आज माता भगवती को मनाने का सबसे उत्तम दिन, अष्टमी और नवमी तिथि में हो रही संधि पूजा
अशोक झा, सिलीगुड़ी: आज 11 अक्टूबर शुक्रवार को शारदीय नवरात्रि का अंतिम दिन है। आज दुर्गा अष्टमी और महा नवमी साथ में है। हालांकि कई जगहों पर दुर्गा अष्टमी का व्रत 10 अक्टूबर को भी रखा गया था।
मां को आदि शक्ति भगवती के नाम से भी जाना जाता है। धार्मिक मान्यता है कि मां सिद्धिदात्री की विधि पूर्वक पूजा अर्चना करने से भक्तों को सिद्धि और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस बार अष्टमी और नवमी तिथि एक ही होने के कारण दोनों ही दिन का कन्या पूजन एक ही दिन अलग- अगल मुहूर्त में किया जाएगा।वैदिक पंचाग के अनुसार, नवमी तिथि की शुरुआत शुक्रवार, 11 अक्टूबर दोपहर 12 बजकर 6 मिनट होगी। नवमी तिथि का समापन शनिवार, 12 अक्टूबर दोपहर 10 बजकर 58 मिनट तक रहेगी। उदय तिथि के अनुसार,नवमी तिथि शुक्रवार, 11 अक्टबर को मनाई जाएगी। सर्वसङ्कट हन्त्री त्वंहि धन ऐश्वर्य प्रदायनीम् ।ज्ञानदा चतुर्वेदमयी महागौरी प्रणमाम्यहम्॥
सुख शान्तिदात्री धन धान्य प्रदायनीम्। डमरूवाद्य प्रिया अद्या महागौरी प्रणमाम्यहम्॥ त्रैलोक्यमङ्गल त्वंहि तापत्रय हारिणीम्।
वददम् चैतन्यमयी महागौरी प्रणमाम्यहम्॥ देवी दुर्गा के नौ रूप हैं, जिनकी नवरात्रि में आराधना की जाती है.
देवी दुर्गा का आठवां स्वरूप देवी महागौरी हैं।नवरात्रि की अष्टमी व नवमी तिथि एक ही दिन पड़ रही है। इस साल अष्टमी का व्रत 11 अक्टूबर को रखा जाएगा और इस दिन ही महानवमी मनाई जाएगी। ज्योतिषाचार्यों के अनुसार, नवरात्रि में चतुर्थी तिथि की वृद्धि व नवमी का क्षय होने के कारण यह स्थिति बनी है।
वैसे तो नवरात्रि के आठवें दिन देवी महागौरी की पूजा-अर्चना की जाती है, लेकिन जिन्हें राहु के कारण मतिभ्रम है, पढ़ाई में मन नही लगता है, गुप्त शत्रु से परेशान हैं, तो प्रत्येक माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी पर देवी महागौरी की पूजा करें, व्रत रखें!
देवी महागौरी भोलेनाथ की अर्धांगिनी है जिन्होंने कठोर तपस्या के बाद शिवजी को अपने पति के रुप में प्राप्त किया था।
देवी महागौरी की चार भुजाएं है जिनमें से उनके दो हाथों में डमरू और त्रिशूल है और शेष दो हाथ- अभय और वर मुद्रा में है.
देवी महागौरी की पूजा-अर्चना से राहु ग्रह की अनुकूलता प्राप्त होती है। जिन श्रद्धालुओं की राहु की दशा-अंतर्दशा चल रही हो उन्हें देवी महागौरी की पूजा-अर्चना करनी चाहिए।
जिनका पढ़ाई में मन नहीं लगता हो उन्हें भी देवी महागौरी की उपासना करनी चाहिए। बॉलीवुड में कामयाबी के लिए महागौरी की आराधना करें। संतान के रूप-सौन्दर्य-वैभव प्राप्ति के लिए श्रद्धालुओं को देवी महागौरी की आराधना करनी चाहिए।माता दुर्गा के 9 स्वरूपों में नौवें दिन नवमी (Navami) की देवी है माता सिद्धिदात्री। नवरात्रि के नौवें दिन देवी सिद्धिदात्री का पूजन किया जाता है। इसके बाद उनकी पौराणिक कथा या कहानी पढ़ी या सुनी जाती है।या देवी सर्वभूतेषु मां सिद्धिदात्री रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।। मां दुर्गाजी की नौवीं शक्ति का नाम सिद्धिदात्री हैं। ये सभी प्रकार की सिद्धियों को देने वाली हैं। मां सिद्धिदात्री चार भुजाओं वाली हैं। इनका वाहन सिंह है। ये कमल पुष्प पर भी आसीन होती हैं। इनकी दाहिनी तरफ के नीचे वाले हाथ में कमलपुष्प है। इन्हें कमलारानी भी कहते हैं।मां सिद्धिदात्री भक्तों और साधकों को ये सभी सिद्धियां प्रदान करने में समर्थ हैं। देवीपुराण के अनुसार भगवान शिव ने इनकी कृपा से ही इन सिद्धियों को प्राप्त किया था। इनकी अनुकम्पा से ही भगवान शिव का आधा शरीर देवी का हुआ था। इसी कारण वे लोक में ‘अर्द्धनारीश्वर’ नाम से प्रसिद्ध हुए।शारदीय नवरात्रि में क्यों करते हैं संधि पूजा:-
संधि पूजा करने से अष्टमी और नवमी दोनों ही देवियों की एक साथ पूजा हो जाती है। इस पूजा का खास महत्व माना जाता है। माना जाता है कि इस काल में देवी दुर्गा ने सुर चंड और मुंड का वध किया था। उसके बाद अगले दिन महिषासुर का वध किया था। संधि काल का समय दुर्गा पूजा और हवन के लिए सबसे शुभ माना जाता है।
शारदीय नवरात्रि में क्या होगा संधि पूजा करने से:-
संधि काल का समय दुर्गा पूजा और हवन के लिए सबसे शुभ माना जाता है। इस काल में किया गया हवन और पूजा तुरंत ही फल देने वाला माना गया है। संधि पूजा के समय केला, ककड़ी, कद्दू और अन्य फल सब्जी की बलि दी जाती है। संधि काल में 108 दीपक जलाकर माता की वंदना और आराधना की जाती है। भगवती महागौरी की आराधना सभी मनोवांछित कामना को पूर्ण करने वाली और भक्तों को अभय, रूप व सौंदर्य प्रदान करने वाली है अर्थात शरीर में उत्पन्न नाना प्रकार के विष व्याधियों का अंत कर जीवन को सुख-समृद्धि व आरोग्यता से पूर्ण करती हैं।