काशी हिन्दू विश्वविद्यालय को शांत बनाने की मुहिम में जुटा प्रशासन; ध्वनि प्रदूषण कानून का होगा सख्ती से पालन

वाराणसी।
डी.जे. और लाउडस्पीकर के कारण कानून व्यवस्था को आये दिन चुनौती मिल रही है और यहाँ तक कि महामना पंडित मदन मोहन मालवीय की बगिया काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में भी इसको लेकर कोई जागरूकता नहीं है और आये दिन परेशान होते हैं आम विद्यार्थी। और इस आग में घी डालने का काम करते हैं कुछ बड़े नेता जिनको लगता है कि 1876 में लाउडस्पीकर का आविष्कार होने से पहले धार्मिक कार्यक्रम नहीं होते थे। इस जानलेवा ध्वनि प्रदूषण की भयावहता और कानूनी रोकथाम को लेकर आज बुधवार 20 मार्च 2024 की शाम को काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के प्रॉक्टोरियल बोर्ड द्वारा “ध्वनि प्रदूषण जागरूकता कार्यक्रम” का आयोजन किया गया जिसमें विश्वविद्यालय के ही पूर्व छात्र और “सत्या फाउण्डेशन” के संस्थापक सचिव श्री चेतन उपाध्याय को विशेष रूप से आमंत्रित किया गया था।
बी.एच.यू. के मुख्य आरक्षा अधिकारी कार्यालय परिसर के कांफ्रेंस हाल में आयोजित कार्यक्रम के दौरान प्रतिभागियों ने शोर के खिलाफ अभियान चलाने वाले, सामाजिक कार्यकर्ता चेतन उपाध्याय से पूछा कि क्या विश्वविद्यालय परिसर के अंदर, किसी संकाय / फैकल्टी या कार्यालय के पास धार्मिक आधार पर लाउडस्पीकर का उपयोग किया जा सकता है? इसके जवाब में चेतन उपाध्याय ने बताया कि विश्वविद्यालय अध्ययन का केंद्र है और इस तरह की अशांति पैदा करना एक अपराध है। भारत सरकार के पर्यावरण संरक्षण अधिनियम- 1986 के मुताबिक़ साइलेंस जोन यानी कि पूजा-इबादत स्थल, कचहरी, अस्पताल-नर्सिंग होम और स्कूल-कालेज- विश्वविद्यालय के परिसर के 100 मीटर के दायरे में लाउडस्पीकर, डी.जे., आतिशबाजी और यहॉं तक कि कार-स्कूटर का हार्न बजाना भी अपराध है और दोषी के खिलाफ पुलिस विभाग के ए.सी.पी. की संस्तुति पर पर्यावरण संरक्षण अधिनियम-1986 के तहत मुकदमा पंजीकृत हो सकता है और दोषी को 1,00,000 रुपये तक जुर्माना या 5 वर्ष तक की जेल या एक साथ दोनों सजा हो सकती है। हाँ, विशेष दिवस जैसे गणतंत्र दिवस, स्वतंत्रता दिवस आदि पर सीमित अवधि के लिए, बहुत धीमी आवाज में लाउडस्पीकर का उपयोग किया जा सकता है।
पहले जागरूकता और फिर कानूनी डंडा:- यह आम सहमति बनी कि विश्वविद्यालय विद्या का केंद्र है और किसी भी स्थिति में अराजकता को बर्दाश्त नहीं किया जा सकता मगर इसके लिए सभी को साथ लेकर चला जाएगा। विश्वविद्यालय के अंदर प्रमुख स्थानों पर “नो हार्न ज़ोन” के बोर्ड लगाये जाने की बात को सभी ने सर्वसम्मति से स्वीकार किया। अस्पताल और बी.एच.यू. ट्रामा सेंटर के पास साइलेंस जोन के बोर्ड लगाए जायेंगे। साथ ही इस बात पर भी सहमति बनी कि विश्वविद्यालय की बाहरी दीवार से सटे सभी द्वारों पर भी ध्वनि प्रदूषण कानून की जानकारी हेतु डिस्प्ले बोर्ड लगाए जाएंगे कि विश्वविद्यालय ‘साइलेंस जोन’ में आता है और इसके 100 मीटर के दायरे में किसी भी किस्म का ध्वनि प्रदूषण करना अपराध है और दोषी को पर्यावरण संरक्षण अधिनियम-1986 के तहत एक लाख रुपये तक जुर्माना या पांच साल तक की कैद या एक साथ दोनों सजा हो सकती है।
लगभग 1 घंटे तक चले जोरदार सत्र के बाद, प्रॉक्टोरियल बोर्ड के सभी सदस्यों के अनुरोध पर चीफ प्रॉक्टर प्रो. शिव प्रकाश सिंह ने चेतन उपाध्याय से सहमति लेते हुए घोषणा की कि विद्यार्थियों को शान्ति के महत्त्व को समझाने के साथ ही कानूनी प्रावधानों के प्रति सजग करने के लिए, ‘सत्या फाउण्डेशन’ के सहयोग से विश्वविद्यालय के सभी संकायों में, बारी – बारी से ध्वनि प्रदूषण जागरूकता कार्यक्रम का आयोजन किया जायेगा।
इस कार्यक्रम में बी.एच.यू. के समस्त प्रॉक्टर, ट्रामा सेंटर, मेडिकल इंस्टीट्यूट और मुख्य परिसर के समस्त प्रॉक्टर और डिप्टी चीफ प्रॉक्टर उपस्थित थे। साथ में समस्त सुरक्षा अधिकारी और कार्यालय के अन्य लोग भी उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन, प्रो. फतेह बहादुर सिंह एवं धन्यवाद ज्ञापन प्रो. रंजीत प्रताप सिंह ने किया।
(चेतन उपाध्याय)
संस्थापक सचिव
‘सत्या फाउण्डेशन’
9212735622

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