धारा 144 लागू करने में नहीं किया गया विवेक का प्रयोग: राज्यपाल
क्या चुनावी परिणाम से डरी हुई है सरकार हिंसा बंगाल में कोई नई बात नहीं
कोलकोता से अशोक झा:पश्चिम बंगाल के राज्यपाल सीवी आनंद बोस ने कहा कि कोलकाता पुलिस द्वारा धारा 144 के तहत लगाए गए निषेधाज्ञा आदेश अनावश्यक, मनमानी तरीके से लागू किए गए हैं। राज्यपाल ने कहा कि 22 मई को पारित आदेश को संविधान के अनुच्छेद 167 (सी) के अनुसार मंत्रिपरिषद के समक्ष विचार के लिए रखा जाना चाहिए। राज्यपाल ने एक पत्र में कहा कि वर्तमान आदेश अवैध आधार पर आगे बढ़ता है क्योंकि यह एस.144 सीआरपीसी के ऐसे लागू किए जाने को नियमित मामला बताता है। यह प्रथम दृष्टया इंगित करता है कि सक्षम प्राधिकारी की ओर से कोई विवेक का प्रयोग नहीं किया गया था और वर्तमान आदेश बिना किसी प्रकार के विचार के नियमित तरीके से जारी किया गया था।राज्यपाल ने कहा कि यह बहुत ही स्तब्धकारी है कि इतने लंबे समय से धारा 144 सीआरपीसी के तहत जारी किया गया वर्तमान आदेश, जो निस्संदेह आम आदमी को उसकी स्वतंत्रता से वंचित करता है तथा उसकी स्वतंत्र आवाजाही पर प्रतिबंध लगाता है, इतने लापरवाही भरे, मनमानी तरीके से जारी किया गया है। राज्यपाल बोस ने कहा कि धारा 144 सीआरपीसी लागू करने का आदेश नागरिकों की स्वतंत्रता को कम करने वाला है और ऐसे आदेश संबंधित अधिकारियों की मर्जी के अनुसार जारी नहीं किए जा सकते। राज्यपाल ने कहा कि यह सामान्य बात है कि विचाराधीन खतरे और लागू किए जाने वाले उपाय के बीच एक उचित संबंध होना चाहिए। उन्होंने कहा कि सक्षम प्राधिकारी का यह दायित्व है कि वह सभी प्रासंगिक सामग्रियों पर विचार करने के बाद निष्पक्ष रूप से निर्णय ले। राज्यपाल ने कहा कि कोलकाता पुलिस ने कथित तौर पर विश्वसनीय इनपुट का हवाला देते हुए बताया है कि 28 मई से 26 जुलाई तक कोलकाता के बोबाजार पुलिस स्टेशन, हरे स्ट्रीट पुलिस स्टेशन और हेडक्वार्टर ट्रैफिक गार्ड के अंतर्गत आने वाले इलाकों में बड़े पैमाने पर हिंसक प्रदर्शन होने की संभावना है, जिससे सार्वजनिक शांति भंग हो सकती है। यह इलाका केसी दास क्रॉसिंग से विक्टोरिया हाउस और बेंटिक स्ट्रीट सहित इसके आसपास के इलाकों में है।प्रधानमंत्री की रैली में बाधा डालने के लिए उठाया गया ये कदम: इससे पहले शनिवार को पश्चिम बंगाल भाजपा अध्यक्ष सुकांत मजूमदार ने कहा कि कोलकाता पुलिस ने 28 मई को कोलकाता में होने वाली प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रैली में बाधा डालने और लोगों में डर पैदा करने के लिए मध्य कोलकाता में सीआरपीसी की धारा 144 लगा दी है। मजूमदार ने कोलकाता में संवाददाताओं से कहा कि कोलकाता पुलिस ने धारा 144 लगा दी है और कहा है कि यह नियमित है। मुझे लगता है कि इसे प्रधानमंत्री की रैली में बाधा डालने और लोगों में डर पैदा करने के लिए लागू किया गया है। ममता सरकार को डर है कि चुनाव के दौरान और उसके बाद यहां बड़े पैमाने पर हिंसा हो सकती है. चुनाव के बाद ये धारा 144, करीब 55 दिनों तक और बनी रहेगी।ममता सरकार ने आखिर ऐसा क्यों किया है? इस सवाल का जवाब सभी जानना चाहते हैं. सवाल कि आखिर चुनाव के बाद किस बात का डर है?
बंगाल से हिंसा का पुराना नाता: पश्चिम बंगाल एक ऐसा राज्य है जहां चुनाव से पहले, चुनाव के दौरान और चुनाव के बाद भी हिंसा होती रही है. क्या इस बार फिर से वही होने का डर है? पश्चिम बंगाल में चुनावों के हर चरण में हिंसा हुई है. छठे चरण की हिंसा में पश्चिम बंगाल के कई इलाके दहल उठे. बंगाल की राजनीति किस स्तर पर आ चुकी है. लोकतंत्र में जवाब देने का अहिंसक रूप है वोटिंग, लेकिन वोटिंग के दिन ही अगर इस तरह का हंगामा हो, तो इससे आप राज्य की कानून व्यवस्था और राजनीति को करीब से समझ सकते हैं।पश्चिम बंगाल में हिंसा की तस्वीरें पूरे दिन मीडिया की सुर्खियां बनी रहीं। पश्चिम बंगाल में चुनाव कोई भी हो, हिंसा नहीं रुकती। पश्चिम बंगाल में वर्ष 2011 से तृणमूल कांग्रेस की सरकार है. ममता बनर्जी एक लंबे समय से राज्य की मुख्यमंत्री हैं। एक मुख्यमंत्री की शक्तियों के अलावा, उनमें एक और शक्ति भी है. हिंसा को लेकर उनकी भविष्यवाणियां अक्सर सही साबित होती हैं. ऐसा देखा गया है कि ममता बनर्जी ने जितनी बार हिंसा होने का डर जताया है, उतनी बार हिंसा हुई है. फिर चाहे शोभायात्राओं में हिंसा होने का डर हो, या फिर मूर्ति विसर्जन के दिन हिंसा होने का डर. डर के सच हो जाने का एक उदाहरण ये है। मतदान के हर चरण में हिंसा: इसी वर्ष अप्रैल में ममता द्वारा दिए गए बयान के कुछ दिन बाद मुर्शिदाबाद में शोभायात्रा पर पथराव हुआ, जिससे हिंसा भड़क गई. ममता बनर्जी का डर सच साबित हुआ था. लोकसभा चुनावों में हिंसा का डर भी ममता पहले से जताती रहीं, और आप देख ही रहे हैं कि हर चरण में हिंसा हो रही है. बंगाल में कार्यकर्ताओं के घर जलाए जा रहे हैं, उनकी हत्याएं हो रही हैं. अब तो आरोप ये लगने लगे हैं, कि क्या हिंसा होने का डर जताना, किसी तरह का कोडवर्ड है? पश्चिम बंगाल में राजनीतिक हिंसा का इतिहास कुछ ऐसा ही है। वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान पश्चिम बंगाल में राजनीतिक हिंसा की 693 घटनाओं में 11 मौतें हुई थीं. चुनाव के बाद 1 जून 2019 से 31 दिसंबर 2019 तक हिंसा की 852 घटनाओं में 61 लोग मारे गए थे।- 2021 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी का आरोप था, कि पश्चिम बंगाल में 300 से ज्यादा बीजेपी कार्यकर्ता मारे गए. इस चुनाव परिणाम के 24 घंटे के अंदर ही 12 लोगों की राजनीतिक हत्याएं हुई थीं। – वर्ष 2018 में पंचायत चुनाव में वोटिंग वाले दिन ही 23 और वर्ष 2023 के पंचायत चुनाव में वोटिंग के दिन 18 लोगों की हत्याएं हुई थींममता चाहें तो हिंसा पर लग सकती है लगाम: ममता एक राज्य की मुख्यमंत्री हैं, और वो चाहें तो प्रशासन की मदद से हिंसा की गुप्त सूचनाओं पर सख्त एक्शन के जरिए हिंसा पर लगाम लगा सकती है. लेकिन पुलिस पर सख्ती के बजाए, वो राजनीतिक लाभ लेने वाले भाषण देती हैं. अब अगर धारा 144 के जरिए ममता सरकार ने सातवें चरण के बाद हिंसा का डर जताया है.तो ये सोचने वाली बात है. हालांकि कहा जा रहा है कि धारा 144 प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चुनावी रैली को रोकने के मकसद से लगाई गई है।