चीन से तिब्बत की मुक्ति की मांग को लेकर तिब्बतियों का प्रदर्शन

सिलीगुड़ी: चीन से तिब्बत की मुक्ति की मांग को लेकर क्षेत्रीय तिब्बती युवा कांग्रेस ने सिलीगुड़ी में मार्च निकाला। तिब्बतियों के अधिकारों की मांग को लेकर क्षेत्रीय तिब्बती युवा कांग्रेस ने सिलीगुड़ी की सड़कों पर मार्च निकाला।तिब्बती राष्ट्रीय विद्रोह दिवस एक वार्षिक विरोध प्रदर्शन है जो तिब्बत में चीन की उपस्थिति के खिलाफ 1959 के तिब्बती विद्रोह की याद दिलाता है। तिब्बती इतिहास में यह दिन बेहद खास और महत्वपूर्ण माना जाता है। दरअसल, घटना की शुरुआत 10 मार्च 1959 को हुई, जब हजारों तिब्बती चीन के कब्जे के विरोध में सड़कों पर उतर आए।
दलाई लामा को बचाने की कोशिश: तिब्बत की राजधानी ल्हासा की सड़कों पर हजारों तिब्बती अपनी जमीन बचाने के लिए संघर्ष कर रहे थे। उन्होंने दलाई लामा की जान बचाने के लिए पोटाला पैलेस को घेर लिया और उन्हें बाहर निकाल लिया। तब से हर साल 10 मार्च को हजारों तिब्बती चीन के खिलाफ विरोध प्रदर्शन करने के लिए दुनिया भर में सड़कों पर उतरते हैं।इस तारीख को क्यों चुना गया?: इस तिथि को 1959 के विद्रोह के दौरान तिब्बती लोगों द्वारा किए गए प्रयासों और बलिदानों का सम्मान करने के लिए चुना गया है। इस तिथि पर दुनिया भर के व्यक्ति और समुदाय तिब्बती लोगों और स्वतंत्रता, न्याय और स्वतंत्रता के लिए उनकी चल रही खोज के साथ एकजुटता व्यक्त करते हैं।तिब्बती राष्ट्रीय विद्रोह दिवस और दलाई लामा तेनजिन ग्यात्सो का संबंध 1959 की ऐतिहासिक घटनाओं से गहराई से जुड़ा हुआ है। यह दिन दलाई लामा के संबंध में विशेष महत्व रखता है क्योंकि इसी दिन दलाई लामा को ल्हासा से भागकर निर्वासन में जाना पड़ा था। भारत उसकी जान बचाए। तिब्बती लोग दलाई लामा और अपने राष्ट्र की रक्षा के लिए उठ खड़े हुए और उन्होंने अपने आध्यात्मिक नेता के लिए अपार साहस, लचीलापन और अटूट समर्थन का प्रदर्शन किया। प्रत्येक वर्ष 10 मार्च को एक बार फिर 65 वें तिब्बती विद्रोह दिवस के मौके पर मार्च का आयोजन किया गया। जुलूस सिलीगुड़ी के सालूगाड़ा से शुरू होकर यह सेवक रोड से होते हुए दार्जिलिंग जंक्शन पर समाप्त हुआ। इस जुलूस में पहाड़ों और मैदानों ही जगहों से बड़ी संख्या में तिब्बती लोग शामिल हुए। गौरतलब है कि चीन पिछले कुछ सालों से तिब्बत पर कब्जा कर रहा है., तिब्बती कई वर्षों से तिब्बत की मुक्ति की मांग कर रहे हैं।
रिपोर्ट के अनुसार तिब्बत में चीनी सरकार की दमनकारी नीतियों का दस्तावेजीकरण जारी है। यह तिब्बती सेंटर फॉर ह्यूमन राइट्स एंड डेमोक्रेसी की पहली रिपोर्ट है जिसमें अमेरिका, भारत, फ्रांस, ऑस्ट्रेलिया और कनाडा सहित देशों में निर्वासितों को व्यापक रूप से निशाना बनाने की जांच की मांग की गई है।शोधकर्ताओं ने 10 देशों के 84 निर्वासित तिब्बतियों की गवाही एकत्र की और पाया कि उनमें से 49 को तिब्बत में रह रहे उनके रिश्तेदारों को नुकसान पहुंचाने की धमकियां मिली थीं। अनुमानतः कुल 125,000 तिब्बती निर्वासन में रह रहे हैं। TCHRD के कार्यकारी निदेशक, तेनज़िन दावा ने कहा कि यह घटना अन्य जगहों की तुलना में यूरोप में “चौंकाने वाली” अधिक गंभीर थी। उन्होंने कहा कि अमेरिकी अधिकारी चीनी अंतरराष्ट्रीय दमन का जवाब देने में अधिक सक्रिय थे। बता दें कि 1951 में चीन ने तिब्बत पर कब्ज़ा कर लिया था, जिसे बीजिंग शांतिपूर्ण मुक्ति कहता है और तिब्बती इसे आक्रमण कहते हैं। 2008 में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन के बाद इस क्षेत्र में सरकारी कार्रवाई तेज हो गई। बर्मिंघम विश्वविद्यालय में अंतरराष्ट्रीय संबंधों के सहायक प्रोफेसर त्सेरिंग टोपग्याल ने कहा कि निर्वासन में रह रहे तिब्बती निशाने पर थे क्योंकि यह समुदाय विदेशों में सबसे अधिक संगठित समूहों में से एक था जो चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के शासन से प्रभावित थे और खुले तौर पर इसके आलोचक थे।शोधकर्ताओं का कहना है कि चीन अपनी सीमाओं के बाहर तिब्बतियों, हांगकांगवासियों और उइगरों की बहस या आलोचना को दबाने की रणनीति अपना रहा है, जिसे अंतरराष्ट्रीय दमन कहा जाता है। स्विट्जरलैंड में रहने वाले तिब्बती धोंडेन ने TCHRD के शोधकर्ताओं को बताया “2021 में, मुझे तिब्बत में मेरे एक भाई-बहन से एक वीडियो कॉल आया। जब मैंने उठाया, तो मैंने पाया कि वे स्थानीय पुलिस स्टेशन से फोन कर रहे थे, हमारे परिवार के आधे लोग घिरे हुए थे।”पुलिस अधिकारियों ने मुझसे विदेश में अच्छा व्यवहार करने और उन गतिविधियों में शामिल होने से बचने का आग्रह किया जो चीनी नीतियों के खिलाफ जा सकती हैं। पुलिस अधिकारियों ने कहा कि अगर मैं आज्ञा मानने में विफल रहा तो इसका परिणाम मेरे रिश्तेदारों को भुगतना पड़ेगा।प्रतिनिधि ने कहा,”तिब्बत में तीन साल से ज्यादा उम्र वाले बच्चों को चीन द्वारा औपनिवेशिक तरीके से चलाए जा रहे बोर्डिंग स्कूलों में जबरन भेजा जा रहा है ताकि उन्हें उनकी मूल संस्कृति, भाषा और परंपराओं से दूर किया जा सके और उन पर चीनी संस्कृति थोपी जा सके। कहा,”अगर कोई व्यक्ति दलाई लामा को उनके जन्मदिन पर बधाई भी दे देता है, तो चीन घबरा जाता है। चीन खुद को हमेशा असुरक्षित महसूस करने वाले बच्चे की तरह बर्ताव करता है।’ दावा किया कि कि ‘विस्तारवादी’ नीतियों वाले चीन का असली चेहरा दुनिया के अलग-अलग मंचों पर लगातार बेनकाब हो रहा है, जबकि तिब्बत की मुक्ति के लिए अहिंसक तरीके से चलाए जा रहे आंदोलन के लिए सहयोग बढ़ रहा है।
उन्होंने भारतीय नागरिकों के एक तबके की इस अपील का समर्थन किया कि चीन में बने सस्ते उत्पादों का बहिष्कार किया जाना चाहिए।आरोप लगाया कि चीन अलग-अलग वस्तुओं के निर्यात के जरिये कमाए धन से भारत और अन्य देशों की सीमाओं पर तनाव पैदा करता है। रिपोर्ट अशोक झा

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