सत्या फाउंडेशन ने पटाखों पर राष्ट्रव्यापी प्रतिबंध की उठाई मांग
पटाखे के विरोध में राष्ट्रव्यापी हिंसा और हत्या के ज्यादातर मामले हिंदू बनाम हिंदू के हैं, यानी पटाखे ने लोगों को बंटने और कटने पर मजबूर कर दिया है. सत्या फाउंडेशन ने पटाखों पर राष्ट्र व्यापी प्रतिबंध की उठाई मांग
वाराणसी। 2024 की दीपावली पर पटाखे के कारण पूरे देश में जो हिंसा और हत्याएं हुई हैं, उनमें से ज्यादातर में हिन्दू बनाम हिन्दू का मामला है। ध्वनि प्रदूषण के खिलाफ वर्ष 2008 से कार्यरत राष्ट्रीय संस्था ‘सत्या फाउण्डेशन’ के संस्थापक सचिव चेतन उपाध्याय ने कहा कि उन्होंने गूगल, एक्स और फेसबुक आदि सोशल मीडिया पर सर्च बॉक्स में 3 शब्द डाले : ‘पटाखा दीपावली हिंसा’ और पटाखे के कारण हिन्दू बनाम मुस्लिम विवाद की लोकप्रिय धारणा के विपरीत उन्हें और उनकी टीम को चौंकाने वाले नतीजे मिले। बहुत गहन और लम्बे रिसर्च के बाद यह निष्कर्ष सामने आया कि पटाखों के चलते पूरे देश में हिंसा और हत्या के ज्यादातर मामलों में, लड़ाई हिन्दू बनाम हिन्दू की है। और कोई 8वीं पास विद्यार्थी भी इंटरनेट पर ये सारे सबूत देख सकता है। यानी कि पटाखे ने हिन्दुओं को आपस में ही बँटने और कटने पर मजबूर कर दिया है। हालांकि यह भी सच है कि धर्म विरोधी का तमगा मिल जाने के डर से अधिकाँश लोग इस अत्याचार को सदियों से चुपचाप सह लेते हैं और दूसरी बात ये भी कि पटाखे के विरोध में गाँव-गाँव और मोहल्ले-मोहल्ले में हो रहे भयंकर विरोध और हिंसा के तमाम मामले थाने और मीडिया तक पहुँचते ही नहीं हैं। ‘सत्या फाउण्डेशन’ के सचिव चेतन उपाध्याय ने कहा कि धर्म, परंपरा और उत्सव की आड़ में गुंडागर्दी और अराजकता के खिलाफ जनता के गुस्से को नजरअंदाज करना देशहित में नहीं है। मगर ज्यादातर नेता और साउंड प्रूफ घरों में रहने वाले नीति निर्माता, जनता की इस बदलती नब्ज को पकड़ पाने में विफल हैं और ध्वनि प्रदूषण के कारण कानून व्यवस्था को खतरा हो जाने के बाद, घटना को भरसक दबाने में लग जाते हैं। ये कड़वा सच है कि दीपावली का पटाखा हिन्दुओं को हिन्दुओं से लड़ाने का माध्यम बन गया है मगर त्योहार और धार्मिक स्वतंत्रता की गूँज में ये सारी बातें नक्कारखाने में तूती की आवाज बन गई हैं। इंडिया टुडे समूह (आज तक, नई दिल्ली) के पूर्व टी.वी. पत्रकार और वर्तमान में ‘सत्या फाउण्डेशन’ के संस्थापक सचिव चेतन उपाध्याय ने आगे बताया कि उत्तर प्रदेश सहित पूरे देश में पुलिस और प्रशासन की जानकारी में ऐसे सैकड़ों मामले हैं जहाँ पर पर्व की आड़ में पटाखे का इस्तेमाल अपने दुश्मनों को सताने और ह्त्या करने में किया जा रहा है। पटाखे के कारण खुशियों का त्योहार नफरत, हिंसा और मातम का त्योहार बन गया है।
विदेशों में हरियाली का प्रतिशत बहुत ज्यादा होता है और यह हरियाली, आतिशबाजी के शोर और धुंए को सोख लेती है। साथ ही विदेशों में पटाखा फोड़ने के लिए एक बड़ा मैदान होता है जहाँ फायर ब्रिगेड की गाड़ी भी तैयार रहती है। भारत देश में भी बड़े लोगों के घर के पास आप पटाखा नहीं फोड़ सकते, मगर आम आदमी के साथ,आये दिन कभी धर्म की आड़ में डी.जे. तो कभी पटाखे की ऐसी गुंडागर्दी होती ही रहती है और ‘धार्मिक’ मामला बताकर पुलिस पल्ला झाड़ लेती है। फिर पुलिस के मूकदर्शक बनने के बाद अपनी और अपने परिवार के सदस्य की जान बचाने के लिए जो भी आदमी, जानलेवा पटाखे का विरोध करता है, उसको धर्म विरोधी कह कर मार दिया जाता है मानो कि पटाखे से लोहवान, गुग्गुलु और चंदन की दिव्य महक आती हो। यह गुंडागर्दी बंद होनी चाहिए।
चेतन उपाध्याय ने आगे कहा कि राजनीतिक सत्ता की शक्ति प्राप्त लोगों का यह दायित्व है कि वे समाज को सही दिशा दें नहीं तो आने वाली पीढ़ियाँ उन्हें खलनायक के रूप में याद करेंगी। सरकार को चाहिए कि वह आम जनता के साथ ही कोर्ट को यह बताए कि जिस आतिशबाजी के कारण हर साल अरबों रुपये की संपत्ति आग में स्वाहा हो जाती है, जिस आतिशबाजी के चलते बेजुबान जानवरों की जान खतरे में पड़ जाती है, जिस आतिशबाजी के कारण देश भर के करोड़ों अस्थमा मरीज तड़पड़ाते हैं, जिस पटाखे के कारण लोग अपनी आँख की रोशनी और सुनने की क्षमता खो दे रहे हैं, जिस पटाखे के शोर और धुएं को रोकने की लड़ाई में लोग आपस में मर-कट कर पुलिस और कोर्ट का बोझ बढ़ा रहे हों, वह पटाखा किसी भी धर्म और परम्परा का हिस्सा नहीं हो सकता। पटाखा पूरी तरह से बंद हो। ना तो शादी-विवाह में, ना दीपावली-होली पर, ना ईद-बारावफात में और ना ही क्रिसमस-नए साल पर। 1947 से पहले और फिर 1947 से 2024 तक क्या हुआ, इसकी चर्चा में समय नहीं गँवा कर, व्यापक जनहित में अभी से पटाखों पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने की सख्त जरुरत है। चेतन उपाध्याय ने आगे कहा कि ‘सत्या फाउण्डेशन’ ने प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी से 2015 में मिल कर यही मांग रखी थी कि बारूद की गंध फैलाने का कार्य बंद होना चाहिए और बिना किसी धार्मिक भेदभाव के, साल के 365 दिन, पटाखों पर राष्ट्रव्यापी प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए। आज भी यही कहना है कि किसी भी सभ्य समाज में पटाखों का कोई स्थान नहीं है और बारूदी दुर्गंध फैलाने वाले पटाखों के उत्पादन और बिक्री पर पूरी तरह से रोक लगाना ही एकमात्र विकल्प है। ना रहेगा बाँस और ना बजेगी बाँसुरी।