करोड़ो की सुपारी लदी पांच ट्रकों को सेन्ट्रल जीएसटी ने किया जब्त
उत्तर बंगाल के रास्ते करोड़ो के बर्मी सुपारी की तस्करी धड़ल्ले से फर्जी बिल और कंपनी के सहारे चल रहा है यह खेल
अशोक झा, सिलीगुड़ी : फर्जी बिल के सहारे उत्तर बंगाल के रास्ते प्रतिदिन करोड़ों की लाल सुपारी की तस्करी धड़ल्ले से हो रही है। यह म्यांमार से असम होते हुए उत्तर बंगाल तक फैला है। यह खेल सड़क मार्ग से हो रही है। इसका खुलासा आज सिलीगुड़ी सेंट्रल जीएसटी की टीम के द्वारा 8 ट्रकों को पकड़ा। तीन ट्रकों के कागजात सही पाए जाने के बाद छोड़ दिया गया। जबकि 5 ट्रकों में लदे सुपारी को जप्त किया गया है। इसमें 3 ट्रक प्राइम लॉजिस्टिक्स और 2 ट्रक एएम लॉजिस्टिक्स के है। इसके अलावा कानपुर से आ रही एक ट्रक लदे पान मसाला को जब्त कर 50 लाख का जुर्माना लगाया है। मिली जानकारी के अनुसार जब्त ट्रकों को हिमाचल बिहार में रखा गया है। जिसका नंबर है एनएल 01पीएफ 9195, आरजे 2जी ए 4742, आरजे 52जीबी 1764 तथा यूपी 77एटी 9101 है। यह छापामारी एसजीएसटी कमिश्नर के नेतृत्व में की गई है। सभी ट्रकों में 50 लाख रुपए मूल्य के सुपारी रखे हुए है।
जब्त किए गए सुपारी और पकड़े गए ट्रकों में सवार चालक ओर अन्य तस्करो से पूछताछ में हुआ है। बताया गया की इस पूरे खेल के पीछे कोलकाता और असम करियर प्रमुख सिंडीकेट का काम कर रहा है। बताया गया की फर्जी बिल के सहारे उत्तर बंगाल के रास्ते करीब 100 से 200 करोड रुपए की लाल सुपारी की तस्करी धड़ल्ले से हो रही है। यह म्यांमार से असम होते हुए उत्तर बंगाल तक फैला है। मिली जानकारी चौकाने वाली है। विभागीय सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार इन दिनों लाल सुपारी की तस्करी फर्जी बिल के आधार पर हो रहा है। फर्जी कंपनी जांच एजेंसी के रडार पर है : जिन फर्जी कंपनी रडार पर सौ से अधिक कंपनी है। उसकी छानबीन हो रही है। यह सभी कंपनी असम, उत्तर बंगाल और कोलकोता के पते पर है।
इस प्रकार होता है सारा खेल :: बताया गया की सुपारी को उत्तर बंगाल से लोड किया जाता है जबकि उसके साथ कागजात असम के कंपनियों का दिया होता है। इस प्रकार फर्जी तरीके से सीएसटी और सेंट्रल रिवेन्यू इंटेलिजेंस को फाइल देकर जीएसटी टैक्स का फ्रॉड किया जा रहा है। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार प्रतिदिन 25 ट्रकों से म्यांमार से असम और फिर उसे कोलकाता समेत उत्तर प्रदेश, दिल्ली, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, पंजाब समेत विभिन्न प्रांतों में ले जाया जाता है। कुछ दिनों तक इन कंपनी के माध्यम से काम होने के बाद इसे बंद कर दिया जाता हैं। इस गोरख धंधे में चौधरी एंड कंपनी की भूमिका संदिग्ध है। प्रत्येक ट्रक में करीब 20 से 22 टन सुपारी लदी होती है। इसकी कीमत करीब 50 से 55 लाख रुपये होती है। इसके आधार पर प्रतिदिन करीब 13 से 15 करोड़ रुपये की सुपारी तस्करी से भारत सरकार को राजस्व का चूना लगाया जा रहा है। पिछले दिनों ही उत्तर दिनाजपुर में लाल सुपारी लदा दो ट्रक पकड़ा गया था। बताया गया की इंडोनेशिया से म्यांमार के चंपाई व टियाहू नामक अंतरराष्ट्रीय सीमा से भारतीय सीमा में सुपारी की तस्करी की जाती है। फिर उसे इंफाल, दीमापुर, सिल्चर में डंप किया जाता है। वहां से इसे सड़क मार्ग से कंटेनर से 90 किलोग्राम के बोरे में लाया जाता है। इसमें केमिकल के माध्यम से लाल बनाया जाता है। उसके बाद 50 किलोग्राम के बोरे में पैकिंग करने के बाद तस्करों के खुद के तैयार ट्रांसपोर्ट के माध्यम से भारतीय बाजारों में भेजा जाता है। म्यांमार से सुपारी लाकर केमिकल से तैयार किया जाता है लाल सुपारी
कस्टम्स और अन्य एजेंसी को दिया जाता है झांसा: तस्करी के धंधे में जुड़े सिंडीकेट सिलीगुड़ी से कस्टम आयुक्तालय बंद हो जाने का फायदा उठाकर विदेशों से सुपारी लाकर उसे केमिकल के माध्यम से लाल करते है। फर्जी कंपनी के नाम पर बिल बनाकर उसे उत्तर बंगाल और असम का सुपारी बता देश के विभिन्न क्षेत्रों में तस्करी किया जाता है। पकड़े जाने पर इसे भारतीय सुपारी का नाम देकर कोर्ट से दवाब डाल छुड़वाया जाता है। अगर इसकी फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड अथॉरिटी ऑफ़ इंडिया (एफएसएसएआई) के लैब में जॉच कराने पर इसकी सच्चाई
सामने आएंगे। इस मांग पर कोलकोता जॉन के कस्टम्स आयुक्त का कहना है कि लाल सुपारी तस्करी पर नकेल कसने के लिए अब इसकी फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड अथॉरिटी ऑफ़ इंडिया (एफएसएसएआई) के लैब में करा सकती है। तस्करी की सुपारी का सबसे बड़ा खरीददार उत्तर प्रदेश के कानपुर के नयागंज और ऐशबाग व महाराष्ट्र का नागपुर है। इसके पीछे का मुख्य कारण मोटी कमाई बताया जाता है। मोटी कमाई के कारण या तस्करी रोकने वाले अधिकारियों की लापरवाही का ही परिणाम है कि यह धंधा बेरोक-टोक फल-फूल रहा है। बताया कि म्यांमार से खराब गुणवत्ता वाली सुपारी की तस्करी असम के सिलचर और पश्चिम बंगाल के फालाकाटा के माध्यम से देश में की जा रही थी। उन्होंने उल्लेख किया था कि सुपारी को घरेलू सुपारी के साथ मिलाया जाता है और विपणन किया जाता है, जिससे उत्पादकों की संभावनाएं प्रभावित होती हैं।