चलते है वह भी हमसे तेवर बदल बदल कर जिसको सिखाया हमने चलना संभल संभल कर: राजू बिष्ट

-दार्जिलिंग से चलेगी आंधी, समतल में सुनामी में बदलेगा

सिलीगुड़ी: अपने ही पार्टी के सांसद के खिलाफ कर्सियांग के भाजपा विधायक ने निर्दलीय ताल ठोक दिया है। इस संबंध में सांसद राजू बिष्ट से पूछे जाने पर कहा की चलते है वह भी हमसे तेवर बदल बदल कर जिसको सिखाया हमने चलना संभल संभल कर । सभी लोग जानते है की उनकी उम्मीदवारी और जीत कैसे हो पाई थी। अगर उनमें हिम्मत है तो विधायक पद से त्यागपत्र देकर चुनावी मैदान में आए। दार्जिलिंग संसदीय सीट पर बीजेपी लगातार तीन बार से जीत हासिल कर रही है, लेकिन जीत गोरखा जनमुक्ति मोर्चा के बिमल गुरुंग के समर्थन के कारण मिलती रही है। दार्जिलिंग की राजनीति में बिमल गुरुंग की स्थिति गड़बड़ा गई थी जो आज की घोषणा के साथ पूरी तरह भाजपा के पक्ष में है। एक बार फिर से पहाड़ में भाजपा के पक्ष में आंधी बहने लगी है। यह आंधी समतल तक आते आते सुनामी में बदलना तय माना जा रहा है। इसका कारण सीपीआरएम ओर गोरामुमो का पूरा समर्थन है। वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को फिर से जीत मिल पाएगी यह अब भाजपा के धुर विरोधी कहने लगे है। गोरखा नेशनल लिबरेशन फ्रंट प्रमुख मन घीसिंग भाजपा के साथ कंधा से कंधा मिलाकर चल रहे है। वह दार्जिलिंग से भाजपा के जीत के प्रति 100 फीसदी आशान्वित है। पहाड़ हो या समतल यहां के गोरखा का कहना है कि जब 2017 से गोरखा संकट की स्थिति में थे। जब बंगाल में अत्याचार चरम पर थे। तब राजू बिष्ट ने कम उम्र में चुनाव लड़ा था। जब कोई भी गोरखा जाति के उम्मीदवार के रूप में खड़ा नहीं हो सकता था। तब तथाकथित तृणमूल उम्मीदवार भागोप्रमो, गोपाल लामा, जिन्हें भूमिपुत्र कहा जा रहा है कहा थे। क्यों नही गोरखा हित में अपनी नौकरी नहीं छोड़ दी। यहां तक ​​कि अपने भाई के अनुरोध पर भी उन्होंने चुनाव में खड़े होने की हिम्मत नहीं की। ममता बनर्जी के क्रूर शासन से पहले, गोपाल लामा ने जातीय हितों या गोरखालैंड मुद्दे पर खड़े होने की हिम्मत नहीं की। मणिपुर के गोरखा पुत्र राजू बिष्ट अंधेरे और दिशाहीन स्थिति में बहादुरी से तृणमूल के खिलाफ खड़े हुए और बिमल गुरुंग के अनुरोध पर बंगाल के तानाशाह को वोट देकर पराजित किया। गोरखालैंड मुद्दे को लेकर चलने वाली पार्टियां गोरखालैंड चाहने वाले गोरखा पुत्र ने बंगाल की दबी-कुचली जनता के एकजुट होकर 2019 में अभूतपूर्व जीत हासिल की। जो गोरखाओं की जीत और बंगाल सरकार की तानाशाही की हार थी। राजू, जिसने अपने भाई को चुना। बंगाल को हार का स्वाद चखाया। उस समय नहीं समझ पा रहा था की राजू मेरे भाई के लिए सही विकल्प था। भले ही वह एक युवा, अपरिपक्व, राजनीतिक रूप से अज्ञानी गोरखा था। उसे एक योग्य, अनुभवी और प्रसिद्ध अमर राय के खिलाफ चुनाव लड़ना स्वीकार नहीं किया। दार्जिलिंग के बाहर के भूमि का बेटा। लेकिन वही उसके जीत के कारण सदन में हमारे मामले पर चर्चा हो रही थी। गोरखालैंड क्षेत्र के संसद सदस्य के रूप में, भाजपा के संगठनात्मक विचार के खिलाफ बंगाल राज्य, गोरखालैंड मुद्दा बना हुआ है। राजनीति पर नकारात्मक प्रभाव के बावजूद, राजू बिष्ट ने गोरखालैंड की आवाज को बुलंद रखे हुए हैं। इसलिए मेरा मानना ​​है कि राजू का भाई का चुनाव सही है। बिमल गुरुंग और राजू
न केवल एक नेता हैं, बल्कि एक राजनीतिक अभिभावक भी हैं और 2007 के बाद से उनके सभी राजनीतिक निर्णय जाति के हितों पर एक मजबूत और दूरगामी प्रभाव डालने वाले साबित हुए हैं। उसी तरह, हमलेगों को विश्वास है कि 2024 में राजू के भाई का चुनाव एक बार फिर से राजू गोरखाओं की देशव्यापी राजनीति में लाभकारी परिणाम लाएगा।1980 से पृथक गोरखालैंड की मांग पहाड़ की राजनीति तो प्रभावित करती रही है। 2017 में 110 दिनों का ‘इकोनॉमिक ब्लॉकेड’ भी हुआ था। 2019 में भाजपा ने पहाड़ के 11 समुदायों को ट्राइबल स्टेटस और स्थायी राजनीतिक समाधान का वादा किया था। नीरज जिंबा के पत्र के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सिलीगुड़ी की एक जनसभा से गोरखा समस्याओं के समाधान का एक बार फिर वादा किया। उन्होंने कहा कि गोरखाओं की समस्या को लेकर भाजपा संवेदनशील है। वह इसे अच्छी तरह समझ सकती है। मामले के समाधान के रास्ते पर काफी आगे बढ़ा जा चुका है। गोरखा भाई-बहनों की जो जो समस्याएं हैं, उनकी चिंता को दूर करने के लिए निरंतर प्रयास किये जा रहे हैं। प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन में कहा कि हम समाधान के करीब पहुंच गये है। इस बात को भाजपा के सांसद उम्मीदवार राजू बिष्ट भी दोहराते है। भारतीय गोरखा प्रजातांत्रिक मोर्चा दार्जिलिंग पहाड़ियों में प्रमुख राजनीतिक ताकत बन गया है। भारतीय गोरखा प्रजातांत्रिक मोर्चा (बीजीपीएम) पश्चिम बंगाल की उत्तरी पहाड़ियों में सबसे महत्वपूर्ण राजनीतिक दल के रूप में उभरा, जिसके उम्मीदवारों ने ग्रामीण चुनावों में दार्जिलिंग और कलिम्पोंग जिलों में बड़ी संख्या में पंचायत सीटें जीतीं।
राज्य के बाकी हिस्सों में त्रिस्तरीय चुनावों के मुकाबले, दो स्तरीय पंचायत चुनाव 23 साल बाद 8 जुलाई को गोरखालैंड टेरिटोरियल एडमिनिस्ट्रेशन (जीटीए) के तहत क्षेत्र में हुए, जो पहले से ही बीजीपीएम द्वारा नियंत्रित एक अर्ध-स्वायत्त परिषद है। 1980 के दशक में गोरखा नेशनल लिबरेशन फ्रंट (जीएनएलएफ) के नेता सुभाष घीसिंग ने गोरखालैंड नामक एक अलग राज्य की मांग उठायी थी। इसमें दार्जिलिंग की पहाड़ियों और डुआर्स व सिलीगुड़ी के तराई के क्षेत्रों को शामिल कर बनाने की मांग थी। गोरखा आबादी 1907 से ही बंगाल से अलग होने की मांग इस आधार पर कर रही है कि वह सांस्कृतिक और जातीय रूप से बंगाल से अलग है। इस मांग के साथ हो रहे आंदोलन ने हिंसक रूप ले लिया। इसमें 1,200 से अधिक लोगों की जानें गयी हैं। 23 वर्षों तक दार्जिलिंग पहाड़ियों का चलाया प्रशासनऊपरोक्त आंदोलन 1988 में दार्जिलिंग गोरखा हिल काउंसिल (डीजीएचसी) के गठन के साथ समाप्त हुआ। डीजीएचसी ने कुछ हद तक स्वायत्तता के साथ 23 वर्षों तक दार्जिलिंग पहाड़ियों का प्रशासन चलाया। इसी बीच 2007 में गोरखा जनमुक्ति मोर्चा (जीजेएम) नामक एक नये राजनीतिक संगठन ने एक बार फिर से अलग गोरखालैंड राज्य की मांग उठा दी। चौथा डीजीएचसी चुनाव 2004 में होने वाला था। हालांकि, सरकार ने चुनाव नहीं कराने का फैसला किया और इसके बजाय नयी छठी अनुसूची जनजातीय परिषद की स्थापना होने तक सुभाष घीसिंग को डीजीएचसी का एकमात्र कार्यवाहक बना दिया। इस चुनाव के बाद इसका स्थाई समाधान निकलेगा इसकी उम्मीद यहां के वोटरों में है। रिपोर्ट अशोक झा

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