रविवार को अग्रसेन भवन में गूंजेगा “एक देश एक कानून” की बारीकियां
अशोक झा, सिलीगुड़ी: सिलीगुड़ी अग्रसेन भवन में रविवार को एक देश एक कानून की बारीकियों को समझाया जाएगा।इसे देश के जाने माने अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय और राष्ट्र को अपना जीवन समर्पित कर चुके वरिष्ठ प्रचारक व शिक्षाविद लक्ष्मी नारायण भाला उर्फ लख्खी दा संबोधित करेंगे। यह कार्यक्रम
सर्व हिंदी विकास मंच एवं भारत विकास परिषद, सिलीगुड़ी के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित किया जा रहा है। सर्व हिंदी विकास मंच के अध्यक्ष करण सिंह जैन, सचिव कल्याण साहा, भारत विकास परिषद के अध्यक्ष कैलाश कंदोई ,सचिव मीना देवी अग्रवाल, संयोजक सीताराम डालमिया, वीएचपी के प्रवक्ता सुशील रामपुरिया ने कहा कि यह कार्यक्रम देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सपने को साकार करने वाला है। देश के लाल किले की प्राचीर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सेकुलर सिविल कोड को देश की जरूरत बताया था। उन्होंने कहा कि बांटने वाले कानूनों को समाज से दूर किया जाना चाहिए। पीएम मोदी पहले भी समान नागरिक संहिता की बात कर चुके हैं। ऐसे में जानते हैं कि अगर इसे लागू किया जाता है तो इससे क्या-क्या बदल जाएगा? समान नागरिक संहिता आती है तो फिर सभी के लिए एक ही कानून होगा, फिर चाहे वो किसी भी धर्म या जाति का ही क्यों न हो. सुप्रीम कोर्ट भी कई फैसलों में समान नागरिक संहिता को जरूरत बता चुका है। हिंदू, सिख, जैन और बौद्ध के पर्सनल मामले हिंदू मैरिज एक्ट से चलते हैं। मुसलमानों, ईसाइयों और पारसियों के अलग पर्सनल लॉ हैं। ऐसे में अगर यूसीसी आती है तो सभी धर्मों के मौजूदा कानून निरस्त हो जाएंगे. सभी धर्मों में फिर शादी, तलाक, गोद लेने, उत्तराधिकार और संपत्ति से जुड़े विषयों पर एक ही कानून होगा। इतना ही नहीं, समान नागरिक संहिता का मुद्दा मोदी सरकार के टॉप एजेंडे में रहा है। बीजेपी के तीन बड़े वादों- अयोध्या में राम मंदिर बनाना, कश्मीर से 370 हटाना के साथ-साथ समान नागरिक संहिता भी शामिल रहा है. राम मंदिर और 370 का वादा पूरा हो चुका है। बीजेपी का मानना है कि जब तक समान नागरिक संहिता को अपनाया नहीं जाता, तब तक लैंगिक समानता नहीं आ सकती।अलग-अलग धर्मों में क्या?: शादी की उम्रः कानूनन शादी तब वैध मानी जाती है जब लड़की की उम्र 18 साल और लड़के की 21 साल से ऊपर हो. सभी धर्मों में भी शादी की यही कानूनी उम्र है। लेकिन मुस्लिमों में लड़की की शादी 15 साल की उम्र में भी करा दी जाती है।देश में सबसे पहले 1835 में शुरू हुई थी चर्चा : देश में ब्रिटिश सरकार ने 1835 में समान नागरिक संहिता (UCC) की अवधारणा को लेकर एक रिपोर्ट पेश की थी, जिसमें अपराधों, सबूतों और अनुबंधों जैसे विषयों पर भारतीय कानून के संहिताकरण में एकरूपता लाने की बात कही गई थीं. हालांकि उस रिपोर्ट में हिंदू व मुसलमानों के पर्सनल लॉ को इस एकरूपता से बाहर रखने की सिफारिश की गई थी।हालांकि जब व्यक्तिगत मुद्दों से निपटने वाले कानूनों की संख्या बढ़ने लगी तो सरकार को 1941 में हिंदू कानून को संहिताबद्ध करने के लिए बी.एन. राव समिति गठित कर दी। इसी समिति की सिफारिशों के आधार पर हिंदुओं, बौद्धों, जैनों और सिखों के लिए निर्वसीयत उत्तराधिकार से संबंधित कानून को संशोधित एवं संहिताबद्ध करने के लिए 1956 में हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम को अपना लिया गया. हालांकि मुस्लिम, इसाई और पारसियों के लिए अलग-अलग व्यक्तिगत कानून लागू रहे।