बांग्लादेशी घुसपैठ, हिंदुओं पर अत्याचार के आधार पर विपक्ष को भाजपा ने घेरा
कई जिलों को केंद्र शासित प्रदेश बनाने की मांग
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अशोक झा, कोलकाता: निशिकांत दुबे ने कहा कि बिहार की किशनगंज, कटिहार, अररिया और बंगाल की मालदा और मुर्शिदाबाद सीट को मिलाकर केंद्र शासित प्रदेश बना दिया जाए, नहीं तो हिंदू गायब हो जाएंगे। बीजेपी सांसद ने एनआरसी लागू करने की भी मांग कर डाली। मुस्लिम घुसपैठ और हिंदुओं के पलायन के बाद अब हिंदुओं को मुसलमान बनाने के षड्यंत्र का भी पर्दाफाश हो गया है। सीएम ममता बनर्जी का पश्चिम बंगाल आने वाले दिनों में दो टुकड़ों में बंट सकता है। बीजेपी की कोशिश बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के पर कतरने की है। बताया जा रहा है की घुसपैठ के तार पाकिस्तान के साथ ही अन्य मुस्लिम देशों से भी जुड़ रहे हैं। इस्लामिक ताकतें घुसपैठ और हिंदू पलायन के साथ प्रस्तावित गलियारे में आतंकवाद को भी बढ़ावा दे रही हैं। पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आइएसआइ नेपाल के रास्ते उत्तर प्रदेश, बिहार और बंगाल में सक्रिय है। जून में आई एक रिपोर्ट ने भारत-नेपाल सीमा पर तेजी से बन रहे मदरसों और मस्जिदों से सावधान रहने की चेतावनी दी थी। ये मदरसे और मस्जिदें ऐसी जगहों पर बनाई जा रही हैं, जहां से भारत की सामरिक तैयारियों पर न केवल नजर रखी जा सके, बल्कि अपने आकाओं के इशारे पर राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरे में भी डाला जा सके। 2011 की जनगणना के अनुसार, पश्चिम बंगाल में 24.6 मिलियन से अधिक मुसलमान हैं , जो राज्य की आबादी का 27% है। [6] पश्चिम बंगाल में मुसलमानों का विशाल बहुमत जातीय मूल बंगाली मुसलमान हैं , जिनकी संख्या लगभग 22 मिलियन से अधिक है और जो राज्य की आबादी का 24.1% है (ज्यादातर वे ग्रामीण इलाकों में रहते हैं)। 2.6 मिलियन की संख्या में एक अप्रवासी उर्दू भाषी मुस्लिम समुदाय भी मौजूद है, जो राज्य की आबादी का 2.9% है और ज्यादातर राज्य के शहरी इलाकों में रहता है।किशनगंज बिहार का वह सीमावर्ती जिला है जो बंगाल, नेपाल और बंगलादेश की सीमा से सटा है। बिहार की राजधानी पटना से 425 किमी उत्तर-पूर्व में स्थित किशनगंज पहले कृष्णाकुंज के नाम से जाना जाता था। बंगाल, नेपाल और बंगलादेश की सीमा से सटा किशनगंज पहले पूर्णिया जिले का अनुमंडल था। किशनगंज पहले पूर्णिया जिले का अनुमंडल था। बिहार सरकार ने 14 जनवरी 1990 को इसे पूर्ण रूप से जिला घोषित किया गया। सिर्फ एक अनुमंडल और सात प्रखंड वाले इस जिला को आर्थिक, साक्षरता सहित तमाम मामले में इसे पिछड़ा जिला माना जाता है। 32 साल पुराने इस जिला में मुस्लिम की आबादी अधिक है। यहां 68 प्रतिशत आबादी मुस्लिम है। इनमें हिंदू भी हैं जिनमें से अधिकांश सूरजपुरियों (राजबंशी) हैं। किशनगंज के अधिकांश निवासी सूरजपुरी भाषा बोलते हैं। बिहार के सीमावर्ती इलाकों और मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में भी एनआरसी के खिलाफ लगातार आवाज उठीं. कई बार केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह और विपक्षी पार्टियों के नेताओं के बीच इसे लेकर जुबानी जंग भी होती रही है। सीमांचल में मुस्लिम आबादी के ग्रोथ को लेकर बीजेपी हमेशा से मुखर रही है लेकिन नीतीश कुमार बीजेपी के पक्ष में हों या विपक्ष में इस मुद्दे पर हमेशा ही ठोस कदम उठाने से बचते रहे हैं। ज़ाहिर है सीमांचल के पांच से छे जिलों में 35 फीसदी से ज्यादा आबादी बढ़ने पर आवाजे उठी हैं लेकिन आरजेडी समेत जेडीयू का रवैया घुसपैठ को लेकर उदासीन रहा है। दरअसल सीमांचल के जिलों में घुसपैठ को लेकर सियासी पार्टियां वोट बैंक के हिसाब से रणनीति बनाती रही हैं। एनआरसी के मुद्दे को लेकर दिल्ली में भी बड़ा सियासी हंगामा हुआ था।एनआरसी के खिलाफ लंबे समय तक इसका विरोध करने वालों ने प्रदर्शन किया था और एनआरसी के खिलाफ पूरे देश में एक लहर जैसी पैदा हो गयी थी, हालांकि बाद में कोरोना महामारी के कारण यह ठंड़ा पड़ गया और केंद्र सरकार ने भी इस फैसले को लागू करनें थोड़ी नरमी बरत दी।लेकिन आज भी विपक्षी पार्टियां एनआरसी के नाम पर केंद्र की बीजेपी सरकार पर निशाना साधते रहती है। सांसद निशिकांत दुबे का दावा: बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे ने दावा किया है कि झारखंड में आदिवासियों की आबादी तेजी से घट रही है, क्योंकि बांग्लादेश से मुसलमान आकर बस रहे हैं. उन्होंने कहा कि बंगाल के मालदा और मुर्शिदाबाद से अवैध घुसपैठिए आ रहे हैं. और झारखंड की सत्तारूढ़ सरकार इस अवैध बस्ती को रोकने के लिए कोई कार्रवाई नहीं कर रही है।लोकसभा में निशिकांत दुबे ने कहा कि वह झारखंड के जिस संथाल परगना क्षेत्र से आते थे वो क्षेत्र पहले बिहार में था। उनका कहना है कि संथाल परगना क्षेत्र जब झारखंड का हिस्सा बना तो उस समय साल 2000 में आदिवासियों की जनसंख्या 36 फीसदी थी लेकिन आज उनकी आबादी 26% है। निशिकांत ने सवाल उठाए हैं कि 10% आदिवासी कहां गायब हो गए? मुस्लिम बहुल इलाकों पर नजर?: निशिकांत दुबे ने जिन 5 जिलों को अलग कर केंद्र शासित राज्य बनाने की मांग की है, इन सभी में मुस्लिम बहुल आबादी है।बिहार की किशनगंज, कटिहार, अररिया और बंगाल की मालदा और मुर्शिदाबाद सीट पर मुस्लिम वोट निर्णायक हैं. किशनगंज सीट पर तो बीजेपी सिर्फ एक बार 1999 लोकसभा चुनाव में जीत दर्ज कर पाई थी, पार्टी को यह जीत मुस्लिम नेता शाहनवाज हुसैन ने दिलाई थी। किशनगंज में जहां 68 फीसदी मुस्लिम आबादी है तो वहीं अररिया में करीब 45 फीसदी मुस्लिम हैं. कटिहार में 41 फीसदी मुस्लिम वोटर हैं तो मुर्शिदाबाद और मालदा बंगाल की सबसे ज्यादा मुस्लिम आबादी वाले जिले हैं। क्या अलग UT की मांग सियासी है?: निशिकांत दुबे इस मांग के पीछे असली वजह घुसपैठ को बता रहे हैं. उनका दावा है कि इन इलाकों में हिंदुओं के गांव खाली हो रहे हैं. हालांकि अपनी बात को मजबूती देने के लिए उन्होंने कहा है कि ये बात वो ऑन रिकॉर्ड कह रहे हैं और अगर उनकी बात गलत है तो इस्तीफा देने को तैयार हैं. लेकिन क्या सच में सिर्फ यही वजह है या फिर इसके पीछे कोई सियासी नफा-नुकसान है? दरअसल इन 5 जिलों की 6 सीटों में से बीजेपी के पास सिर्फ 2 लोकसभा सीट है. वहीं इन 6 लोकसभा क्षेत्रों के अंतर्गत आने वाली 39 विधानसभा सीटों में से सिर्फ 10 सीटें बीजेपी के खाते में हैं. ऐसे में माना ये भी जा रहा है कि इस मांग के पीछे सियासी कारण भी हो सकते हैं. चलिए जिलेवार समझते हैं इन इलाकों का सियासी समीकरण
बिहार का किशनगंज जिला: किशनगंज लोकसभा सीट की बात करें तो फिल्हाल यह सीट कांग्रेस के पास है. बीते 4 लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने इस सीट पर कब्जा जमाया है. 2009 और 2014 में कांग्रेस के मो. असरारुल हक इस सीट से जीते थे तो वहीं 2019 और 2024 में कांग्रेस ही मो. जावेद यहां से सांसद चुने गए. 2019 में बिहार में जब NDA की लहर थी, तब भी कांग्रेस इस सीट को बचाने में कामयाब रही थी।आबादी के लिहाज से यह मुस्लिम बाहुल्य इलाका है, यहां करीब 68 फीसदी मुस्लिम और 32 फीसदी हिंदू वोटर हैं. इस सीट पर अब तक हुए 17 लोकसभा चुनाव में से 10 बार कांग्रेस को जीत मिली है और सिर्फ एक बार 1999 में बीजेपी के शाहनवाज हुसैन ने जीत दर्ज की थी. 1957 से 2024 तक यहां से सिर्फ एक गैर मुस्लिम सांसद (लषण लाल कपूर) चुने गये. यह इलाका नेपाल और बंगाल से सटा हुआ है।वहीं किशनगंज लोकसभा में विधानसभा की 6 सीटें हैं. बिहार में पिछली बार हुए विधानसभा चुनाव में बहादुरगंज, ठाकुरगंज, किशनगंज, कोचाधामन, अमौर और बैसी विधानसभा की 6 सीटों में से 4 सीटों पर आरजेडी और एक पर कांग्रेस और एक सीट AIMIM के खाते में आई थी।बिहार का अररिया जिला: बिहार की अररिया लोकसभा सीट पर बीजेपी एक बार फिर जीत दर्ज करने में कामयाब रही है. लेकिन यह जीत महज 20 हजार वोटों के अंतर की रही, आरजेडी ने सीमांचल के गांधी कहे जाने वाले तस्लीमुद्दीन के बेटे शाहनवाज पर दांव लगाया था, लेकिन कहा जा रहा है कि तस्लीमुद्दीन अपने भाई और पूर्व सांसद सरफराज आलम के विरोध के कारण चुनाव हार गए। अररिया जिले की आबादी करीब 30 लाख है. यहां मुस्लिम समुदाय करीब 43 फीसदी है और 32% मुस्लिम वोटर हैं. मुस्लिम समुदाय की यहां दो प्रमुख जातियां कुल्हैया और शेखरा हैं. कुल्हैया की आबादी सबसे अधिक है. बाकी हिन्दू समुदाय के लोग हैं. हिंदुओं में यादव और मंडल वोट सबसे अधिक हैं. हरिजन और आदिवासी वोट भी चुनाव में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। अररिया लोकसभा में भी विधानसभा की 6 सीटें हैं. इनमें अररिया, जोकीहाट, फारबिसगंज, नरपतगंज, रानीगंज और सिकटी आते हैं. विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने 3, कांग्रेस और जेडीयू ने एक-एक सीट पर जीत दर्ज की थी. वहीं जोकीहाट सीट से AIMIM प्रत्याशी ने चुनाव जीता था जो बाद में आरजेडी में शामिल हो गए।बिहार का कटिहार जिला: कटिहार लोकसभा सीट पर भी कांग्रेस का कब्जा है, कांग्रेस के तारिक अनवर ने रिकॉर्ड छठी बार यहां से जीत दर्ज की है. 2019 में ये सीट जेडीयू के दुलाल चंद्र के पास थी. अब तक हुए चुनाव में कांग्रेस ने 8 बार जीता है, बीजेपी ने 3 बार और जनता पार्टी ने 2 बार और जेडीयू ने एक बार, प्रजा सोशलिस्ट और जनता दल ने भी एक-एक बार यहां जीत हासिल की है. 2014 में तारिक अनवर ने NCP उम्मीदवार के तौर पर जीत दर्ज की थी। कटिहार में मुस्लिम वोटर निर्णायक भूमिका में हैं. यहां 41 फीसदी मुस्लिम वोटर हैं, 11 फीसदी यादव, 8 फीसदी सामान्य, करीब 15 फीसदी वैश्य और 18 फीसदी पिछड़ा-अति पिछड़ा समाज के वोटर हैं, जबकि लगभग 7 से 8 फीसदी अनुसूचित जाति और जनजाति के वोटर हैं। कटिहार लोकसभा में 6 विधानसभा सीटें हैं. कटिहार, कड़वा, बलरामपुर, प्राणपुर, मनिहारी और बरारी, इनमें से 2 सीट बीजेपी के पास है और 2 पर कांग्रेस का कब्जा है. वहीं एक जेडीयू और एक CPM के पास है।
उत्तर बंगाल का मालदा जिला : बंगाल में मुस्लिम आबादी के लिहाज से मुर्शिदाबाद के बाद मालदा दूसरे नंबर पर है. लोकसभा सीट की बात करें तो मालदा उत्तर सीट पर बीजेपी और मालदा दक्षिण सीट पर कांग्रेस का कब्जा है. 2009 और 2014 में मालदा उत्तर से कांग्रेस की मौसम नूर ने चुनाव जीता, 2019 में ये सीट बीजेपी के खाते में आ गई. खगेन मुर्मू ने यहां से जीत हासिल की थी, वहीं इस बार भी उन्होंने अपना प्रदर्शन दोहराया है। मालदा दक्षिण सीट 2019 में भी कांग्रेस के पास थी, इस बार भी कांग्रेस बंगाल में एकमात्र यही सीट जीत पाई है. 2009 से कांग्रेस का इस सीट पर कब्जा है. मालदा दक्षिण लोकसभा सीट परिसीमन के बाद साल 2009 में पहली बार अस्तित्व में आई. आबादी की बात करें तो यहां 2011 की जनगणना के मुताबिक यहां की कुल आबादी करीब 23 लाख से अधिक है और मुस्लिम आबादी करीब 50 फीसदी है। मालदा उत्तर लोकसभा में 7 विधानसभा सीटें आती हैं, इनमें से चार पर टीएमसी के विधायक और तीन पर बीजेपी के विधायक हैं. वहीं मालदा दक्षिण लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत भी 7 विधानसभा सीटें आती हैं जिनमें से 6 पर टीएमसी के विधायक हैं, जबकि एक पर बीजेपी का कब्जा है।बंगाल का मुर्शिदाबाद जिला: पश्चिम बंगाल की मुर्शिदाबाद सीट पर वामपंथी दलों का दबदबा रहा है. इस सीट पर 8 बार CPI ने जीत दर्ज की है, हालांकि पिछले चुनाव में TMC ने सीपीआई के दबदबे को तोड़ दिया था. वहीं कांग्रेस को इस सीट पर 4 बार जीत मिली है।मुर्शिदाबाद के जातीय समीकरण की बात करें तो 2011 जनगणना के मुताबिक यहां पर 60 फीसदी मुस्लिम वोटर हैं, जबकि 15 फीसदी वोटर अनुसूचित जाति से आते हैं और 1.5 फीसदी वोटर अनुसूचित जनजाति के हैं। वहीं मुर्शिदाबाद के 7 विधानसभा चुनावों के गणित पर नजर डालें तो 2021 विधानसभा चुनाव में TMC ने 6 सीटों पर कब्जा जमाया था वहीं सिर्फ एक सीट पर बीजेपी जीत हासिल कर पाई। बंगाल को लेकर सुकांता ने भी की थी मांग: केंद्रीय मंत्री सुकांता मजूमदार ने बुधवार को प्रधानमंत्री से मुलाकात कर नॉर्थ बंगाल को बंगाल राज्य से अलग कर नॉर्थ ईस्ट में शामिल करने की मांग की थी. सुकांता का दावा था कि इससे नॉर्थ बंगाल में विकास होगा और केंद्र की योजनाओं का फायदा मिलेगा. हालांकि नॉर्थ बंगाल के कर्सियागंज से बीजेपी के ही विधायक बिष्णु प्रसाद शर्मा ने सुकांता की इस मांग का विरोध किया है। लेकिन बंगाल को लेकर बीजेपी की ओर से उठ रही इन मांगों को लेकर कई सवाल खड़े हो रहे हैं. क्या सच में बीजेपी नेता बंगाल के विकास और घुसपैठ के चलते इस तरह के दांव खेल रहे हैं या फिर इसके पीछे कोई सियासी पेच है? पश्चिम बंगाल में बीजेपी बीते 10 सालों से लगातार मेहनत कर रही है लेकिन ममता दीदी का ये किला बीजेपी के लिए अब भी अभेद्य बना हुआ है। ऐसे में इन मांगों पर सवाल उठना तो लाजिम है।