सिंगुर और उदारवादी नीति रही बंगाल में 34 सालों के वामपंथी शासन के पतन का कारण


अशोक झा, कोलकाता: पिछले पांच दशक से भी अधिक के राजनीतिक करियर के दौरान बुद्धदेव भट्टाचार्य ने कई उतार चढ़ाव भी देखे। कौन थे बुद्धदेव भट्टाचार्जी जिन्होंने दुनिया के किसी भी क्षेत्र में सबसे ज्यादा दिनों तक चलने वाली वामपंथी सरकार बनाई थी? बुद्धदेव भट्टाचार्जी एक भारतीय कम्युनिस्ट राजनेता और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के पोलित ब्यूरो के पूर्व सदस्य थे। 2000 से 2011 तक पश्चिम बंगाल के 7वें मुख्यमंत्री रहे। वे भारत के सबसे लंबे समय तक पद पर रहने वाले मुख्यमंत्रियों में से एक भी हैं।बुद्धदेव भट्टाचार्य ने उद्योग को दिया बढ़ावा: अपने कार्यकाल के दौरान भट्टाचार्य ने निवेश आकर्षित करने और रोजगार पैदा करने के लिए पश्चिम बंगाल में औद्योगिकीकरण अभियान शुरू की। उनकी सरकार ने आईटी और सर्विस सेक्टर में मौके देखे। उन्होंने टाटा नैनो को कोलकाता के पास एक छोटे से गांव सिंगुर में दुनिया की सबसे सस्ती कार की फैक्ट्री स्थापित करने के लिए आमंत्रित किया लेकिन बाद में यही फैसला उनके शासन के अंत का कारण बन गया। इसके अलावा उन्होंने जिंदल समूह की पश्चिम मिदनापुर जिले के सालबोनी में देश के सबसे बड़े स्टील प्लांट बनाने की योजना और नंदीग्राम में एक केमिकल फैक्ट्री बनाने की योजना को भी मंजूरी दी थी।सिंगूर विवाद क्या था:
34 सालों के वामपंथी शासन के पतन का कारण सिंगूर से शुरू हुआ विवाद बना। सिंगूर हुगली विधानसभा के सात विधानसभा क्षेत्रों में से एक है। 2006 में बुद्धदेव भट्टाचार्य की सरकार ने सिंगूर में टाटा मोटर्स को नैनो कार बनाने का आमंत्रण दिया। इसके लिए उन्होंने जमीन अधिग्रहण शुरू कर दिया। सरकार ने लगभग 997 एकड़ जमीन का अधिग्रहण किया था। हालांकि सिंगूर के किसान अपनी उपजाऊ जमीन देने को बिलकुल तैयार नहीं थे और उन्होंने अपनी जमीन देने से इनकार कर दिया। इस विवाद से उपजे विरोध प्रदर्शन ने जल्द ही आंदोलन का रूप ले लिया। पुलिस एक्शन में 14 लोगों की मौत के बाद लोगों का गुस्सा और भड़क गया। इस आंदोलन में नेतृत्व करने के लिए आगे आईं ममता बनर्जी जो बाद में मुख्यमंत्री बनीं। बाद में यह फैक्ट्री गुजरात में लगी। 2016 में सुप्रीम कोर्ट ने पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा अधिगृहीत 997 एकड़ जमीन मालिकों को लौटाने का आदेश दिया।
बुद्धदेव भट्टाचार्य के शासन के पतन की कहानी: सिंगूर विवाद की वजह से 2009 के लोकसभा चुनाव में उनकी पार्टी और उसके सहयोगियों को काफ़ी नुकसान उठाना पड़ा। 2011 के राज्य विधानसभा चुनाव में भट्टाचार्य को अपनी ही सरकार के पूर्व मुख्य सचिव और तृणमूल कांग्रेस के उम्मीदवार मनीष गुप्ता ने 16,684 मतों से हरा दिया। वे 1967 में प्रफुल्ल चंद्र सेन के बाद अपनी ही सीट से चुनाव हारने वाले दूसरे पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री बने। वाम मोर्चे को बड़ी हार का सामना करना पड़ा और उन्हें 294 में से केवल 62 सीटें ही मिलीं। भट्टाचार्य ने 13 मई 2011 को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफ़ा दे दिया। भट्टाचार्य को बंगाल में मुख्यमंत्री की कुर्सी ज्योति बसु से विरासत में मिली थी। 11 सालों तक सीएम रहे भट्टाचार्य बंगाल में मार्क्सवादी कम्युनिष्ट पार्टी के आखिरी शासक थे। प्रैक्टिकल पॉलिटिक्स को तवज्जो देने वाले बुद्धदेव भट्टाचार्य ने करीब 35 साल तक बंगाल की राजनीति को प्रभावित किया। भट्टाचार्य पश्चिम बंगाल के पहले मुख्यमंत्री चुने गए थे। उन्होंने 2001 और 2006 में सीपीआई (एम) के नेतृत्व वाले वाम मोर्चे को लगातार दो चुनावों में जीत दिलाई। 2001 में वाम मोर्चे ने 294 विधानसभा सीटों में से 199 सीटें हासिल की। इसके बाद 2006 में उनकी पार्टी को 235 सीटों पर जीत मिली।उदार नीतियां: वामपंथी होने के बावजूद भट्टाचार्य को व्यापार के संबंध में उनकी अपेक्षाकृत उदार नीतियों के लिए जाना जाता था। यह सीपीआई (एम) की पारंपरिक रूप से पूंजीवाद विरोधी नीतियों के खिलाफ थी। मुख्यमंत्री के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान उन्हें भूमि अधिग्रहण और प्रदर्शनकारियों के खिलाफ हिंसा के आरोपों पर कड़े विरोध का सामना करना पड़ा था। इन विवादों की वजह से पश्चिम बंगाल में वाम मोर्चे के 34 साल के शासन का अंत हो गया था। यह दुनिया की सबसे लंबे समय तक लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित कम्युनिस्ट सरकार थी।
बंगाली ब्राह्मण परिवार से आने वाले भट्टाचार्य की राजनीति में आने की कहानी भी काफी दिलचस्प है।बांग्ला साहित्य से पढ़ाई, सरकारी शिक्षक बने: 1 मार्च 1944 को जन्मे बुद्धदेव ने अपनी पूरी पढ़ाई कोलकाता से ही की. प्रेसिडेंसी कॉलेज से बुद्धदेव ने बांग्ला साहित्य में ग्रेजुएशन किया. बांग्ला साहित्य से पढ़ाई के पीछे बुद्धदेव की पारिवारिक वजहें थी. बुद्धदेव के दादा साहित्य के बड़े जानकार थे और कोलकाता में पुजारी दर्पण नामक मशहूर पत्रिका निकालते थे।ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी करने के बाद बुद्धदेव शिक्षक बन गए। कुछ सालों तक बच्चों को पढ़ाने के बाद बुद्धदेव राजनीति में आ गए। छात्र राजनीति से करियर की शुरुआत की: कोलकाता में जन्मे बुद्धदेव भट्टाचार्य ने छात्र राजनीति से अपनी करियर की शुरुआत की थी। वे साल 1968 में सीपीएम के छात्र संगठन डेमोक्रेटिक यूथ फेडरेशन के राज्य सचिव चुने गए। बुद्धदेव ने इसके बाद राजनीति में पीछे मुड़कर नहीं देखा। 1977 में कोलकाता की काशीपुर-बेलछिया विधानसभा सीट से वे विधायक चुने गए।1987 में वे जादवपुर सीट की ओर से शिफ्ट हो गए। 2011 तक वे इस सीट से विधायक रहे। बुद्धदेव को 1977 में ज्योति बसु की सरकार में सूचना और संस्कृति मंत्रालय का जिम्मा मिला। साल 1982 तक वे इस पद पर रहे। 1987 में उन्हें फिर से कैबिनेट में शामिल किया गया. इस बार उन्हें शहरी विकास जैसे बड़े विभाग दिए गए. 1996 में बुद्धदेव बंगाल के गृह मंत्री बनाए गए। ज्योति बसु से मिली बंगाल की कमान: साल 2000 में ज्योति बसु ने बंगाल की कमान बुद्धदेव भट्टाचार्य को सौंप दी. बुद्धदेव उस वक्त बंगाल के डिप्टी सीएम थे. बसु 2011 तक बंगाल के मुख्यमंत्री रहे. उनके ही कार्यकाल में बंगाल में विवादित सिंगूर और नंदीग्राम का किसान आंदोलन हुआ था। बुद्धदेव साल 2015 तक सक्रिय राजनीति में रहे. इसके बाद उन्होंने राजनीति छोड़ दी. हालांकि, साल 2021 के चुनाव में सीपीएम ने बुद्धदेव से एआई वीडियो के जरिए संदेश जारी करवाया था। बुद्धदेव भट्टाचार्य को 2022 में केंद्र सरकार ने पद्मभूषण सम्मान देने की घोषणा की, लेकिन भट्टाचार्य ने उसे लेने से इनकार कर दिया।मनमोहन ने बताया था देश का सर्वश्रेष्ठ सीएम: साल 2005 में देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने बुद्धदेव भट्टाचार्य को देश का सर्वश्रेष्ठ मुख्यमंत्री बताया था। इसी साल उन्हें यह उपाधि उद्योगपति अजीज प्रेमजी ने भी दी थी। बुद्धदेव ने अपने शासन में बंगाल में अद्यौगिक नीति स्थापित करने की कोशिश की। हालांकि, उनकी सरकार इसमें असफल साबित हुई। बुद्धदेव 2002 से 2015 तक माकपा की सर्वोच्च इकाई पोलित ब्यूरो के भी सदस्य रहे ममता और शुभेंदु ने जताया शोक: बुद्धदेव भट्टाचार्य के निधन पर शुभेंदु अधिकारी ने शोक जताया है. ममता ने कहा है कि मैं बुद्धदेव भट्टाचार्य को लंबे वक्त से जानती थी। एसडीउनके चाहने वालों पर दुखों का पहाड़ टूट गया है। उनके परिवार और सीपीएम के कार्यकर्ताओं के प्रति मेरी संवेदना है। उनका अंतिम संस्कार राजकीय सम्मान के साथ होगा। शुभेंदु ने भी दुख जताते हुए संवेदना व्यक्त की है। कांग्रेस के कद्दावर नेता प्रदीप भट्टाचार्य ने बुद्धदेव के निधन को व्यक्तिगत क्षति बताया है।

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