भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में संजय विनायक जोशी संघ के पहली और अंतिम पसंद
गुजरात से मध्यप्रदेश तक संभाल चुके है संगठन का काम, आज भी हजारों कार्यकर्ताओं को नाम से पुकारते है
अशोक झा, नई दिल्ली: संजय विनायक जोशी को भाजपा का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया जा सकता है। उनका पूरा जीवन संघ और संगठन के विकास के लिए समर्पित रहा। उन्होंने खुद को सामाजिक समर्पण के लिए खपा दिया. उनका जीवन राजनीति की चकाचौंध से परे, जमीनी स्तर पर एक संगठनकर्ता, विचारक और मार्गदर्शक को फलीभूत करने में लगा है। विश्वसनीय सूत्रों के अनुसार, नागपुर में संघ के शीर्ष नेतृत्व ने जोशी के नाम पर सहमति जताई है, लेकिन नरेंद्र मोदी और अमित शाह का समर्थन न मिलने के कारण उनका रास्ता कठिन हो सकता है। भाजपा में संगठनात्मक ढांचे में संघ की कितनी चलती है, यह इस निर्णय पर निर्भर करेगा कि जोशी को राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया जाता है या नहीं। यह कहानी हम आपको ऐसे नहीं बता रहे क्योंकि भाजपा का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने की बात संघ पर आकर अटक गई है और संघ संजय भाई जोशी को बनाना चाहता है यह हमारे विश्वसनीय सूत्रों ने ख़बर बताई है नागपुर का संघ के एक पत्रकार के मुताबिक संघ ने 100% उनका नाम फाइनल कर दिया है। आज जब भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष का चयन चर्चा में है, तो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) का समर्थन एक बार फिर से संजय जोशी के पक्ष में दिखाई दे रहा है। विश्वसनीय सूत्रों के अनुसार, नागपुर में संघ के शीर्ष नेतृत्व ने जोशी के नाम पर सहमति जताई है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एक प्रचारक से लेकर बीजेपी संगठन महामंत्री और फिर राष्ट्रीय संगठन महासचिव का दायित्व निभाने वाले संजय विनायक जोशी किसी पद पर नहीं हैं, लेकिन उनकी ऊर्जा, उत्साह और समर्पण में कोई कमी नहीं है। वह आज भी लोगों के चेहते हैं, सैकड़ों लोगों से मिलते हैं, उनके संपर्क का सिलसिला सतत जारी है। संजय विनायक जोशी एक व्यक्ति नहीं, संस्था है। न्याय के किसी देवता की तरह, उनको आज भी दिल्ली के गोल मार्केट के डॉक्टर लेने पार्क में कचहरी लगती है। वह किसी बाबा की तरह पचर्चा नहीं बनाते, बल्कि एक दिन में पांच सौ से अधिक लोगों की समस्याओं को सुनते हैं, और फौरन अपने प्रयासों की बदौलत उन्हें हल करने की कोशिश भी करते हैं। दिल्ली जैसे महानगर को तो छोड़िये, संजय विनायक जोशी की इस दरबार में देश के कोने-कोने से लोग पहुंचते हैं, और इस विश्वास के साथ उनके सामने अपनी उलझनों, समस्याओं, दिक्कतों और अड़चनों को रखते हैं कि ‘भाई साहब’ कोई न कोई मार्ग जरूर निकालेंगे।
संघ में संजय जोशी का मजबूत संगठनात्मक अनुभव और लोकप्रियता को देखते हुए उन्हें एक उपयुक्त उम्मीदवार माना जा रहा है। हालांकि नरेंद्र मोदी और अमित शाह का समर्थन न मिलना उनके लिए बड़ा रोड़ा साबित हो सकता है, जिससे उनका रास्ता कठिन हो सकता है।
मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने जिस संजय जोशी को भाजपा से किनारेलगवा दिया, उनसे कभी उनकी अच्छी बनती थी। हालांकि दोनों के बीच मनमुटाव भी कम पुराना नहीं था। दोनों के बीच तकरार की नींव करीब 17 साल पहले ही पड़ गई थी।वर्ष 1989-90 में संजय जोशी को आरएसएस ने गुजरात भेजा। संगठन को मजबूत करने के लिए उन्हें संगठन मंत्री के पद से नवाजा गया। मोदी संगठन महामंत्री के पद पर दो साल से काम कर रहे थे। दोनों ने मिलकर पार्टी को मजबूत करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। नतीजा रहा कि भाजपा ने वर्ष 1995 में गुजरात में पहली बार सरकार बनाई।लेकिन जब मुख्यमंत्री पद की दावेदारी की बात आई तो दो दूसरे ही नेताओं के नाम सामने आए। एक, भाजपा के राज्य में तब के सबसे वरिष्ठ नेता केशुभाई पटेल और दूसरा, शंकरसिंह वाघेला का। मोदी और जोशी ने मिलकर केशुभाई का साथ दिया तो वाघेला नाराज हो गए। इसके बाद वाघेला की बगावत हुई और समझौते के तौर पर केशुभाई की जगह सुरेश मेहता को मुख्यमंत्री बनाया गया, जबकि नरेंद्र मोदी को दिल्ली भेज दिया गया। मोदी के जाने का सबसे अधिक फायदा जोशी को मिला। अब संगठन महामंत्री के पद पर जोशी की ताजपोशी हुई। वर्ष 1998 में भाजपा एक बार फिर सत्ता में आ गई। मोदी गुजरात आना चाहते थे लेकिन जोशी इसके लिए तैयार नहीं थे। एक बार फिर केशुभाई मुख्यमंत्री के पद पर बैठे। लेकिन वर्ष 2001 में समीकरण बदल गया और उपचुनाव में भाजपा को हार को सामना करना पड़ा। नतीजा केशुभाई को हटाकर नरेंद्र मोदी को गुजरात का मुख्यमंत्री बना दिया गया। इसके बाद मोदी ने जोशी को दिल्ली की ओर रवाना करवा दिया (वह राष्ट्रीय संगठन महासचिव बने)। तब से दोनों की अदावत बढ़ती ही गई।
कौन है संजय विनायक जोशी: संजय विनायक जोशी का जन्म 6 अप्रैल 1962 को नागपुर में हुआ था। उन्होंने अपनी प्राथमिक शिक्षा नागपुर से ही प्राप्त की। वीएनआईटी, नागपुर से मैकेनिकल इंजीनियरिंग करने के बाद, उन्होंने महाराष्ट्र के एक इंजीनियरिंग कॉलेज में लेक्चरर के रूप में अपना करियर शुरू किया। लेकिन जल्द ही उन्होंने महाराष्ट्र में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) में पूर्णकालिक प्रचारक (स्वयंसेवक) बनने के लिए अपनी नौकरी से इस्तीफा दे दिया। उनकी संगठनात्मक कुशलता को देखते हुए, उन्हें 1988 में गुजरात में भाजपा में शामिल होने के लिए कहा गया, जहाँ उस समय पार्टी राजनीतिक रूप से कमज़ोर थी। उन्हें जमीनी स्तर के कार्यकर्ताओं के साथ अपने अच्छे तालमेल के लिए जाना जाता है।संजय विनायक जोशी गुजरात में भाजपा की राजनीति में एक अग्रणी व्यक्ति बन गए। 1988 से 1995 तक उन्होंने गुजरात भाजपा के सचिव के रूप में नरेंद्र मोदी के साथ मिलकर काम किया। उनके एक पूर्व सहयोगी गोरधन जदाफिया ने उनके बारे में कहा है कि “वे अपार क्षमता वाले एक शांत कार्यकर्ता हैं और पार्टी कार्यकर्ताओं के बीच लोकप्रिय और प्रिय हैं”। उनकी कड़ी मेहनत के कारण 1995 में केशुभाई पटेल के मुख्यमंत्री बनने के साथ भाजपा पहली बार गुजरात में सत्ता में आई।वर्ष 1998 में अपने अच्छे तालमेल और संगठनात्मक कौशल के कारण वे गुजरात में राज्य महासचिव (संगठन) बने। वे 2001 में भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव (संगठन) बने और दिल्ली चले गए। राष्ट्रीय महासचिव (संगठन) के रूप में अपने 2001-2005 के कार्यकाल के दौरान, उन्होंने संगठन का नेतृत्व किया, जिसके कारण भाजपा पांच राज्यों (हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, छत्तीसगढ़, झारखंड, मध्य प्रदेश) में विधानसभा चुनाव जीतने में सफल रही।