बिहार का देवघर है ठाकुरगंज हरगौरी मंदिर , यहां स्वंयभू शिवलिंग है स्थापित
मंदिर की स्थापना जुड़ा है कवि रविन्द्र नाथ टैगोर के परिवार से
पटना: आगामी 22 जुलाई से सावन माह का पर्व प्रारंभ ही जाएगा। ऐसे में हम आपको बिहार के देवघर के बारे में बताते है। इस मंदिर का इतिहास महाभारत काल और कवि गुरु रविन्द्र नाथ टैगोर के परिवार से जुड़ा है। कहा तो यह भी जाता है कि ठाकुरगंज काशी के तर्ज पर बाबा भोले के त्रिशूल पर विराजमान है। सर्प रूपी समुद्री तल से 67 फिट से अधिक की ऊंचाई पर यह बसा हुआ है। इसे नाग डीह भी कहा जाता है।इस मंदिर में आने वाले किभी भी भक्त की झोली खाली नहीं जाती है। सावन में जहां देवघर में बाबा बैद्यनाथ मंदिर में कांवर लेकर जाने वाले भक्तों की तैयारी अभी से शुरू हो गई है वही बिहार का बाबाधाम कहे जाने वाले ठाकुरगंज हर गौरी मंदिर में भी शिव भक्तों के आने को लेकर तैयारी की जा रही है। यहां की गंगा कहे जाने वाले महानंदा नदी से या फिर नेपाल के भक्त मेंची नदी से जलभर कर कांवर लाते है। हर गौरी मंदिर ठाकुरगंज नगर पंचायत के वार्ड नंबर 12 के ढिबड़ीपाड़ा में स्थापित है। सावन के प्रत्येक सोमवार को प्रसिद्ध श्री हरगौरी मंदिर को अनोखे अंदाज में सजाया जाएगा। इस मंदिर का इतिहास है अनोखा: सिलीगुड़ी से मात्र 60 किलोमीटर दूर किशनगंज जिले के ठाकुरगंज में हरगौरी मंदिर का इतिहास बेहद रोचक है, जहां आस पास पांडवों के कई स्थल आज भी मौजूद हैं। यहीं 123 वर्ष पूर्व रविन्द्रनाथ ठाकुर के वंशजों ने हरगौरी मंदिर की स्थापना की थी। यह बिहार के अलावा बंगाल, असम, नेपाल और भूटान के श्रद्धालुओं के आस्था का केन्द्र है। सालाें भर इस मंदिर में श्रद्धालुओं की भीड़ होती है पर सावन में इसकी छटा कुछ अलग ही निराली होती है। मंदिर के पुरोहित जयंत गांगुली के अनुसार ठाकुरगंज का पुराना नाम कनकपुर था, जिसे रविंद्र नाथ टैगोर के वंशज ज्योनिन्द्र मोहन ठाकुर ने खरीदी थी। उसके बाद इसका नाम ठाकुरगंज रखा गया। कहते है कि इतिहास है कि 1897 में उनके परिवार द्वारा पूर्वोत्तर कोण में पाण्डव काल के भग्नावशेष की खुदाई क्रम में कई शिवलिंग मिले। इसमें एक जाे एक फुट काले पत्थर का था। शिवलिंग पर आधे हिस्से में भगवान शिव और आधे हिस्से में मां पार्वती अंकित है। इन मूर्तियों को कोलकोता लेकर टैगोर पैलेश में रखा गया। इसी बीच परिवार को स्वप्न आया कि इस शिवलिंग को जहां से लाया गया है वहां स्थापित करों। हरगौरी मंदिर और खुदाई में प्राप्त हरगौरी शिवलिंग: स्वप्न में निर्देश के बाद 1957 में हुई थी स्थापना: ठाकुर परिवार इसे कलकत्ता में स्थापित करना चाहते थे, लेकिन स्वप्न में निर्देश मिलने के बाद बांग्ला संवत 21 माघ 1957 को एक टीन के घर में ठाकुर परिवार द्वारा इसकी स्थापना यहां की गई। चार फरवरी 1901 से हरगौरी मंदिर में पूजा -अर्चना विधिवत रूप से शुरु हुई। इस बात की पुष्टि स्वर्गीय पंडित यशोधर झा द्वारा लिखित हर गौरी मंदिर नमक पुस्तक में भी वर्णित है। ठाकुर परिवार द्वारा नियुक्त पुरोहित भोलानाथ गांगुली के वंशज आज भी मंदिर में पूजा-अर्चना कराते आ रहे हैं, जिसे हरगौरी धाम के नाम से जाना जाता है। स्वर्गीय गणपत रामजी अग्रवाल, सुधीर लाहिड़ी, भूतपूर्व आपूर्ति निरीक्षक रूदानंद झा के प्रयास से इस मंदिर के भव्य रूप का सपना साकार हुआ। 2001 चार फरवरी को मंदिर के सौ वर्ष पूर्ण होने पर स्वर्गीय सुशील अग्रवाल ने स्वर्गीय निरंजन मोर के देखरेख में
मंदिर का जीर्णोद्धार और शताब्दी समारोह कराया।
कोई खाली हाथ नहीं गया इस मंदिर से: 123 वर्ष पुरानी हरगौरी मंदिर से आजतक कोई भक्त खाली हाथ नहीं गया। ठाकुरगंज नगर में स्थित हरगौरी में भक्तों की इतनी आस्था है कि नेपाल, बंगाल संग अन्य प्रदेशों के लोग सावन माह में हरगौरी मंदिर में आते हैं। सावन माह के प्रत्येक सोमवार को हरगौरी मंदिर का विशेष श्रृंगार किया जाता है। इसके अलावा भक्तों के जलाभिषेक के लिए विशेष व्यवस्था की जाती है। सावन के प्रत्येक सोमवार को बाबा और माता पार्वती की विशेष पूजा-अर्चना के साथ रात्रि भर विशेष भजन कीर्तन का आयोजन किया जाता है। रिपोर्ट अशोक झा