“समाजवाद के प्रर्वतक, युग पुरुष, राम राज्य के समर्थक एवं महादानी थे महाराजा अग्रसेन”
बंगाल सरकार करें सरकारी अवकाश की घोषणा
अशोक झा, सिलीगुड़ी: कुशल शासकों की कीर्ति किसी एक युग तक सीमित नहीं रहती। उनका लोक हितकारी चिंतन कालजयी होता है और युग-युगों तक समाज का मार्गदर्शन करता है। तीन अक्टूबर को जन्म जयंती की तैयारी के दौरान अखिल भारतीय सिलीगुड़ी अग्रवाल सम्मेलन के सुशील रामपुरिया, सुरेश वंशल तथा गौरी शंकर गोयल ने महाराजा अग्रसेन के संबंध में कहा की ऐसे शासकों से न केवल जनता, बल्कि सभ्यता और संस्कृति भी समृद्ध और शक्तिशाली बनती है। बंगाल सरकार को जन्म जयंती पर सरकारी अवकाश की घोषणा करनी चाहिए। ऐसे शासकों की दृष्टि में सर्वोपरि हित सत्ता का न होकर समाज एवं मानवता होता है। आज देशभर में इनके 8 करोड़ 8 लाख वंशज है। महाराजा अग्रसेन को समाजवाद का अग्रदूत: अपने क्षेत्र में सच्चे समाजवाद की स्थापना हेतु उन्होंने नियम बनाया था कि उनके नगर में बाहर से आकर बसने वाले प्रत्येक परिवार की सहायता के लिए नगर का प्रत्येक परिवार उसे एक सिक्का व एक ईंट देगा। जिससे आने वाला परिवार स्वयं के लिए मकान व व्यापार का प्रबंध कर सके। महाराजा अग्रसेन ने शासन प्रणाली में एक नई व्यवस्था को जन्म दिया था। उन्होंने वैदिक सनातन आर्य सस्कृति की मूल मान्यताओं को लागू कर राज्य में कृषि-व्यापार, उद्योग, गौपालन के विकास के साथ-साथ नैतिक मूल्यों की स्थापना की थी।महाराजा अग्रसेन एक सूर्यवंशी क्षत्रिय राजा थे। जिन्होंने प्रजा की भलाई के लिए वणिक धर्म अपना लिया था।
स्वंयवर में राजकुमारी माधवी का वरण किया: महाराज अग्रसेन ने नाग लोक के राजा कुमद के यहां आयोजित स्वंयवर में राजकुमारी माधवी का वरण किया। इस विवाह से नाग एवं आर्य कुल का नया गठबंधन हुआ। महाराजा अग्रसेन समाजवाद के प्रर्वतक, युग पुरुष, राम राज्य के समर्थक एवं महादानी थे। माता लक्ष्मी की कृपा से श्री अग्रसेन के 18 पुत्र हुए। राजकुमार विभु उनमें सबसे बड़े थे। महर्षि गर्ग ने महाराजा अग्रसेन को 18 पुत्र के साथ 18 यज्ञ करने का संकल्प करवाया। माना जाता है कि यज्ञों में बैठे 18 गुरुओं के नाम पर ही अग्रवंश की स्थापना हुई। ऋषियों द्वारा प्रदत्त अठारह गोत्रों को महाराजा अग्रसेन के 18 पुत्रों के साथ उनके द्वारा बसाई 18 बस्तियों के निवासियों ने भी धारण कर लिया। एक बस्ती के साथ प्रेम भाव बनाए रखने के लिए एक सर्वसम्मत निर्णय हुआ कि अपने पुत्र और पुत्री का विवाह अपनी बस्ती में नहीं दूसरी बस्ती में करेंगे। आगे चलकर यह व्यवस्था गोत्रों में बदल गई जो आज भी अग्रवाल समाज में प्रचलित है। धार्मिक मान्यतानुसार मर्यादा पुरुषोतम भगवान श्रीराम की चौंतीसवीं पीढ़ी में सूर्यबंशी क्षत्रिय कुल के महाराजा वल्लभ सेन के घर में द्वापर के अंतिमकाल और कलियुग के प्रारंभ में अश्विन शुक्ल प्रतिपदा को महाराजा अग्रसेन का जन्म हुआ। जिसे दुनिया भर में अग्रसेन जयंती के रूप में मनाया जाता है। राजा वल्लभ के अग्रसेन और शूरसेन नामक दो पुत्र हुए थे। अग्रसेन महाराज वल्लभ के ज्येष्ठ पुत्र थे। महाराजा अग्रसेन के जन्म के समय गर्ग ऋषि ने महाराज वल्लभ से कहा था कि यह बालक बहुत बड़ा राजा बनेगा। इस के राज्य में एक नई शासन व्यवस्था उदय होगी और हजारों वर्ष बाद भी इनका नाम अमर होगा। उनके राज में कोई दुखी या लाचार नहीं था। बचपन से ही वे अपनी प्रजा में बहुत लोकप्रिय थे। वे एक धार्मिक, शांति दूत, प्रजा वत्सल, हिंसा विरोधी, बली प्रथा को बंद करवाने वाले, करुणानिधि, सब जीवों से प्रेम, स्नेह रखने वाले दयालु राजा थे। महाराजा वल्लभ के निधन के बाद अपने नए राज्य की स्थापना के लिए महाराज अग्रसेन ने अपनी रानी माधवी के साथ सारे भारतवर्ष का भ्रमण किया। इसी दौरान उन्हें एक जगह शेर तथा भेडिए के बच्चे एक साथ खेलते मिले। उन्हें लगा कि यह दैवीय संदेश है जो इस वीरभूमि पर उन्हें राज्य स्थापित करने का संकेत दे रहा है। ऋषि मुनियों और ज्योतिषियों की सलाह पर नए राज्य का नाम अग्रेयगण रखा गया जिसे अग्रोहा नाम से जाना जाता है। वह जगह आज के हरियाणा के हिसार के पास है। आज भी यह स्थान अग्रहरि और अग्रवाल समाज के लिए तीर्थ के समान है। यहां महाराज अग्रसेन और मां लक्ष्मी देवी का भव्य मंदिर है। अग्रसेन अपने छोटे भाई शूरसेन को प्रतापनगर का राजपाट सौंप दिया। महाराजा अग्रसेन अग्रवाल जाति के पितामह थे।