकरण के आचार्यों ने गंभीर मंथन किया है तथा एक आधार संरचना को आकार देने की प्रक्रिया शुरू की गई है।

इस कार्यशाला के कल्पनाकार एनसीईआरटी के पूर्व आचार्य एवं भगवान राम के समय की अर्थव्यवस्था के विशेषज्ञ आचार्य प्रमोद दुबे ने बताया कि यह कार्यशाला अत्यंत सफल रही है तथा इसके निष्कर्षों पर आधारित समग्र आर्थिक चिंतन दृष्टि के साथ एक स्वरूप बहुत जल्द ही प्रकाशित किया जाएगा। कार्यशाला में अवध विश्वविद्यालय में अर्थ शास्त्र विभाग के अध्यक्ष के साथ ही प्रख्यात विद्वान आचार्य बलदेव सागर जी, एनसीईआरटी की प्रो प्रतिमा , इतिहास संकलन योजना की अवध प्रांत की अध्यक्ष प्रो प्रज्ञा मिश्रा, आचार्य वेद प्रकाश जी, आचार्य रामानद जी , भारत संस्कृति न्यास के अध्यक्ष संजय तिवारी सहित अनेक विद्वानों ने अपनी सक्रिय सहभागिता निभाई है।
प्रो दुबे ने बताया कि रामायण को कथा से आगे ले जाकर एक समृद्ध राष्ट्र निर्माण की आर्थिक दृष्टि तलाशने की इस बौद्धिक विवेचन में बहुत कुछ नया मिलने जा रहा है जिससे भारत को विश्वगुरु बनाने में बहुत सफलता मिलेगी। उन्होंने बताया कि इस संदर्भ में देश के संत समाज से भी अच्छे विमर्श किए जा रहे हैं। इसी सिलसिले में अखिल भारतीय संत समिति के राष्ट्रीय महामंत्री स्वामी जीतेंद्रानंद से भी मंदिर आधारित अर्थ व्यवस्था को लेकर गंभीर विमर्श चल रहा है।
प्रो दुबे एवं भारत संस्कृति न्यास के अध्यक्ष संजय तिवारी का कहना है कि प्रत्येक राज्य के संचालन और रख-रखाव में धन का उपयोग प्रचुर मात्रा में होता है. इस अर्थ के उपार्जन में शासन द्वारा लिए जाने वाले कर की आमदनी, अधीनस्थ राजाओं द्वारा दी जा रही राशि आदि का संचय राज्य के कोषागार में जमा होती रहती है. यही धन राज्य के विकास और इससे जुड़े अन्य कार्यक्रमों में खर्च होता है. इसे ही हम प्राचीन काल का बजट कह सकते हैं। रामायण काल की अयोध्या नगरी या कह लें की समूचा कोशल प्रदेश एक आदर्श राज्य था. जाहिर है कि वहां की व्यवस्थाएं लोक और राज्य के कल्याण के लिए ही बनाई गई होंगी. वाल्मीकि रामायण के बालकाण्ड के अंतर्गत पंचम और छठे सर्ग में दशरथ कालीन अयोध्या नगरी के वैभव का वर्णन मिलता है. अयोध्या में पाए जाने वाले अकूत धन का स्तोत्र कौन सा था उसकी एक झलक देखे :

सामन्तराज सघेश्च बालिकर्मभीरावृताम।
नान्देशनिवासाशैश्च वनिगभीरूपशोभिताम।।14।। (वाल्मिकी रामायण बालकाण्ड 5.14)

कर देने वाले सामंत नरेश उसे अमीर रखने के लिए सदा वहां रहते थे. विभिन्न देशों के निवासी वैश्य उस पुरी की शोभा बढ़ाते थे.

दूसरी झलक देखिए:–

तेन सत्याभिसन्धें त्रिवर्ग मनुतिष्ठता।
पालिता ता पुरी श्रेष्ठा इंद्रेनेवामरावती।।5।। (वाल्मिकी रामायण बालकाण्ड 6.5)

धर्म, अर्थ और काम का सम्पादन करके कर्मो का अनुष्ठान करते हुए वे सत्यप्रतिज्ञ नरेश श्रेष्ठ अयोध्या पुरी का उसी तरह पालन करते जैसे इंद्र अमरावती का.

राम जब अश्वमेध यज्ञ कर रहे थे तब उनके राज्य के हाल की एक झलक देखिए:

कोशसंग्रहने युक्ता बलस्य च परिग्रहे।
अहितम चापि पुरुषम न हिन्स्युरविधुशकम।।11।। (वाल्मिकी रामायण उत्तर काण्ड 7.11)

अर्थात उस विभाग के लोग कोष के संचय और चतुरंगिणी सेना के संग्रह में सदा लगे रहते थे. शत्रु ने भी यदि अपराध न किया हो तो वे उसके साथ हिंसा नहीं करते थे. तात्पर्य यह की वहां की अर्थव्यवस्था को ठीक रखने वाले निरपराध भाव से कार्यरत थे।

अन्तरापाणीवीथियाश्च सर्वेच नट नर्तका:। सुदा नार्यश्च बहवो नित्यं यौवनशालीनः।।22।। (वाल्मिकी रामायण उत्तर काण्ड)

रामजी का आदेश था अश्वमेध के आयोजन के समय की मार्ग में आवश्यक वस्तुओं के क्रय विक्रय के लिए जगह जगह बाजार भी लगने चाहिए. इसके प्रवर्तक वणिक और व्यवसायी लोग भी यात्रा करें. साथ ही नट नर्तक, युवा भी यात्रा करें.

रामायण काल में राजा कर लेकर भ्रष्टाचार नही करते थे, जो आज कल कई लोग करते हैं: –
वाल्मिकी रामायण अरण्या कांड 6.11 के अनुससार_

सुमहान् नाथ भवेत् तस्य तु भूपतेः । यो हरेद् बलिषद्भागं न च रक्षति पुत्रवत् ।। 11 ।।

जो राजा प्रजा से उसकी आय का छठा भाग करके रूप में ले ले और पुत्र की भांति प्रजा की रक्षा न करे, उसे महान अधर्म का भागी होना पड़ता था।

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