क्यों सात दिनों की होती है श्रीमद भागवत कथा, कैसे और कब हुई इसकी शुरुआत

सिलीगुड़ी: श्रीमद् भागवत पुराण को भगवान कृष्ण का साहित्यिक अवतार माना जाता है। संगीतमय भगवत कथा को कहने के लिए सिलीगुड़ी में वृंदावन से कथावाचक श्री केशव कृष्ण जी महाराज आ रहे है। सिलीगुड़ी कालीनाथ रोड निवासी भगवती प्रसाद डालमिया परिवार की ओर से इसका आयोजन हो रहा है। अग्रसेन भवन में 25 से 31जुलाई तक श्री भगवत कथा कहा जाएगा। व्यास श्री केशव कृष्ण महाराज कहते है कि
श्रीमद् भागवत कथा सुनने से आध्यात्मिक विकास और भगवान के प्रति भक्ति गहरी होती है। श्रीमद् भागवत कथा स्वयं की प्रकृति और परम वास्तविकता के बारे में सिखाती है। उन्होंने बताया कि
क्यों सात दिनों की यह कथा कही और सुनी जाती है। इसकी शुरुआत कैसे हुई। पौराणिक कथाओं के अनुसार, श्रृंगी अपने पिता ऋषि शमीक के आश्रम में अन्य ऋषि कुमारों के साथ रहकर अध्ययन कर रहे थे। एक दिन की बात है, कि सब विद्यार्थी जंगल गए हुए थे और आश्रम में शमीक ऋषि समाधि में अकेले बैठे हुए थे। तभी अचानक वहां प्यास से व्याकुल राजा परीक्षित पहुंचे। वह प्यास से बहुत व्याकुल थे और आश्रम में पानी खोजने लगे। जब उन्हें कहीं से पानी नहीं मिला तो उन्होंने समाधि में बैठे शमीक ऋषि को प्रणाम कर विनम्रता से कहा- मुझे प्यास लगी है, कृपा मुझे पानी दीजिए।
राजा ने मरा सांप ऋषि के गले में डाला: उन्होंने बताया कि राजा के दो-तीन बार कहने पर भी ऋषि ने उन्हें कोई जवाब नहीं दिया, उन्हें बहुत बुरा लगा और तो और उन्हें लगा कि ऋषि ध्यान का ढोंग कर रहे हैं। क्रोध में आकर राजा परीक्षित ने एक मरा सांप उठाकर ऋषि के गले में डाल दिया और वहां से चले गए परंतु उन्हें आश्रम से जाते हुए एक ऋषि कुमार ने देख लिया और जाकर श्रृंगी को इसके बारे में खबर दी।
ऋषि श्रृंगी ने दिया राजा को श्राप : व्यास श्री केशव कृष्ण महाराज ने बताया कि इसके बाद सभी राजा के स्वागत के लिए आश्रम पहुंचे। परंतु जब तक सब पहुंचे, राजा वहां से जा चुके थे और ध्यान में बैठे शमीक ऋषि के गले में मरा सांप पड़ा था। ये देखकर ऋषि श्रृंगी को बहुत क्रोध आया और उन्होंने हाथ में पानी लेकर परीक्षित को श्राप दे दिया कि मेरे पिता का अपमान करने वाले राजा परीक्षित की मृत्यु आज से सातवें दिन नागराज तक्षक के काटने से होगी। इसके बाद ऋषिकुमारों ने ऋषि शमीक के गले से सांप निकाला इस बीच शमीक की समाधि टूट गई। शमीक ऋषि ने पूछा, क्या बात है? तब श्रृंगी ने सारी बात बताई।
शमीक बोले, बेटा, राजा परीक्षित के साधारण अपराध के लिए तुमने जो सर्पदंश से मृत्यु का भयंकर शाप दिया है, यह बहुत बुरा है। हमें यह शोभा नहीं देता। इसका मतलब ये है कि अभी तुझे ज्ञान प्राप्त नहीं हुआ। अब तू भगवान की शरण जा और अपने अपराध की क्षमा मांग। राजा परीक्षित को राजभवन पहुंचते-पहुंचते अपनी गलती का अहसास हो चुका था। थोड़ी देर बाद शमीक ऋषि का एक शिष्य राजा परीक्षित के पास पहुंचा और उसने कहा, राजन, ब्रह्म समाधि में लीन शमीक ऋषि की ओर से आपका उचित सत्कार नहीं हो पाया, जिसका उन्हें बहुत दुख है। किंतु, आपने बिना सोचे-समझे जो मरे सांप को उनके गले में डाल दिया। इस कारण उनके पुत्र श्रृंगी ने आपको आज से सातवें दिन सांप काटने से मृत्यु का शाप दे दिया है। जो असत्य नहीं होगा।
सात दिन भागवत कथा सुनाई: इसलिए आप मेरी बात मानें तो सात दिन तक अपना पूरा समय ईश्वर-चिंतन में लगाएं, ताकि आपको मोक्ष मिल सके। ये सुनकर राजा को संतोष हुआ कि मेरे द्वारा हुए अपराध के लिए मुझे उचित दंड मिलेगा। इसके बाद राजा परीक्षित व्यासपुत्र शुकदेव मुनि के पास पहुंचे और उन्हें भागवत कथा सुनाने के लिए कहा। शुकदेव जी ने परीक्षित को सात दिन भागवत-कथा सुनाई। कहा जाता है कि तभी से भागवत कथा सुनने की परंपरा प्रारंभ हुई थी।रिपोर्ट अशोक झा

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